मुझको मुझ सा दिखता है
मुझको मुझ सा दिखता है
पिंजरे में ख़ुश रहना कैसा दिखता है
देखो आ कर मुझको मुझ सा दिखता है
ये कैसा आलम है मेरी नींदोँ का
ख़्वाब है फिर भी टूटा फूटा दिखता है
आँख समंदर, गाल भंवर और बाल फ़लक़
आशिक़ को भी जाने क्या क्या दिखता है
रंग नहीं दिखते हैं जिसको दुनिया के
क्या उसको सपना भी काला दिखता है
पेशानी पर बल आने से दुनिया को
सुलझा हो कर भी वो उलझा दिखता है
उसने मेरी बात बदल दी ये कह कर
और हँसा कर, हँसता अच्छा दिखता है
नीम बाज़ आँखों की है ये सिफ़त ‘असद’
ख़ूब उजाले में भी पूरा दिखता है
असद अकबराबादी