Nar se Narayan
Nar se Narayan

नर से नारायण 

( Nar se narayan ) 

 

कहां गया, मेरा वह बचपन
सारे खेल खिलौने,
समय आज का लगता जैसे
कितने क्रूर धिनौने।
साथ बैठना उठना मुस्किल
मुस्किल मिलना जुलना,
सबमें तृष्णा द्वेष भरा है
किससे किसकी तुलना।
बात बात पर झगड़े होते
मरते कटते रहते
कभी नही कोई कुछ करते
जो कुछ भी वो कहते।
कथनी करनी में अंतर ना
नहीं भरोसा होता,
खुद को बदल रहा क्यूं इतना
क्यों खुद को है खोता?
मानव हो मानव बन जाओ
मानवता अपनाओं
नर में ही नारायण होते
खुद समझो समझाओ।

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

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