परवर दिगारी दे

परवरदिगार दे

परवरदिगार दे

तासीरे-इश्क़ इतनी तो परवरदिगार दे
देखे मुझे तो अपनी वो बाँहें पसार दे

यह ज़ीस्त मेरे साथ ख़ुशी से गुज़ार दे
इस ग़म से मेहरबान मुझे तू उबार दे

मुद्दत से तेरे प्यार की ख़्वाहिश में जी रहा
यह जांनिसार तुझ पे बता क्या निसार दे

इतनी भी बे नियाज़ी मुनासिब नहीं कहीं
जो चाहता है वो ही नज़र से उतार दे

हर शोख मेरे दिल को सरापा वही लगे
ऐसा भी इश्क़ का न ख़ुदाया ख़ुमार दे

मनमानी दूसरों पे चलाने की सोच हो
इतना भी उसको कैसे कोई इख़्तियार दे

आराम तेरी बात से आजायेगा ज़रूर
उम्मीद कुछ तो मुझको मेरे ग़मगुसार दे

साग़र उसी की आज से मिन्नत करूँगा मैं
बिगड़े हुए नसीब जो पल में सँवार दे

Vinay

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003

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