Prarthana
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प्रार्थना

( Prarthana )

 

एक है हम सब विश्व भी एक

धमनियों में बहे रक्त एक सा

 

जन्म मृत्यु में ना कोई भेद हैl

बालपन किशोरावस्था बुढ़ापा

 

 है उम्र के पड़ाव मे  समानता

 वस्त्र बोली भाषा सिर्फ़ अलग

 

संस्कृति सीखने की है ललक

हो जाए कहीं दुर्घटना कभी

 

उठाते हैं हजारों हाथ तभी

कलुषित हो क्यों गया मन

 

 ये हारने जीतने की होड़ हैl

प्रचंड अग्नि में दहकता विश्व

 

शांति पैगाम  कपोतो से सुनो

 बचपन छीनने का हक नही

 

 दंभी तुम क्या उन्हें दे रहे हो

दिशाहीन पथभ्रमित कर रहे

 

दोष सिर क्यूँ नहीं अब ले रहे

मिटा दी हस्तियां, बस्तियां

 

खंडहरो मे दबी सिसकियां

छीन ली प्यार की थपकीया

 

प्रकृति ने कब रोकी हवाएं

वर्षा ने कब नहीं भिगोया

 

सूरज देता उजाला सबको

चांद विश्राम कराता जगको

 

उठ संभल जा अभी वक्त हैl

उग्र रूप पृथ्वी ने अब धरा

 

जलमग्न, सूर्य का ताप बड़ा

भूसंखलन, भूकंप संकेत है

 

करबद्ध  सभी से है प्रार्थना

मिटा वैमनस्य की सीमाएं

 

एक विश्व, एक हो जाएं हम

शांति पथ पर बढ़ादो कदम

 

 

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

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