
प्रथम हो शिक्षक का सम्मान
( Pratham ho shikshak ka samman )
गुरु है गुण निधियों की खान
प्रथम हो शिक्षक का सम्मान
गुरु है ज्ञान का सागर सारा
भरा रग रग में स्वाभिमान
प्रथम हो शिक्षक का सम्मान
बहाते ज्ञान की अविरल धारा
बनाते उज्जवल जीवन सारा
गुरु वचनों पे हमें अभिमान
सिखाते जीवन की लय तान
प्रथम हो शिक्षक का सम्मान
अंधकार हर लेते सारा
अंतर्मन होता उजियारा
देशप्रेम भावो में भरकर
वाणी का करते गुणगान
प्रथम हो शिक्षक का सम्मान
संस्कार पावन कर देते
ज्ञान से झोली वो भर देते
रख देते वो हाथ शीश पर
अधरों पे हो मधुर मुस्कान
प्रथम हो शिक्षक का सम्मान
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )