Poem suni holi
Poem suni holi

सूनी होली

( Suni holi )

 

छेड़छाड़ ना कोई शरारत ना कोई हॅंसी ठिठोली
ना कोई रंगों की महफ़िल ना कोई घूँट ना गोली
सारा  जग  वैसा  ही  है पर लगती एक कमी है
सोच  रहा  बैठा  मेरा  मन  कैसी  होली हो ली

 

भीड़ भाड़ औ’ शोरो गुल सब सन्नाटा बन बिखरा
जितना सबके मनभाया वह उतना मुझकोअखरा
ना  रूठे  तुम ना ही तुमने मुझ पर प्यार जताया
मन  ने  तुम्हें  नहीं  पाया तो मुझको रोना आया

हर बुजुर्ग चेहरे पर मुझको तुम ही आये दिखते
हर मासूम शरारत में तुम मुझ पर रहे उमगते
चले  गये  क्यों तुम दोनों कर मेरी दुनिया सूनी
भाव  नहीं  कोई  भी मेरे  मन में अब हैं जगते

सूनेपन में मुझे अचानक ही लगता है जैसे
शायद मैंने सुनी तुम्हारी या फिर माॅं की बोली
सोच  रहा  बैठा  मेरा  मन कैसी होली होली

देख रहे थे जिन नजरों से तुम मैंने पढ़ ली थीं
उनकी भाषा में सोचों की हर सच्चाई गढ़ ली थी
रंग प्यार के कितने कितने साथ लिए तुम आये
माथे  तिलक किया मेरे मुख पर हैं रंग लगाए

सजा चुके थे तुम दोनों ही स्वागत बंदनवारे
तुम तक आऊॅं उसके पहले फैले हाथ तुम्हारे
जगमग रंग वही माॅं की ऑंखों में भी उभरे थे
जिन  रंगों  के तुम ले आये थे देने उजियारे

तुम दोनों की अगणित बातें उनमें रहीं अबोली
चाहें अगणित रंग गुलालों में थीं तुमने घोलीं
सोच  रहा  बैठा  मेरा मन कैसी होली होली

मेरे पास सभी कुछ है पर मन टूटा बिखरा है
खटक रही है कोई कमी सी मेरे इस जीवन में
बुरी लग रही है आंखों में वह आती जनसंख्या
जो  अनचाहे  आती  जाती है बाहर ऑंगन में

नहीं अकेला हूॅं इस घर में और बहुत कुछ भी है
वह सब जिसकी करे कामना कोई भी दुनिया में
जो भी तुम दोनों ने पाया मुझे दे दिया अपना
लेकिन वह किसके संग बाॅंटूॅं सोच रहा हूॅं मन में

तुम और माँ दोनों ही तन से मेरे पास नहीं हो
सजी हुई है लेकिन मन में तुम दोनों की टोली
सोच  रहा  बैठा  मेरा  मन कैसी होली हो ली

?

Manohar Chube

कवि : मनोहर चौबे “आकाश”

19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001

( मध्य प्रदेश )

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