
ममता का आंचल
( Mamta ka aanchal )
मांँ तो फिर भी मांँ होती है हर मर्ज की दवा होती।
आंँचल में संसार सुखों का हर मुश्किलें हवा होती।
मोहक झरना प्रेम प्यार का बहाती पावन संस्कार से।
आशीष स्नेह के मोती बांटती माता लाड दुलार से।
स्नेह बरसता प्यार से
मांँ की ममता सुखसागर पल पल खुशियां होती।
मांँ के चरणों में स्वर्ग बसा मांँ जलता दीया होती।
आंखों का तारा बन जाती राहें दिखलाती प्यार से।
हर मुश्किल हर संकट में ढाल बनती मंझधार मे।
स्नेह बरसता प्यार से
मांँ के आशीष हर शब्दों में अपार शक्ति होती है।
अमोध अस्त्र ढाल बने पावन तीर्थ भक्ति होती है।
मांँ से प्यारा इस दुनिया में मिलता ना कोई उपहार रे।
नेह की बहती अविरल धारा मां पावन अमृतधार रे।
स्नेह बरसता प्यार से
मांँ की छत्रछाया में खिली घर की फुलवारी होती।
यश कीर्ति विजय मिलती साथ दुनिया सारी होती।
सुकून सा मिल जाता तेरे आंचल की ठंडी छांव में।
डांट फटकार लगे प्यारी मां स्वर्ग बसा तेरे पांव में।
स्नेह बरसता प्यार से
आंचल में छुपाकर मां ममता के स्नेह से नहलाती है।
करती मां दुलार बच्चों को मोती प्यार भरे लुटाती है।
मीठी मीठी लोरी भावन पीड़ायें हर लेती दुलार से।
खुशियों की बरसाते हो मां हाथ रख देती प्यार से।
स्नेह बरसता प्यार से
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )