प्रगति दत्त की कविताएं | Pragati Dutta Hindi Poetry
आखिर ये ,क्या कभी है
आखिर ये ,क्या कभी है ?
क्यूं ज़िन्दगी, थमी है ?
क्यूं बात ना , बनी है ?
आंखों में क्यूं , नमी है ?
क्यूं ना मिलती , रौशनी है ?
उलझी क्यूं , ज़िन्दगी है ?
बेचैनी क्यूं , बढ़ी है ?
खुशी क्यूं , गुम गयी है ?
सब कुछ मिला है फ़िर भी ,
आखिर ये , क्या कमी है ?
जिंदगी तेरे रंग हज़ार
जिंदगी तेरे, रंग हज़ार ।
किसी में नफ़रत , किसी में प्यार ।
कहीं है पतझड़ ,कहीं बहार ।
किसी में जीत , तो किसी में हार ।
कहीं सुकून तो , कहीं तनाव ।
हर पल रंग ,बदलती ज़िन्दगी ।
कभी सुख, देती बेशुमार ।
कभी कभी , खो जाते अपने ।
कभी मिल जाते , बिछड़े यार ।
कभी किसी पर ,करती प्रहार ।
और कभी, देती उपहार ।
किन्तु तेरे ,दिन बस चार ।
फिर चल जियें, खुशी से यार ।
भर दें तुझमें , प्यार ही प्यार ।
कविता का महत्व
कविता एक ,खुली किताब है ।
कविता , कवि के ,मन का भाव है ।
जो चाहे व्यक्त , हम कर सकते ।
यही सबसे, प्रभावी हथियार है ।
यदि आप में है , लेखन शक्ति ।
तो बस , यही है आपकी,
सबसे बड़ी शक्ति ।
करती सच का, आगाज़ है ।
कर देती, दूर तनाव है ।
डालती ह्रदय पर , प्रभाव है ।
यह ईश्वर का ,उपहार है ।
कविता तो, समाज का दर्पण ।
जैसा समाज , वैसा ही चित्रण ।
दुःख में भी ना, छोड़ती साथ है ।
इसका यह योगदान ,बेहिसाब है ।
लेखन का, सुख ही गज़ब है ।
यहां बसता, जैसे रब है ।
यह वाकई, लाजवाब है ।
हर कवि के, मन का भाव है ।
कविता एक ,खुली किताब है ।
नमामि गंगे
नमामि गंगे , नमामि गंगे ।
हर हर गंगे , हर हर गंगे ।
आओ गंगा में, डुबकी लगायें ।
तन और मन , को शुद्ध बनायें ।
गंगाजल की ,यह शीतलता ।
करती दूर ,ह्रदय की मलिनता ।
आओ शुद्ध करें ,इस जल को ।
कैसे भी बस , स्वच्छ यह जल हो ।
जय हो तुम्हारी , गंगा मैय्या ।
पार लगा दो , सबकी नैय्या ।
गंगा जी में , एक स्नान ।
कर देता हर , मन को शांत ।
जो भी हैं , जीवन से हारे ।
जाते वो , गंगा के किनारे ।
गंगा जी , उन्हें देतीं सहारे ।
गंगा मैय्या , जय हो तुम्हारी ।
तुम हो मां ,समान हमारी ।
गंगा जी की , जय-जयकार ।
पार लगा दो, अबकी बार ।
नमामि गंगे, नमामि गंगे ।
हर हर गंगे , हर हर गंगे ।
छोटे से अपने बाल गोपाल
छोटे से अपने, बाल गोपाल ।
सब कहते इन्हें , नंद के लाल ।
कान्हा का है ,यह संसार ।
कृष्ण ही सबके, कर्णाधार ।
नंद बाबा के , राजदुलारे ।
यशोदा मां के , आंखों के तारे ।
मां को कहते, मैय्या मैय्या ।
पार लगाते , सबकी नैय्या ।
होता जब, जीवन बेहाल ।
कृष्णा ही सब, लेते संभाल ।
दिखाते अपनी, लीला कमाल ।
इनके भक्तों के, होते ठाट ।
सुदामा से, बनते सम्राट ।
बांके बिहारी जी की,
लीला अपरम्पार ।
भक्तों पर ये, लुटाते प्यार ।
जब जब भी,लेते अवतार ।
कर देते , जग का उद्धार ।
बोलता जो भी, राधे राधे ।
दुःख सब उसके , दूर ही भागे ।
ये हैं सबके, कृष्ण मुरारी ।
सचमुच इनकी , लीला न्यारी ।
चाहो यदि ,चैन का जीवन ।
करना होगा, गोपाल का सुमिरन ।
मथुरा में जन्मे, पले गोकुल में ।
मिटा दिये कष्ट , सबके रण में ।
रच दो प्रभु ,संसार दुबारा ।
जहां हर घर हो , सुखों का द्वारा ।
द्वारिकाधीश की, जय-जयकार ।
नंदलाल की , जय- जयकार ।
जय हो तुम्हारी , द्वारिकाधीश ।
हम सब तुम्हें झुकाते शीश ।
दरिंदों के गले में फंदा
( Theme – Rapists Against Society )
देश तो आज़ाद हुआ मगर ,
आज़ाद ना हुईं बेटीयां ।
हर रोज़ सुबह अखबारों में ,
बन जातीं ख़बर, ये बेटीयां ।
आज भी गन्दे विचारों से ,
कुछ लोग कहां आज़ाद हुए ?
