सब संसार में | Kavita Sab Sansar Main
सब संसार में
( Sab Sansar Main )
तांबे की जमी होगी आफताब सर पर होगा
हश्र के मैंदा में जब हमारा मिलना होगा
होगी न जरूरत कहने की कुछ रब से
सारा हिसाब पन्नों मे लिखा अपना होगा
कर लो नफ़रत या मुहब्बत
पूजा अर्चना या इबादत
जाने जाओगे सिर्फ इंसान के नाम से
रख लो भले यहाँ मोहन या मुहम्मद
रब वही ईश्वर वही
जुदा है फ़कत आपकी जेहन से
मानवता हि असली धर्म है
जुड़े हैं सब अपने अपने संघ से
कोई कहता महा प्रलय
कोई कहता हश्रे मैदाँ
छोड़ धर्म इंसानियत का यहाँ
कह रहा कोई जन्नत कोई स्वर्ग वहाँ
ऐसा नहीं है कुछ कहीं पर
मुक्त हो मिल जाना है एकाकार मे
है भोगदंड सब यहीं धरापर
प्रेम इर्ष्या द्वेष सब हैं यहीं संसार में
( मुंबई )