Poem sukh aur dukh

सुख और दुःख | Poem sukh aur dukh

सुख और दुःख

( Sukh aur dukh)

 

 

भेंट हुआ एक दिन सुख दुःख का

दुःख ने खबर लिया तब सुख का,

 

दुःख बोली ओ! प्यारी बहना

कितना मुस्किल तुमसे मिलना

 

रहती कहां?नहीं हो दिखती

हर कोई चाहे तुमसे मिलना,

 

सुख ने दुःख को,गले लगा कर

भर मन में मुस्कान,मनोहर,

 

दीदी!तुम तो, बड़ी सयानी

अपनी बीती,कहो कहानी,

 

दुःख ने सुख को लगी बताने

जोर से हंस कर,लगी सुनाने,

 

यहां वहां स्थान कहां न?

व्यक्ति वस्तु ,मैं रही जहां न

 

ईर्ष्या द्वेष जलन चिंता सब

मुझे बुलाते रहते जब तब,

 

एक गजब की बात बताऊं

तेरे बहनों की बात सुनाऊं

 

मुसीबत संग आती परेशानी

रहते हम मिल जैसे रानी

 

आप बताओ अपनी बीती

कभी नहीं न मिलती दिखती

 

बड़े जोर से कही ख़ुशी तब

बोली मुझको ढूढ़ा ही कब

 

ढूंढ़ सको तो ढूंढ़ो मुझको

हर पल दिख जाऊंगी सबको

 

सब बच्चों के किलकारी में

मां के ममतामय लोरी में

 

कभी तो रस्ते में मिल जाती

कभी तो यारों के यारी में

 

कभी किसी का प्यास बुझाकर

कभी लिवाला दो चार खिलाकर

 

कभी गोद में मां के छिप कर

या अपनों में प्यार लुटाकर

 

बॅंट खुद थोड़े थोड़े पल में

आज आज में कल के कल में

 

मैं मिल जाती कभी किसी के

गैरों के भी अपनेपन में।

 

झांक कर देखो अपने अंदर

सुख का गहरा एक समन्दर

 

मैं मिल जाऊं खुद ही खुद में

बन कर कविता ग़ज़लें सुंदर,

 

जाति धर्म का फेंको चश्मा

मानवता का जीवन जी लो

 

मिल जाउंगी दुःख में भी मैं

पहले प्यार का प्याला पी लो।

?
रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी
( अम्बेडकरनगर )

 

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