इस तुच्छ मानसिकता से ही ,
आये दिन बलात्कार हुए ।
भला कौन रोकेगा ,
इन दरिंदों का अत्याचार ?
कब तक होती रहेंगी ,
मासूम बच्चीयां इनका शिकार ?
हम होंगे पूर्ण आज़ाद जब ,
कोई अपराध नहीं होगा ।
बेटीयां खुल कर निकलेंगी ,
और कोई शिकार नहीं होगा ।
राहों पर चलती स्त्री के,
चेहरे पर तेज़ाब नहीं होगा ।
हां बस यही होगी,
अपनी बेटीयों की ,
सही मायनों में आज़ादी ।
आओ हम सब,
मिलकर आवाज़ उठाएं ।
अपनी मासूम बच्चीयों की ,
अस्मिता को बचाएं ।
हर दरिंदे को ,
फांसी के फंदे तक पहुंचाएं ।
वक्त बदलता रहता है
वक्त बदलता,रहता है ।
हर दिन कुछ , नया कहता है ।
हर दिन एक , नया सबक देता है ।
वक्त अच्छा हो, तो अहंकार नहीं ।
यदि हो ये बुरा ,तो अफसोस नहीं ।
हर स्थिति में , हम शांत रहें ।
निष्काम भाव से, कर्म करें ।
खुशियों से ये, संसार भरें ।
छल कपट से ,कोसों दूर हो हम ।
और स्वच्छ हों, सबसे पहले मन ।
अम्बे रानी
ये जो हैं अपनी ,अम्बे रानी ।
इनकी तो है, छटा निराली ।
कभी ये अम्बा , कभी हैं काली ।
मां हैं एक ,पर इनके रूप अनेक
नवरात्रि में ,नव रूपों में आती ।
भक्तों पर कृपा ,अपनी बरसातीं ।
जो भी मां के, दर पर आता ।
मुंह मांगा वो , फ़ल है पाता ।
अम्बे मां से जो भी,
लगाता अरदास ।
पूर्ण करती मां, उसकी हर आस।
भक्त यदि ,जीवन से हारा ।
मां दयामयी, उसे देतीं सहारा ।
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा,
कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी,
कालरात्रि, महागौरी, सिद्धीदात्री ।
ये हैं ,
मातारानी के नौ रूप ।
नौ दिन तक,
इनका पूजन होता खूब ।
फ़ल भी, मां ! देतीं भरपूर ।
जो मांगोगे , मिल जायेगा ।
यदि विश्वास अटल,
मां पर हो जायेगा ।
मां अम्बा !
तेरी जय- जयकार ।
मां शक्ति !
तेरी जय-जयकार ।
बनाती सबके,
बिगड़े काम ।
मां अम्बे तुम्हें , बारम्बार प्रणाम !
प्रेम का नाता
फ़िर भी बचा, रह जाता है ।
यह कैसा, प्रेम का नाता है?
