जनहित में
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जनहित में

( Janhit mein : Hindi vyang )

प्रजातंत्र में तंत्र का हर कार्य जनहित में होता है यानि तंत्र जो भी उचित अनुचित कानूनी गैर कानूनी साफ या गंदा काम करता है उससे जनहित होना चाहिए और यदि उन अनैतिक कार्यो से जनहित नही होता है तब भी जनहित होना चाहिए।

तंत्र में तन अफसर का और त्र मंत्री का होता है यदि दोनो सर्किट हाउस में नाश्ता और डिनर करते है तो जनहित के लिए करते है और नित्य क्रिया करते है तो वह भी जनहित के लिये करते है।

अधिकारी घपला करता है तो वह भी जनहित के लिये होता है विभागो और मंत्रियों में जो पत्राचार होता है वह भी कुछ इस प्रकार का होता है जनहित के लिए ।

मंत्रीः- घोटाले के लिए विदेशो से जनहित में तीन जहाज चारा मंगवाने की आवश्यकता है। अधिकारी:- तीन जहाज के चारे में तीन करोड़ का घपला जनहित में करना आवश्यक है। मंत्री उस तीन करोड़ घपले में से दो करोड़ जनहित में मुझे दिये जायेंगें तभी मैं जनहित में स्वीकृति दूंगा।

अधिकारी:- सर, आप तीन करोड में से दो करोड़ मांग रहे है और मुझे मात्र एक करोड़ रू़ छोड रहे है यह जनहित में नही है मुझे भी कम से कम डेढ़ करोड़  जनहित में दिये जावे मगर वह तीनों के तीनों जहाज चारा भुगतान के बावजूद देश में नही आता है।

भुगतान से चंद दिनों जनों का हित हो जाता है और जानवरों के हित की शपथ तो मुख्यमंत्री ने नहीं ली होती है। एक मनोरंजक समाचार एक दैनिक में पढ़ने को मिला था कि एक मंत्री ने जनहित में एक थानेदार को थप्पड़ मारा था इस बयान पर शासन ने एक जाॅच आयोग बिठा दिया था।

यह घटना मध्यप्रदेश की है एक प्रांत के मुख्यमंत्री ने जनहित में दंगे करवाये थे । जनहित में भाई भतीजावाद होता है । जनहित में भ्रष्टाचार होता है। जनहित में सैक्स स्कैण्डल होता है। जनहित में कितने कितने शुभ कार्य मजबूरी में नहीं करना पड़ते ?

जनहित में बनाये कानून ताक में रखकर मुख्यमंत्री की लड़की का एडमीशन मेडिकल काॅलेज में हों जाता है और लड़का रंजीत टीम में  रन न बनाकर भी चुन लिया जाता है बैंक एक अधिकारी से मैं पिछले दिनो मजबूरी में मिला । मेरी मजबूरी का हल उनके पास नही था ।

क्योंकि मैं ईमानदार आदमी था । पर ऋण लेकर पचा जाने वालो को वे ऋण देने के लिए ढूंढते फिरते थे । उन्होंने विन्रमता से बतलाया कि वे मलेशिया इण्डोनेशिया सिंगापुर एल.टी.सी के माध्यम से घूमकर आयें है मैं सामान्य पाठक को बतला दॅू कि एल.टी.सी का मतलब होता है लीव ट्रेवल कनेसेशन यानि सरकार उन्हें हर दो साल में घूमने का पैसा देती है।

मैने पूुछा कि जो वेतन उन्हें मिलता है उसी से वे क्यों नहीं घूमते ? क्योंकि उन्हें वेतन भी कम नहीं मिलता । यदि हिसाब लगाया जाए कि हर तहसील के तीन चार केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी, हर जिले के पाॅच दस और हर महानगर के सौ दो सौ कर्मचारी इस तरह गरीब जनता से वसूला गया रूपया गुलछर्रे में उड़ाते है तो खरबो रूपया इस गरीब देश का मलेशिया में मालिश करने वाली महिलाओं के पास इनके माध्यम से चला जाता है।

इसे सरकार बंद नही कर सकती और इन नौकरों में इतना नैतिक बल नहीं कि वह इसे स्वयं बंद करने की आवाज उठाये । क्योकि वह तो जनहित में हर वर्ष स्वयं का वेतन बढाने के लिए हड़ताल करते रहते है।

सरकार जनहित में रसोई गैस की कीमत बढ़ा देती है गेहॅू जनहित में सोने की कीमत कें बराबर हो गया है जनहित में कई लोग भूखे मर जाते है, बाढ़ से मर जाते है, भूकम्प से मर जाते है, महामारियों से मर जाते है। हमारे शहर का मशहूर स्मगलर चुनाव लड़ रहा था, मैने डरते डरते उससे पूछा “दादा आप चुनाव क्यों लड़ रहे है ?

उन्होंने रटा रटाया जवाब दिया “हम जनहित में गरीबो” की सेवा के लिए चुनाव लड़ रहे है ? हर हत्यारा, गुण्डा स्मगलर, भ्रष्ट, बेईमान आदमी जनहित करना चाह रहा है समाज सुधारना चाह रहा है, समाज सेवा करना चाह रहा है पहले उन्होने ईमानदार और निर्दोष लोगो की हत्याएं करके समाज सुधरा अब बचने के लिए जनहित में विधायक या सांसद बनना चाह रहे हैं उन्हें  जनहित में चुनाव जीतने से कौन रोक सकता है।

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लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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