इश्क फरमाना नहीं आता
इश्क फरमाना नहीं आता

इश्क फरमाना नहीं आता

 

 

मुसलसल अश्क अगर जो बरसाना नहीं आता।

तो समझो आपको फिर इश्क फरमाना नही आता।

 

पशीना पाँव का सर तक जब पहुँच जाता है,

बिना मेहनत किये तो एक भी दाना नहीं आता।

 

मिली है दौलत तो हर जगह पर बर्बाद न कर,

किसी के हक में बार बार खजाना नहीं आता।

 

बस्तियां लूटने वाले कभी ये सोचा भी,

तुम्हें तो एक ही घर को भी बसाना नहीं आता।

 

अँधेरा मिटे भी तो मिटे अब कैसे सूरज,

उजाला चाहते हो दीप जलाना नही आता।

 

हमारे कान में ये धीरे से ये कहा किसने,

रुलाना जानते हो शेष मनाना नहीं आता।

 

 

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कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)

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