कितनी भी ,अनबन हो चाहे ।
यह पुनः ,लौट कर आता है।
जितना बचना ,चाहें इससे ।
यह उतना, बढ़ता जाता है।
हटाकर घृणा, को यह पुनः।
अपना स्थान, बनाता है ।
सबकी चालों, को सहकर भी।
यह हर क्षण , बढ़ता जाता है।
सारे द्वेषों के ऊपर यह ,
विजय सदैव ही पाता है।
यह कैसा,प्रेम का नाता है?
चुप रहना भी ठीक नहीं
चुप रहना भी,ठीक नहीं ।
दिल को भरना, भी ठीक नहीं ।
इतना सहना, भी ठीक नहीं ।
चुभने वाली , इन बातों को ।
दिल में रखना, भी ठीक नहीं ।
कुछ ना कहना, भी ठीक नहीं ।
हर दुःख सहना ,भी ठीक नहीं ।
जीवन में मिले, इन दर्दों को ।
छुप छुप सहना , भी ठीक नहीं ।
चुप रहना, भी ठीक नहीं ।
धुंध
धुंध , छट जायेगी।
धूप , खिल खिलाएगी
होंगे, दूर अंधेरे।
जागेंगे , पुनः सवेरे ।
लौटेंगी , फिर आशाएं ।
होंगी , विलुप्त निराशाएं ।
होगा, सुखद फिर जीवन ।
पुलकित , होंगे अन्तर्मन ।
परिवर्तित , होगा यह जग ।
पहुंचेगा , तू ही शिखर पर ।
मत देना , प्रभु को दोष ।
पायेगा , तू ही संतोष ।
वीरों की कुर्बानी

मेरे देश के, अमर जवानों !
तुम हो , तभी सुरक्षित सब हैं ।
तुम्हारी वीरता के कारण ही ,
रहता सुख से, सारा जग है ।
वीरों का यह ऋण , कभी भी ।
कोई नहीं ,चुका पायेगा ।
उनके त्याग , बलिदान के आगे ।
देश यह सारा ,झुक जायेगा ।
इन वीरों की ,सारी कुर्बानी ।
याद रहेगी, मुंह जुबानी ।
अमर शहीदों की ये गाथा ,
भूला ना पाएगी,
कभी भारत माता !
जल ही जीवन
जल से ही तो, होता जीवन ।
बिन जल, कैसे कट पायेगा ।
आओ , संचित करें ,हम जल को।
अन्यथा, जीना मुश्किल हो जायेगा।
बिन जल के कुछ, ना हो पाता ।
जल धरती की, प्यास बुझाता ।
खेतों में ,हरियाली लाता ।
जल है जीवन की, एक ज़रूरत ।
इसके बिना ना ,जीवन संभव ।
जल से ही तो ,बनता भोजन ।
जल ही, चमकाता हर आंगन ।
आओ मिलकर ,कसम हम खायें।
जल की एक -एक बूंद बचायें ।
बूंद – बूंद से , कलश है भरता ।
अल्प बचत से , जीवन है संवरता।
छोड़ें जल को, व्यर्थ बहाना ।
शुरू करें जल, संचय करवाना ।
जल है तो ,कल है ।
जल से सुखमय, हर पल है ।
कविता का महत्व
कविता एक ,खुली किताब है ।
कविता , कवि के ,मन का भाव है ।
जो चाहे व्यक्त , हम कर सकते ।
यही सबसे, प्रभावी हथियार है ।
यदि आप में है , लेखन शक्ति ।
तो बस , यही है आपकी,
सबसे बड़ी शक्ति ।
करती सच का, आगाज़ है ।
कर देती, दूर तनाव है ।
डालती ह्रदय पर , प्रभाव है ।
यह ईश्वर का ,उपहार है ।
कविता तो, समाज का दर्पण ।
जैसा समाज , वैसा ही चित्रण ।
दुःख में भी ना, छोड़ती साथ है ।
इसका यह योगदान ,बेहिसाब है ।
लेखन का, सुख ही गज़ब है ।
यहां बसता, जैसे रब है ।
यह वाकई, लाजवाब है ।
हर कवि के, मन का भाव है ।
कविता एक ,खुली किताब है ।
बचपन वाली अपनी गौरैया
कहां गई ,
अपनी गौरैया ?
बचपन वाली ,
वो गौरैया ।
चीं -चीं करती ,
आती थी जो ।
सुबह हमें, जगाती थी जो ।
नया सवेरा ,लाती थी जो ।
दादी के, हाथों से दाना ,
चुगकर फुर्र ,
उड़ जाती थी जो ।
वो अपनी ,
प्यारी गौरैया ।
अपनी धुन में,
गाती गौरया ।
नये कलरव नित,
सुनाती गौरैया ।
कितना अच्छा ,
था वो जीवन ।
चहकता था जब ,
गौरैया संग ये मन ।
खुशियां भर लाती,
थी गौरैया ।
वो अपनी,
प्यारी गौरैया !
हर बचपन की ,
साथी गौरैया !
चलो सपने सजाते हैं
चलो सपने सजाते हैं ,
गीत नए, गुनगुनाते हैं ।
आशियाना ,सजाते हैं ।
रंग ,जीवन में लाते हैं ।
ज़िन्दगी को , महकाते हैं ।
चलो फ़िर , मुस्कुराते हैं ।
फ़िर खुशियां , ढूंढ लाते हैं ।
चलो सपने , सजाते हैं ।
अपने दुःख में डूब ना जाना
अपने दुःख में, डूब ना जाना ।
तैर के, हर दुख पार लगाना ।
छायेगा ,जब जब अंधियारा ।
आशा के , तुम दीप जलाना ।
प्रेम विलुप्त जो , हुआ जीवन से।
उसको पुनः , तुम वापस लाना ।
अपने दुख में , डूब ना जाना ।
तुमसे ही तो , है ये ज़माना ।
हे नारी ! बिल्कुल , ना घबराना ।
कह दो कि तुम रहीं अबला ना ।
छोड़ दिया ,नर से डर जाना ।
सीख गईं ,आईना दिखाया ।
अपने निर्णय , ख़ुद ले पाना ।
सीख लिया है, तुमने कमाना ।
अतः अपने दुःख में ,
डूब ना जाना ।
आई रे फ़िर आई होली
लो भई फ़िर , आई ये होली !
झूम उठी, बच्चों की टोली ।
रंग बिरंगे ,लिए गुलाल ।
बच्चों के मुख ,हुए फ़िर लाल ।
अब तो मस्ती ,खूब जमेगी ।
धमाचौकड़ी ,खूब मचेगी ।
रंगों का है ,ये त्यौहार ।
भर देता हर , दिल में प्यार ।
उड़ेगा अब, खूब गुलाल ।
रहेगा ना अब, कोई मलाल ।
होगा आज, होलिका दहन ।
जल जायेंगे ,सब दुष्कर्म ।
आओ इस कुण्ड में,
सब भस्म करें बुराई ।
अपना लें अब ,
हम अच्छाई ।
तभी मनेगा , सच्चा उत्सव ।
होगा आनंदमय , सारा जग ।
आई रे फ़िर, आई होली ।
बरसाने गोकुल, की होली ।
राधा रानी, नंदलाल की होली ।
छोटी सी बात
छोटी सी बात थी,
ज़िन्दगी , साथ थी ।
दोस्ती , साथ थी ।
हर खुशी , साथ थी ।
खुशी की ना , तलाश थी ।
सुकुन भरी , हर रात थी ।
सब वक्त की , करामात थी ।
उस वक्त की भी, क्या बात थी ।
चिन्ता ना ,कोई साथ थी ।
लेकिन ये तो बस ,
बचपन की बात थी ।
सच ! वो पल थे, कितने अच्छे ।
जब हम सब थे , छोटे बच्चे ।
सारी चिंताओं से दूर ,
बचपन था , सुख से भरपूर ।
जीवन का, सबसे सुखद अंश ।
शायद, कहलाता बचपन ।
बचपन में ,हर व्यक्ति का मन ।
होता जैसे, एक दर्पण ।
मन में ना , होता कोई द्वेष ।
ना ही होता , कोई क्लेश ।
दिखती ना थी, जहां चतुराई ।
दिखाई देती थी ,केवल सच्चाई ।
उन पलों की भी ,क्या बात थी ।
लेकिन यह तो बस ,
बचपन की बात थी !
घर का वो कोना
घर के एक कोने में ही,
छुपा होता है ,सच्चा सुख ।
जो खोज , लेता है इसको ।
बदल सकता है ,जीवन का रुख ।
चलो फ़िर, खोजें वो कोना ।
छोड़ें अब ,व्यथित होना ।
हम हंसते तो ,हंसता वो कोना ।
हम रोते तो, रोता वो कोना ।
क्यों ना फिर, अपने घर को हंसायें ।
हर कोने में, सिर्फ खुशियाँ फैलायें ।
जीवन एक सौगात
यह जीवन एक , सौगात है ।
हर दिन एक, नई शुरुआत है ।
इस सौगात की , क्या बात है ।
सुख दुःख का ,यहां साथ है ।
कोई है यहां , नितान्त अकेला ।
किसी के सारी , दुनिया साथ है ।
पर ईश्वर तो, सभी के साथ है ।
फ़िर चिन्ता की , क्या बात है ?
हर दिन एक , नई आस है ।
अपनों का , यदि साथ है ।
तो इस सुख की , क्या बात है !
हां यह जीवन ,एक सौगात है ।
ज़िन्दगी उपहार है
ज़िन्दगी उपहार है ,
बशर्ते कि, इसमें प्यार है।
जो पाया, वो स्वीकार है ।
मानी नहीं, कभी हार है ।
ऐसा अपना, किरदार है ।
ईश्वर का, भी आभार है ।
यही जीवन का आधार है ।
फ़िलहाल तो कुछ नहीं
फ़िलहाल तो कुछ नहीं ,
पर एक दिन ,सब होगा ।
हर तरफ ,खुशी होगी ।
शोक ,विलुप्त होगा ।
दूर होंगी , चिंताएं ।
शान्त ,ये मन होगा ।
मिट ,जायेंगे संताप ।
सुखद ,जीवन होगा ।
खत्म होंगी , नफ़रतें सब ।
प्रेम ही ,बस होगा ।
भागेंगी निराशाएं,
आशा का आगमन होगा ।
राहों में , कांटे नहीं ।
फूलों का , चमन होगा ।
बिखरेंगी मुस्कानें ।
हर्षित ,मन होगा ।
फ़िलहाल ,तो कुछ नहीं ।
पर एक दिन ,सब होगा ।
ज़िन्दगी ने कहा
ज़िन्दगी ने कहा ,
भूल जा , जो सहा ।
मैं सबको ,
एक बार ही मिलती ।
मान तू , मेरा कहा ।
ये पल फ़िर ,
ना मिल पाएंगे ।
इनका अभी , आनंद उठा ।
चल मुझको , गले लगा ।
और खुलकर , जिए जा ।
हां बस यही ,
ज़िन्दगी ने कहा ।
गुज़रा हुआ वो कल
गुज़रा हुआ ,
वो कल ।
काश ! मिल जाये ,
इसी पल ।
बचपन वाली वो ,
सुबह काश !
फ़िर जाए निकल ।
जहां ना थी ,
कोई चिन्ता ।
कि क्या होगा कल ।
जहां था चैन ,
और सुकून हर पल ।
पर आखिर कौन ,
लौटायेगा वो ,
सुखद पल ?
वो अपनों का साथ ,
वो ठहाकों भरी रात ।
क्या वापस आयेगी ,
फ़िर कल ?
बचपन के मित्रों ,
के साथ ,बिताए वो पल
क्या फ़िर ,
लौट आयेंगे कल ?
भला कौन ,वापस लायेगा ।
वो गुज़रा ,हुआ कल ?
आ ज़िन्दगी की पतंग उड़ाएं
आ ,ज़िन्दगी की,पतंग उड़ाएं ।
आसमां को, छू आएं ।
पाएं केवल ,सफलताएं ।
किस्मतों को, आजमाएं ।
नाम दुनिया, में कमाएं ।
वंश का, गौरव बढ़ाएं ।
हर तरफ, सम्मान पाएं ।
प्राप्त हों , सबकी दुआएं ।
चल खुशी के, गीत गाएं ।
दूर हों , सब निराशाएं ।
सुख से ये, जीवन बिताएं ।
मेरे लिखने की वजह
मेरे लिखने की वजह ,
मिले लोगों के,
दिलों में जगह ।
जीत लूं मैं ,
सबका ह्रदय ।
दिल मेरा ना,
हो बेचैन ।
लेखन से मिले ,
इसको चैन ।
भूल जाऊं दुःख ,
दर्द मैं सारे ।
लेखन से ही ,
मिलें सहारे ।
गुज़रा हुआ वो कल
गुज़रा हुआ ,
वो कल ।
काश ! मिल जाये ,
इसी पल ।
बचपन वाली वो ,
सुबह काश !
फ़िर जाए निकल ।
जहां ना थी ,
कोई चिन्ता ।
कि क्या होगा कल ।
जहां था चैन ,
और सुकून हर पल ।
पर आखिर कौन ,
लौटायेगा वो ,
सुखद पल ?
वो अपनों का साथ ,
वो ठहाकों भरी रात ।
क्या वापस आयेगी ,
फ़िर कल ?
बचपन के मित्रों ,
के साथ ,बिताए वो पल
क्या फ़िर ,
लौट आयेंगे कल ?
भला कौन ,वापस लायेगा ।
वो गुज़रा ,हुआ कल ?
मैं एक आत्मा हूं
मैं एक ,आत्मा हूं ।
परन्तु , कैसी आत्मा ?
एक अच्छी आत्मा ?
या फ़िर , एक बुरी आत्मा ?
यदि कर्म हैं , मेरे अच्छे ।
तो मैं एक , अच्छी आत्मा हूं ।
यदि कर्म हैं , बुरे मेरे ।
तो मैं एक , बुरी आत्मा हूं ।
हां मैं एक ,आत्मा हूं ।
मेरे कर्म ही हैं ,
मेरी असली पहचान ।
आत्मा है, मेरी सच्ची ।
तो मैं हूं एक , सच्चा इंसान ।
हां मैं एक, आत्मा हूं ।
एक अच्छी आत्मा ,
एक श्रेष्ठ आत्मा ।
एक सच्ची आत्मा ।
मैं एक , आत्मा हूं ।
जीवन है संगीत
चलो खुशी के ,गीत गाएं ।
साथ में सब, गुनगुनाएं ।
शांत मन से , सुनें इसको ।
प्यार से , सबको सुनाएं ।
जीवन है , एक संगीत ।
आओ मिलकर ,इसे गाएं ।
आईना ख़ामोश है
आईना ख़ामोश है ,
खोया इसका , जोश है ।
इसे भी , कहाँ होश है ।
इंसानों सा, बेहोश है ।
दिखा पाता बस ,
रूप का कोष है ।
दिखा ना पाता ,
किसी का दोष है ।
शायद इसीलिए , ख़ामोश है ।
भरोसा
भरोसा आधार है ,
इस पर ही ,
टिका संसार है ।
भरोसा है तो ,
है सुखद जीवन ।
बिन भरोसे तो ,
जीवन बेकार है ।
है यदि भरोसा तो ,
सब-कुछ जानदार है ।
हाँ यही हर रिश्ते का ,
एकमात्र आधार है ।
उम्मीद
एक उम्मीद सी,दिल में रहती है ।
जो प्यार से, हमसे कहती है ।
चिंताएं सारी ,छोड़ भी दो ।
खुशियों से , नाता जोड़ ही लो ।
वो दिन भी, जल्दी आयेगा ।
मन ,आनंदित हो जायेगा ।
जब साथ, मिलेगा अपनों का ।
संग संग देखे , सब सपनों का ।
मन में ना, रहेगी जब शंका ।
खुशियों का, बाजेगा डंका ।
पतझड़ झर झर , झर जाएगा ।
फिर बसंत ,बहारें लायेगा ।
आंखों में , ना कोई नमी होगी ।
जीवन में, ना कोई कमी होगी ।
एक उम्मीद सी ,दिल में रहती है ।
जो प्यार से , हमसे कहती है ।
थोड़ा सा उजाला मिल जाए
थोड़ा सा उजाला , मिल जाए ।
डूबे को ,किनारा मिल जाए ।
हो जायेंगे , दुख दूर सभी ।
आशा का ,सहारा मिल जाए ।
पा लेंगे पुनः ,जो भी खोया ।
यदि धैर्य , ह्रदय से ,मिल जाए ।
पहुँचेगे, विजय की , चोटी पर ।
निश्चय यदि, मानव कर जाए ।
होगा पूरा, हर एक सपना ।
बशर्ते कि , उसे देखा जाए ।
छू पायेंगे , आकाश को भी ।
यदि कोशिश , डटकर की जाए ।
लौटेंगी पुनः , वो मुस्कानें ।
यदि दुख, अनदेखा हो जाए ।
थोड़ा सा, उजाला मिल जाए ।
डूबे को, किनारा मिल जाए ।
शैतान
क्या सच में,
होते हैं शैतान ?
