पंकज त्रिपाठी जिन्हें हाईस्कूल तक नहीं पता था की फिल्में क्या होती हैं | Pankaj Tripathi jivani
बॉलीवुड की चमक धमक भरी दुनिया के विषय मे कहा जाता है कि यहां वही लोग पहुंच पाते हैं जिनके माता-पिता स्टार रहे हो या फिर भी वो किसी संपन्न परिवार से संबंध रखते हैं और उनमें विलक्षण प्रतिभा हो।
लेकिन बॉलीवुड में कुछ ऐसे भी कलाकार हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और अपनी प्रतिभा के दम पर लंबा सफर किया और कामयाबी हासिल की है। ऐसे ही एक शख्स हैं पंकज त्रिपाठी जो बिहार के एक छोटे से कस्बे से ताल्लुक रखते है।
जब वे मात्र 17 साल के थे तब वह चिलचिलाती धूप में अपने पिता के साथ खेतों में काम किया करते थे। लेकिन उस वक्त भी उनके जेहन में सिर्फ एक सपना था कि किसी दिन वह हिंदी फिल्मों के बड़े पर्दे पर दिखाई देंगे।
आज पंकज त्रिपाठी हिंदी सिनेमा जगत का एक जाना माना चेहरा बन गया है। उन्होंने अपने अभिनय और अपने संवाद के दम पर कई सारी फिल्मों में बेहतरीन किरदार निभाए हैं। फिल्म “गैंग्स ऑफ वासेपुर” में उन्होंने एक निर्दयी चरित्र की भूमिका निभाई है, तो “निल बटे सन्नाटा” फिल्म में उन्होंने एक कठोर प्रिंसिपल और गणित के अध्यापक की भूमिका निभाकर सराहना पाई है।
अभी हाल में ही फिल्म “फुकरे” में उन्होंने पंडित जी का किरदार निभाया है। इसके अलावा उन्होंने अपनी कई फिल्मों में ऐसे कई किरदार निभाए हैं जिससे लोगों उनके दीवाने बन गए और आज हिंदी सिनेमा में उन्हें उनकी बेहतरीन एक्टिंग के लिए जाना जाता है।
मुंबई एक ऐसा शहर है जहां रोजाना सपने बनते और बिगड़ते रहते हैं। यहां पर देश के कोने-कोने से लोग आते हैं अपनी किस्मत को आजमाने के लिए, लेकिन जो अपने सपनों का पीछा करने का जुनून रखते हैं और असाधारण काम करते हैं वही यहां पर टिके रह पाते हैं। ऐसे ही पंकज त्रिपाठी एक ऐसे शख्स हैं जिन्होंने इस फिल्म इंडस्ट्री पर अपनी छाप छोड़ी है।
पंकज त्रिपाठी बिहार के गोपालगंज के एक बेहद छोटे से गांव बेलसंड के रहने वाले हैं। इनका जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। इनका बचपन बेहद साधारण माहौल में बीता।
10वीं तक पढ़ाई करने तक तो उन्हें यह भी नहीं पता था की फिल्में क्या होती हैं, क्योंकि उनके घर से करीब 20 किलोमीटर दूर सिनेमाघर था। जब वह 11 वीं में में गए तब अपने पिता के साथ खेतों में हाथ बंटाने लगे।
उन दिनों गांव में मनोरंजन के लिए केवल त्योहार के दिनों में कुछ नाटक कार्यक्रम हुआ करते थे जिसमें पंकज त्रिपाठी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे।
छठ पूजा के समय पंकज लड़की बनकर नाटक में भाग लिया करते थे और लोगों द्वारा सराहना पढ़ते थे। लोगों द्वारा उनके अभिनय को पसंद किए जाने पर उन्हें अच्छा लगता था।
स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए बिहार की राजधानी पटना आते हैं, लेकिन उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता।
फिर माता पिता के दबाव के चलते वह होटल मैनेजमेंट का कोर्स पटना से ही करने लगते हैं। लेकिन इसी दौरान वह थ्रियेटर भी करना शुरू कर देते हैं।
इसी दौरान उन्हें लगा कि वह इसी क्षेत्र में कामयाब हो सकते हैं। तब उन्होंने हिम्मत करके अपने माता-पिता से यह बात बताएं कि वह अभिनय करना चाहते हैं तो उनके पिता ने उनसे पूछा था कि क्या इससे गुजारा हो जाएगा तब उन्होंने अपने पिता को आश्वस्त किया और अपने सपने को पूरा करने के लिए दिल्ली के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नाटक विद्यालय में एडमिशन ले लिया।
यहां पर उन्हें अभिनय से जुड़े सभी तकनीकी पहलुओं की जानकारी मिली। लेकिन इसी समय एक ऐसा भी वक्त है जो उन्हें लगता कि उनका सपना टूट जाएगा क्योंकि उन्हें अंग्रेजी में बात करनी नहीं आती थी और उनके आसपास के लोग अच्छी अंग्रेजी बोला दिया करते थे। हालांकि उनके अभिनय की सराहना की गई और उन्हें प्रोत्साहन भी मिला।
पंकज त्रिपाठी का हमेशा से मानना रहा है कि स्थिरता और कड़ी मेहनत के दम पर हर चुनौती से पार पाया जा सकता है। पंकज त्रिपाठी जब पटना में थिएटर कर रहे थे तब वह अपना खर्चा खुद ही उठाते थे और इसके लिए वह होटल मौर्य में रसोई पर्यवेक्षक के रूप में नौकरी किया करते थे।
उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि होटल मैनेजर उन्हें अक्सर उनकी लापरवाही की वजह से डांटा करते थे। फिर पंकज त्रिपाठी उस होटल को छोड़ रहे थे तो उन्होंने मैनेजर से कहा था कि वह एक दिन इस होटल में अतिथि के रूप में आएंगे और खुद की मेहमान नवाजी करवाएँगे और कुछ ही सालों बाद उनकी यह बात हकीकत हो गई।
पंकज त्रिपाठी ने गैंग्स ऑफ वासेपुर, मांझी, रन, निल बटे सन्नाटा, ओमकारा, गुंडे और अनारकली जैसी कई सारी फिल्मों में काम किया है। वह आज बॉलीवुड के जाने-माने कलाकार बन गए हैं। इनका अभिनय वास्तविकता के इतना करीब लगता है कि उनके नाम से न पहचानने वाले दर्शन भी उनके किरदार के नाम से उन्हें जानते है और उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।
पंकज त्रिपाठी गोपालगंज के पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अभिनय के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाया और वास्तव में एक लंबा संघर्ष किया है।
वह छोटे -छोटे किरदार निभाते हुए आगे बढ़े और अपने अभिनय के दम पर आज दर्शकों पर छाप छोड़ते हैं। बॉलीवुड की तमाम सफल कलाकारों के बीच आज उनकी भी गिनती की जाती है।
सही कहा गया है कि जड़े आप को जमीन से बांधकर नही रखती है, जड़े तो बस जोड़े रखने का काम करती है और दूरियों से परे कामयाबी के झंडे तभी जोड़े जा सकते हैं, जब इंसान के अंदर कुछ करने का जुनून हो और स्वयं पर अटूट विश्वास हो। पंकज त्रिपाठी की कहानी इसका जीवंत उदाहरण है।
लेखिका : अर्चना
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