
तुम मत रोना प्रिय
( Tum mat rona priye )
तुम मत रोना प्रिय मेरे, यह तेरा काम नही है।
जिससे मन मेरा लागा, मोरा घनश्याम वही है।।
जो राधा का है मोहन, मीरा का नटवर नागर।
वो एक रसिक इस जग का, मेरा मन झलकत गागर।।
शबरी की बेरी में दिखे जो, नारी अहिल्या तारण।
खम्भा फाड के निकले हो या, रूप धरे हरि वामन।।
मर्यादा पुरूषोत्तम हो या, कर्म योग के वाहक।
बन वाराह धरा को धारे,नारायण समवाहक।।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )