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चाहत
( Chaahat )
हम हैं तेरे चाहने वाले, मन के भोले भाले।
रखते है बस प्रेम हृदय में, प्रेम ही चाहने वाले।
माँगे ना अधिकार कोई,ना माँगे धन और दौलत।
प्रेम के संग सम्मान चाहने, वाले हम मतवाले।
हम राधा के विरह गीत है, हम मीरा के भजनों में।
हम शबरी के अंश्रु सरीखे, बैठे है तेरे चरणों में।
तुमसे है जब प्रीत हमारा, तुमसे ही हर नाता हैं।
चाहते हैं बस प्रेम नयन में,और नही कुछ भाता है।
क्यों ना समझे प्रेम मेरा,या जान के भी अन्जान हो तुम।
या कि पतित है प्रेम मेरा, निःशब्द मेरे भगवान हो तुम।
एक बार तज के मर्यादा, सामने आओ अभय लिए।
प्रेमी तो हर युग में ही है, लाज बचाओ समय लिए।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )