नफ़रतों के ये नजारे नहीं अच्छे लगते
नफ़रतों के ये नजारे नहीं अच्छे लगते
नफ़रतों के ये नजारे नहीं अच्छे लगते
खून से लिपटे हमारे नहीं अच्छे लगते
कद्र -जो मात- पिता की न किया करते हैं
अपने ऐसे भी दुलारे नहीं अच्छे लगते
जान लेती हैं हमारी ये अदाएँ तेरी
यूँ सर -ए बज़्म इशारे नहीं अच्छे लगते
जिनमें ज़हरीले से दाँतों की रिहाइश हो बस
साँप के ऐसे पिटारे नहीं अच्छे लगते
होश खोकर जो ज़मीं पर ही गिरा करते हैं
टूटते हमको ये तारे नहीं अच्छे लगते
जो यकायक ही सियासत में निकल आते हैं
इंतेख़ाबों के वो नारे नहीं अच्छे लगते
सादगी भी तो कभी दिल है लुभाती मीना
हर घड़ी चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
यह भी पढ़ें:-