शांतिदूत | Poem shantidoot
शांतिदूत
( Shantidoot )
शांति दूत सृष्टि नियंता माधव हस्तिनापुर आए
खबर फैल गई दरबारों में मैत्री का संदेशा लाए
महारथियों से भरी सभा स्वागत में दरबार सजा
दिया संदेशा पांडवों का केशव क्या है कहो रजा
पुत्र मोह में बंधे हुए धृतराष्ट्र कुछ कह नहीं पाते थे
अधिकार आधा पांडवों का देते हुये सकुचाते थे
आधा नहीं दो पांँच गांव ये संधि प्रस्ताव जरा मानो
भाई भाई में महायुद्ध होगा भीषण विनाशक जानो
वीरों का रक्त बहेगा अविरल महाकाल मुख खोलेगा
प्रलयंकारी ज्वालाएं बरसेगी विनाशक शस्त्र बोलेगा
दुर्योधन मद मे अंधा हरि वचनों को ना जान सका
शांतिदूत खुद नारायण ना हरि रूप पहचान सका
दुशासन बोला घायल करे वाणी के तीखे तीरों से
सुलह की सब बातें छोड़ो बांधो इनको जंजीरों से
जो जगत का पालन करते वो सृष्टि के करतार है
चक्र सुदर्शन धारी माधव हम सबके खेवनहार है
दिव्य रूप अलौकिक भरी सभा में दिखा दिया
जल थल नभ सारी सृष्टि युग पुरुष समा लिया
यादवेन्द्र कुपित हो बोले बांधो दुर्योधन आज मुझे
महाभारत कारण तुम हो रक्तरंजित सरताज तुझे
नीर समीर अनल मुझमे धरा व्योम सब चांद तारे
सकल चराचर विचरण जो जीव बसते मुझमें सारे
मुझसे ही आनंद जगत में महाप्रलय भी आते हैं
जल स्रोत निकल सारे महासागर में मिल जाते हैं
सबका भाग्यविधाता हूं जन्म मरण मुझसे पाते
सबकी डोर मेरे हाथों में सब लौटकर मुझमें आते
संधि का प्रस्ताव दुर्योधन तुमने आज ठुकराया है
भीषण महासंग्राम हो सुन काल तेरा भी आया है
रथि महारथी महायुद्ध होगा तीरों से तीर टकराएंगे
ज्वालाएं बरसेगी भू पर नरमुंड धरा पर आएंगे
बंधु बांधव प्रतिद्वंद्वी हो मर मिटने को होंगे तैयार
अनीति की हार होगी सत्य की होगी जय जयकार
जो सुपथ अनुगामी है उल्लेख उनका भी आएगा
इतिहासों के पन्नों में समर महाभारत कहलाएगा
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )