
दूध का क़र्ज़
( Doodh ka karz )
माँ का जगह कोई ले न सकता,
दूध का क़र्ज़ उतार ना सकता।
माँ ने कितनी ये ठोकर है खाई,
दूध की लाज रखना मेंरे भाई।।
न जानें कहां-कहां मन्नत माॅंगी,
मंदिर, मस्जिद, चर्च में जाती।
तू जग में आऐ अर्ज़ ये लगाती,
पीड़ा कष्ट बहुत दुखः उठाती।।
मत कर कभी माँ का अपमान,
घर से निकाल के उसको बाहर।
तू भी कभी तो माँ- बाप बनेगा,
तब तुझ पर यह कहर बरसेगा।।
तुझ पे कभी कोई आँच न आऍं,
ऐसा माँ सुरक्षा कवच बनाऍं।
तुझसे रूठ जाएं चाहे जग सारा,
सगा पिता भी हो चाहें तुम्हारा।।
माँ का मन कोमल रहता इतना,
अपने आप से बहुत ही ज्यादा।
माँ का सदा ही रहता आशीष,
चाहें दो तुम दुखः एवं तकलीफ।।
क्यों कि तुम हो माँ का ही अंश,
माँ नहीं चाहती ये कोई विधवंश।।
रचनाकार :गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )