सुभाष चंद्र बोस : Poem on Subhash Chandra Bose
सुभाष चंद्र बोस
शायद सदियों में होती हैं
पूरी एक तलाश,
शायद विश्वासों को होता
तब जाकर विश्वास।
शायद होते आज वो जिंदा
भारत यूं ना होता,
शायद दुश्मन फूट-फूट कर
खून के आँसू रोता।
आजादी की भेंट चढ़ गये
हुआ अमर बलिदान,
श्रद्धा पूर्वक नमन आपको
हे वीरों की शान।
मोल असल इस आजादी की
आपने हीं समझाया,
दिया जवाब हर इक ईंटों का
पत्थर बन टकराया ।
सबसे उत्तम जुदा सभी से
खुद की राह बनायी,
माना अगणित ठोकरें खायी
मुंह पर उफ ना आयी।
बचपन से हीं कूट-कूट कर
भरा था स्वाभिमान,
रग-रग उन्नत भाव भरे थे
दिल में था तूफान।
मिली सफलता राहों में जब
कुछ ने रोके रस्ते,
स्वप्न अधूरे लगने लग गये
अपनों को हीं खटके।
फिर भी हार न मानी डटकर
तूफानों को रोका,
युवाओं का साथ मिला तब
मिल गया बेहतर मौका।
जय हिंद का बिगुल फूंक कर
ली हाथों में जान,
आपके रूप में पाया हमने
एक अलग वरदान ।
निकल कैद से उन गोरों की
घूमे सकल जहान,
आंखों में विश्वास एक था
मुक्त हो हिन्दुस्तान।
हर संभव कोशिश थी मन में
बनी हिंद की फौज,
अपने दम पर खत्म किये थे
अंग्रेजों की मौज।
दिल्ली चलो का नारा देकर
एक माहौल बनाया,
देख के आपके अटल इरादे
मौत भी था थर्राया।
सन पैंतालीस आ गया घिरकर
हो गयी ऐसी बात,
सोचा ना जो स्वप्न में हमने
आपका छूट गया साथ।
राज पड़ गये परदे कितने
अब तक जान ना पाया,
किसके चलते आपसे हीरे
भारत ने है गंवाया।
फिर भी उर में आप बसे हैं
करते हम सम्मान,
आपके ऊपर करेगी हरदम
आजादी भी गुमान।

कवि : प्रीतम कुमार झा,
महुआ, वैशाली, बिहार
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