भावानुवाद विधा दोहा
भगवान शिव और पार्वती के मध्य हुए रोचक वार्तालाप का भावानुवाद प्रस्तुत है ! कवि का वक्रोक्ति-चमत्कार द्रष्टव्य है। मूल श्लोक इस प्रकार है —
कस्त्वं शूली मृगय भिषजं नीलकण्ठ: प्रियेSहम्
केकामेकां कुरु पशुपति: नैव दृष्टे विषाणे।
स्थाणुर्मुग्धे ! न वदति तरु: जीवितेश: शिवाया:
गच्छाटव्यामिति हतवचा पातु वश्चन्द्रचूड़ ।।
शिव -गौरा संवाद
द्वार बंद शिव देख कर ,द्वार खोल प्रिय काम ।
आया उत्तर शीध्र ही ,आप कौन क्या नाम ।।1
शूली सब कहते मुझे ,शूल ग्रस्त हो देव ।
जाओ खोजो वैद्य गृह ,यथा शीध्र स्वयमेव ।।2
नीलकंठ हूँ मैं प्रिये ,कहा रुद्र दे जोर ।
नीलकंठ तात्पर्य शिखि ,फिर कर केका शोर ।।3
मैं पशुपति हूँ प्रियतमे ,लगे बहुत प्रिय बैल ।
किन्तु दृष्टिगोचर नहीं ,सींग शीर्ष शिव शैल ।।4
मुग्ध स्थाणु हूँ ओह तो ,सोचो अपने आप ।
स्थाणु ? ठूँठ कब बोलते ,जीवन में चुपचाप ।।5
देवि ,शिवापति हूँ सुनों भटकाओ मत और ।
हो शृगाल जाओ न वन ,बोली गिरिजा गौर ।।6
बात-बात में शिव गये ,गौरी जी से हार ।
चंद्रचूड़ शिव कष्ट सब ,दूर करें संसार ।।7