मैं नटखट चंचल हूं बहना

 

मैं नटखट चंचल हूं बहना
भैया की प्यारी हूं बहन

एक हाँथ में बाधू राखी
दूजे से उपहार है लेना

सारे राज छुपा रखे हैं
कह दूंगी फिर ना कहना

रोज रूठती रोज मनाते
झगड़े अपने क्या कहना

आज नहीं लडूंगी तुमसे
ऐसे ही मुस्कुराते रहना

टीका करूं रोली अक्षत से
खोलो मुंह मीठा करना

करूं आरती तेरी भैया
सुखी सदा तुम रहना

 

ओ भैया प्यारे

उतारू तेरी आरती ओ भैया प्यारे
रिश्तो के बंधन में बँधे ओ भैया न्यारे
खेल में जीत कर भी तू सब कुछ हार दे
मांगे बिन मिल जाए सारे उपहार रे
उतारू तेरी आरती लंबी उमरिया ले
रेशम के इस धागे का मान तू सदा करें
सूनी कलाई पे तेरी राखी यह सजी रहे

 

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

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