
क्षमा
( Kshama )
रूपहरण घनाक्षरी
दया क्षमा हो संस्कार, सदाचार और प्यार।
परोपकार गुण को, घट नर ले उतार।
व्यक्तित्व को चार चांद, यश कीर्ति हो अपार।
क्षमा बड़ों का गहना, भव सागर दे तार।
बड़े वही जगत में, छोटों को करते माफ।
तारीफ में ताकत है, परचम ले विस्तार।
क्षमा वीरों को सुहाती, क्षमा सरलता लाती।
क्षमा से ही महकते, गुलिस्तां हो गुलजार।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )