प्रभात सनातनी “राज” गोंडवी की कविताएं | Prabhat Sanatani Poetry
दुःख भरी होली
मैं कैसे बताऊं की होली हर घर में मनाते हैं,
कैसे कहूं कि हर घर में अबीर गुलाल उड़ाते हैं।
मैं आपको सारी सच्चाई बयां कर रहा हूं,
हर कोई ध्यान से पढ़ना मैं क्या लिख रहा हूं।।
पिता दारू पीकर चौराहे पर पड़ा हुआ है,
बेटा आंख में आंसू लेकर पास खड़ा हुआ है।
पिता चौराहे पर अपनी इज्जत उछाल रहा हैं,
बेटा नहीं समझ रहा, यह सब क्या चल रहा है।।
बरस में एक बार होली का त्यौहार आता है,
हर कोई होली का जश्न धूम-धाम से मनाता है।
पिता आज चौराहे पर दारू पीकर पड़ा है,
और बेटा आंख में आंसू लेकर पास में खड़ा है।।
मां ने सोचा था शाम को अच्छे-अच्छे पकवान बनाऊंगी,
परिवार के साथ बैठकर अपने बच्चों को खिलाऊंगी।।
हम सब मिलकर बड़े प्यार से होली मनाएंगे,
अपने जीवन में खुशियों की धूम मचाएंगे।।
पर अफसोस मां का सोचा सब गलत हो गया,
क्योंकि उसका पति आज बेवड़ा हो गया।।
घर पर बच्चे रो रहे हैं बिलबिल रहे हैं,
छोटे-छोटे बच्चे हैं बहुत घबरा रहे हैं।।
पिता के चेहरे पर पानी छिड़क रहे हैं,
लगता है पापा चिरनिद्रा में सो रहे हैं।।
पत्नी बदहवास होकर बेहोश हो जाती है,
होली के दिन ही घर की खुशी छिन जाती है।।
तुरंत सारी खुशियां मातम में बदल जाती है,
होली के दिन शाम को मां रंग नहीं लगती है।।
यह जो नशा है,किसी की मांग का सिंदूर उजाड़ देता है,
परिवार एकजुट था उसमें भी खलल डाल देता है।।
चौराहे पर सब लोग कोसते-कोसते घर चले जाते हैं,
बच्चों के सामने हमेशा के लिए अंधेरा छा जाते हैं।।
क्या कहूं यह त्यौहार खुशियां लाता है कि गम देता है,
पल भर में ये सबकी खुशी को मातम में बदल देता है।।
सब लोग त्योहार मनाओ पर ध्यान रहे इतना,
किस परिवार पर किसका बोझ है कितना।।
ध्यान से त्यौहार मनाते रहो जिंदगी बचाते रहो,
खुद न पियो और दूसरों को भी पीने से बचाते रहो।।
यह संदेश मैं सारी समाज को दे रहा हूं,
बस अपनी कलम यहीं पर रोक रहा हूं।।
होली विरह गीत
भींग जाई चुनरी,भींग जाई चुनरी,रहय देव देवर भींग जाई चुनरी।
पिया नाही आए जिया नाही लागै,मोरी बतिया से काहे गए मुकरी।।
रहय देव देवर…एक बरस पर होरी आवै, हां होरी आवै,
सबकै कंत पर मोर नाही आवै, हां मोर नाही आवै।
मोर फूटि भागि कुछ नाही लखावै, हां नाही लखावै।
मन नाही माने मोर सुध बुध बिसरी।।
रहय देव देवर भींग जाई चुनरी…….
देख फागुन कै हुड़दंग होली, हां हुड़दंग होली,
अईहौं कंत तव भिगी मोर चोली, हां भिगी मोर चोली।
बीस बरस से नयना निहारे, हां नयना निहारे।
लागत हय कंत का मिली हमसे सुघरी।।
रहय देव देवर भींग जाई चुनरी….
कहिन,अईतय फगुनवा मा सारी रंगईबै, हां सारी रंगईबै,
नया नया जोड़ा औ गहना गढै़यबै, हा गहना गढै़यबै।
तन से खुशी भई हां मन मा समानी, हां मन मा समानी,
जानि कै भूले या मोरि सुधि गई उतरी।
रहय देव देवर भींग जाई चुनरी।।…
कंत न आए न कोई खबरै आई, न खबरै आई,
सुनी सुनी चोलिया मा के रंग लगाई, के रंग लगाई।
ई फागुन बयरिया मोर मन तड़पावै, हां मन तड़पावै।
ई फाग चौताल न मन मोर सचरी।।।
रहय देव देवर भींग जाई चुनरी।।
बड़े जतन से पापड़ बनाएन, हां पापड़ बनाएन,
मेहनत से हम सेजिया सजाएन, हां सेजिया सजाएन।
अईहौं पिया तौ खूबै बतियैबै, हां खूबै बतियैबै,
अब के खाई मोर बनाई गई कचरी।।
रहय देव देवर भींग जाई चुनरी।।
होलिका दहन
होलिका दहन फागुन मास पूर्णिमा को मानते हैं,
एक दूसरे से गले मिलते और गुलाल उड़ाते हैं।
होलिका दहन के दिन होलिका की पूजा होती है,
हम प्यार से गुझिया खाते और अबीर लगाते हैं।।
राक्षसी होलिका को जलाकर खुशियां मनाते हैं,
गाली गलौज करते और हम त्योहार मनाते हैं।
दुःख भी प्रकट करते हैं होलिका को जलाकर,
फाग गाकर झूमकर हम यह त्यौहार मनाते हैं।।
होलिका को आग में न जलने का वरदान था,
उसी घर में एक भक्त हुआ नाम प्रह्लाद था।
हिरण्य कश्यप भगवान विष्णु का शत्रु बन गया,
होलिका ने जिसे जलाना चाहा वो भक्त प्रह्लाद था।।
होलिका दहन कर अपने अंदर की बुराई को जलाते हैं,
हम अपने आत्मा की शुद्धि करते मन पवित्र हो जाते हैं।
पवित्रता का ही प्रतीक है हमारा होलिका दहन करना,
ये त्यौहार हम सब लोग मिलकर खुशियों से मनाते हैं।।
प्रणाम है तुम्हें (महिला दिवस विशेष)
प्रणाम है तुम्हें, हे जननी प्रणाम है तुम्हें..
संवेदनाओं को समझने वाली,
प्यार का अनंत परवाह करने वाली,
हे मां, तेरा ही सबसे विशाल हृदय है,
हे मां,तू ही जगत का कल्याण करने वाली।।
प्रणाम है तुम्हें, हे जननी प्रणाम है तुम्हे…
मर्यादा में रहकर कर्तव्य निभाने वाली,
हे मां,अपने ही अधिकारों का दमन करने वाली।
पुत्र के प्रति तेरा कितना अनुराग है मां,
अपने बच्चों को आन का स्वाभिमान बताने वाली।।
प्रणाम है तुम्हें,हे जननी प्रणाम है तुम्हें…..
हे मां, तुम ही तो बच्चों के जीवन में अमृत घोलती हो,
बच्चों को सीखाने के लिए तोतली भाषा बोलती हो।
अंतत प्रेम का सागर बहता रहता है तेरे मन में,
पुत्र के लिए मर्यादा लांघती सारे रिश्ते-नाते तोड़ती हो।।
प्रणाम है तुम्हें, हे जननी प्रणाम है तुम्हें…..
होली
आया फागुन मन बौराया,
सारे जग का तन हर्षाया।
कामदेव की कृपा हो गई,
देवर भाभी से प्रीत लगाया।।
होली के हैं खेल निराले,
रंग-बिरंगे सब मतवाले।
धूम मच गई बस्ती में,
सारे हो गए रंग हवाले।।
भयो भोर भीगे सब रंग में,
भाभी नाचे देवरा संग में।
मार गुलाल अबीर पिचकारी,
जैसे लड़ रहे हों सब जंग में।।
देख पति संग भाभी लजानी,
पति की प्रीत है मन में समानी।
कोमल तन और कंचन माया,
पत्नी के हृदय की गति जानी।।
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
हम महान थे, महान है और महान रहेंगे,
हमारे साथ वैज्ञानिक और विज्ञान रहेंगे।
रामन प्रभाव की खोज करने वाले रमन जी,
28 फरवरी का दिन याद था और याद रहेंगे।।
भारत रत्न भौतिकी नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले,
आप ही ने तो लेनिन शांति पुरस्कार प्राप्त करने वाले।
ध्वनि कंपन और कार्यों का सिद्धांत भी दिया था आपने,
वाद्ययंत्रों की भौतिकी पर का लेख तैयार करने वाले।।
पढ़ाई के क्षेत्र में प्रकाश की क्रांति फैलाई आपने,
रामन प्रभाव से प्रकाश की ज्योति जलाई आपने।
पारद प्रकाश की तरंग लंबाई में परिवर्तित किया,
स्पेक्ट्रोस्कोप की बात जनजन तक पहुंचाई आपने।।
भारतीय गौरव बनकर देश की आप शान बने,
युवाओं के प्रेरणा स्रोत और सबका अभिमान बने।
आपकी योग्यता से हर कोई प्रभावित हो गया,
भारतीयों के हृदय के आप ही शिखर सम्मान बने।।
पुलवामा हमला
पुलवामा हमले को हम और राष्ट्र कैसे भूल सकते हैं,
उस पाकिस्तान की गद्दारी को हम कैसे भूल सकते हैं।
बस पर सवार जवानों पर वार करने वाले कायर,चौगले,
आदिल अहमद डार हत्यारे,तुम्हें हम कैसे भूल सकते हैं।।
भूल नहीं सकता है भारत हे लाल तेरी कुर्बानी को,
भूल नहीं सकता है भारत मां की आंख से बहते पानी को।
भूल नहीं सकता है भारत तेरे वीरता और पराक्रम को,
भूल नहीं सकता है भारत शहीदों की अमर कहानी को।।
तेरी वीरता की गाथा को लिखना बस की बात नहीं है,
तेरे सामने भिड़ जाए दुश्मन,ये दुश्मन की औकात नहीं है।
तेरे चाल की आहट पाते ही जब दुश्मन ही थर्राता हो,
सोते हुए कायरो पर, कभी वीर करते आघात नहीं है।।
वीर सपूतों को यह राष्ट्र समर्पित श्रद्धांजलि करता है,
बलिदान तुम्हारा व्यर्थ नहीं गया राष्ट्र अभिमान करता है।
उन कायरो को उन्हीं की भाषा में राष्ट्र ने पाठ पढ़ाया है,
बारम्बार भारत देश आपका वंदन व अभिनंदन करता है।।
मातृभूमि की रक्षा के खातिर तूने अपने प्राण गंवाए थे,
दुश्मन को दुश्मन की भाषा में ही दुश्मन को समझाए थे।
सो गए थे धरा पर मां का आंचल पकड़ कर चिर निद्रा में,
तेरे पराक्रम,शौर्य को देखकर दुश्मन तेरे पास न आए थे।।
संत रविदास
संत शिरोमणि, जगत संत गुरु बन सारे जग को भाए,
सतगुरु बनकर सारे जग में, रविदासीय पंथ अपनाए।
माघ पूर्णिमा दिन रविवार काशी की प्यारी वो भूमि,
आत्मज्ञान का मार्ग दिखा जात-पात का भेद मिटाए।।
संतोखदास था नाम पिता का, कलसांदेवी माता प्यारी,
संत रविदास को जन्म देकर हो गई सारे जग में न्यारी।
कुरीतियों को दूर भगाकर जग में किया ज्ञान का उजाला
विनम्रता तथा श्रेष्ठता की जग में जलती है ज्योति तुम्हारी।।
अंधविश्वास और आडंबर को गुरु तूने है दूर भगाया,
अज्ञानता को ज्ञान दिया और दानव को मानव बनाया।
सारे जनमानस को समझ करके नेक राह पर तुम लाए,
इंसानों को उनका मूल्य और कर्तव्यों को है बतलाया।।
आप बड़े दयालु, दानवीर थे जग को ज्ञान सिखाया,
सामाजिक एकता की ताकत है जन-जन को समझाया।
कोई ऊंच-नीच नहीं है इस जग में सबका मालिक एक है,
जनसाधारण की भाषा में कहकर सबका भ्रम मिटाया।।
पथ-प्रदर्शक
पथ तभी मेरा गुलजार होगा इस जमाने में,
क्या रखा है यारों झूठा ही सब दिखाने में।
मेरे गुरु की कृपा मुझ पर बनी रहे हमेशा,
नमन है गुरु आपको,जीवन सफल बनाने में।।
शिक्षक की हमारे पथ-प्रदर्शन है मेरे इस जीवन का,
शिक्षक ही प्रेरणा,आत्मविश्वास है मेरे इस उपवन का।
शिक्षक के चरणों में यह जीवन को समर्पित करता हूं,
शिक्षक ही निर्माता है मेरे इस प्यारे से वतन का।।
मेरी बुद्धि को प्रखर कर पथ को दिखलाने वाला,
अच्छा-बुरा,झूठा-सही का फर्क समझाने वाला।
मेरा गुरु ही तो है मेरे जीवन का आधार स्तंभ,
मेरे जीवन का अगुवा,मुझे मार्ग बतलाने वाला।।
मेरी हर इक गलती पर बार-बार टोकने वाला,
गलत पथ,गलत संगति से मुझको रोकने वाला।
मैं क्या हूं, मुझे क्या करना चाहिए क्या नहीं,
सारथी बन मेरे जीवन के रथ को हांकने वाला।।
मन में मानवता और भाई-चारा पैदा करने वाला,
मेरे मन में दूसरों के प्रति प्रेम का भाव भरने वाला।
मेरे गुरु, मेरे माता-पिता ही अच्छे पथ-प्रदर्शक हैं,
ये तीनों ही है,जो मेरे तीनों तापों को हरने वाला।।
मेरे अच्छे पथ-प्रदर्शक मेरे मां-बाप हैं,
मेरे पथ-प्रदर्शन मेरे गुरुजन आप हैं।
मेरे गुरु ने मेरे जीवन को सुंदर बनाया,
मेरे ऊपर मेरे गुरुजन का ही प्रताप है।।
सारी चुनौतियों से निपटना सिखलाया है,
सारी परेशानियों से टकराना सिखलाया है।
मुझे हिम्मत, ताकत और ढांढस भी दिया,
बुरे वक्त में नहीं घबराना,भी सिखलाया है।।
सशक्त बनाकर मुझे,मुझे नई राह बतलाया,
मेरे पथ-प्रदर्शक का तस्वीर सामने उभर आया।
मेरी जिम्मेदारियां क्या है,क्या है मेरी जिंदगी,
मेरे पथ-प्रदर्शक ने मुझे उससे अवगत कराया।।
मेरी छोटी सी काया को बड़ा और महान बनाया,
अपरिचित था मैं, मुझे जग से परिचय कराया।
स्वयं चलो राह पर किसी को न देखो गिरते हुए,
गुरु, पथ-प्रदर्शक बन कदम से कदम मिलाया।।
बनोगे कुछ, कुछ तुम हासिल तो कर ही लोगे,
सही ढंग से अपनी जिम्मेदारियों को ढो ही लोगे।
बस अब अच्छे पथ-प्रदर्शक की जरूरत है तुम्हें,
तुम एक दिन अपने देश की तस्वीर बदल ही दोगे।।

प्रभात सनातनी “राज” गोंडवी
गोंडा,उत्तर प्रदेश
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