देव भूमि की सैर | Poem dev bhoomi ki sair
देव भूमि की सैर
( Dev bhoomi ki sair )
यूं ही नहीं बसती जिंदगानी यहां,
यूं ही नहीं समाती बर्फ की आगोश में वादियां।
यूं ही नहीं लुभाती सैलानियों को जन्नत की घाटियां।
कुदरत भी सफेद चादर सी बिछा देता है उनके आगमन में,
कुछ तो बात है मेरे उत्तराखंड में,
कुछ तो बात है मेरे उत्तराखंड में।
चलो आज मैं अपने
उत्तराखंड से परिचित कराऊं,
कभी मसूरी तो कभी दून घुमाऊं।
इन हसीन वादियों की सैर कराऊं।
चलो मैं अपने पहाड़ों से परिचित कराऊं।
देवभूमि है मेरे उत्तराखंड का नाम इस
पावन पवित्र भूमि के दर्शन कराऊं,
कभी टिहरी तो कभी पौड़ी ले जाऊं,
चलो मैं अपने उत्तराखंड से परिचित कराऊं।
चौखंबा व चार धाम के दर्शन कराऊं,
हरिद्वार ऋषिकेश की आरती तुम्हें दिखाऊं,
चलो आज तुम्हें अपने उत्तराखंड से परिचित कराऊं।
टिहरी बांध की कथा चिपको आंदोलन की व्यथा तुम्हें सुनाऊं।
कभी राम तो कभी लक्ष्मण झूला तुम्हें झुलाऊं।
मांडवे की रोटी सिल्ल की चटनी व चैंसी तुम्हें चखांऊ,
बाल मिठाई व अर्से उत्तराखंड में तुम्हें खिलाओ।
चलो आज तुम्हें उत्तराखंड से परिचित कराऊं।
भेढू, काफ़ल, किंगोढ़े, हिसार फल तुम्हें चखाऊं।
मन तृप्त हो जाए ऐसा बुरांस का शरबत तुम्हें पिलाऊं।
चौफला, थड़िया, झूमेलो में झूमना तुम्हें सिखाओ,
डोल, दमोउ, मुशक बाजा बजाना तुम्हें सिखाओ।
बांस देवदार पेड़ के फायदे तुम्हें बताऊं,
कभी धारा देवी, चार धाम, केदारनाथ,
बद्रीनाथ के दर्शन तुम्हें कराऊं।
कभी निर्मल मीठे झरनों का जलपान तुम्हें कराऊं।
आओ चलो तुम्हें अपने उत्तराखंड से परिचित कराऊं।
लेखिका :- गीता पति (प्रिया)
( दिल्ली )