मुशलशल अश्क बरसाया है पहली बार नहीं है
मुशलशल अश्क बरसाया है पहली बार नहीं है
मुशलशल अश्क बरसाया है पहली बार नहीं है।
बस इतना कह के चले जा कि मुझसे प्यार नही है।।
कत्ल करके मेरा कन्धे पे ले गया मुझको
भला मैं कैसे कहूं मेरा मददगार नही है।।
जाके तन्हाई में इत्मिनान से पढ़ ले इसको,
बहुत जरूरी खत है ये कोई अखबार नहीं है।।
नफा नुकसान का गम हो तो इश्क मत करना
इश्क ईमान है इबादत है ब्यापार नहीं है।।
वो इतना टूट गया है बस इसी सदमे से,
कोई कुछ कितना ही कहले उसे ऐतबार नहीं है।।
बात मेरी समझ में धीरे धीरे आ ही गयी
तुम्हारे महल के काबिल ये ख़ाकसार नहीं है।।
फूल के साथ में कांटों का जिक्र होता रहे,
शेष तुम सोचते हो वैसा ये संसार नहीं है।।
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लेखक: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)
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