या ये है केवल,
हमारा अनुमान ?
हां वाकई,
होते हैं शैतान ।
जब हम करते हैं,
कोई बुरा काम ।
या फ़िर करते हैं,
बड़ों का अपमान ।
तब हमारे भीतर ही,
प्रविष्ट हो जाते हैं ;
ये दुष्ट शैतान ।
जब हम, भूल जाते हैं ,
सही ग़लत की पहचान ।
तभी हमें उकसाते हैं ,
ये हमारे भीतर के शैतान ।
जब भी हमें होता है,
अपनी सफलता का अभिमान ।
ये ही भर देते हैं,
हमारे अंतस में गुमान ।
जब कभी, हम परिवार में ।
लेते दिमाग से काम ।
बस उसी क्षण ,
दिखाई देते ;
हमें हमारे अंदर के शैतान !
हां हमारे भीतर ही,
निवास करते ये शैतान !
मैं एक , आत्मा हूं
मैं एक ,आत्मा हूं ।
परन्तु , कैसी आत्मा ?
एक अच्छी आत्मा ?
या फ़िर , एक बुरी आत्मा ?
यदि कर्म हैं , मेरे अच्छे ।
तो मैं एक , अच्छी आत्मा हूं ।
यदि कर्म हैं , बुरे मेरे ।
तो मैं एक , बुरी आत्मा हूं ।
हां मैं एक ,आत्मा हूं ।
मेरे कर्म ही हैं ,
मेरी असली पहचान ।
आत्मा है, मेरी सच्ची ।
तो मैं हूं एक , सच्चा इंसान ।
हां मैं एक, आत्मा हूं ।
एक अच्छी आत्मा ,
एक श्रेष्ठ आत्मा ।
एक सच्ची आत्मा ।
मैं एक , आत्मा हूं ।
अधूरा
बनती नहीं है बात,
किस्मत ना , अभी साथ ।
कटती नहीं, है रात ।
आता ना , कुछ भी हाथ ।
वक्त दे रहा , है मात ।
पर होगा , फ़िर प्रभात ।
आएगा सुकून ,भी हाथ ।
बन जाएगी ,हर बात ।
सुनहरी धूप
सुनहरी धूप। ,आई है ।
जीवन में, प्रकाश लाई है ।
जीवन में , चमक लाई है ।
जीवन में , गर्माहट लाई है ।
यह सचमुच , चैन लाई है ।
हां यह सुख की ,
सुबह लाई है ।
आशा की किरण, लाई है ।
सुनहरी धूप,आई है ।
अपने दुःख में डूब ना जाना
अपने दुःख में ,डूब ना जाना ।
तैर के, हर दुख पार लगाना ।
छायेगा ,जब जब अंधियारा ।
आशा के , तुम दीप जलाना ।
प्रेम विलुप्त जो , हुआ जीवन से।
उसको पुनः , तुम वापस लाना ।
अपने दुख में , डूब ना जाना ।
जितना ज़रूरी उतना बोलो
जितना ज़रूरी उतना बोलो
जितना ज़रूरी , उतना बोलो ।
सोच समझ कर, मुंह को खोलो ।
जिन शब्दों से ,दिल ना टूटे ।
कहीं कोई अपना ना रूठे ।
बस तुम ऐसी, वाणी बोलो ।
शब्दों से ही ,बात बनेगी ।
सुखमय ज़िन्दगी, तभी चलेगी ।
भाषा पर रखो ,तुम नियंत्रण ।
क्रोध को ना दो ,तुम आमंत्रण ।
शब्दों पर यदि , दोगे ध्यान ।
जीवन होगा ,बड़ा आसान ।
जितना ज़रूरी, उतना बोलो ।
सोच समझकर, मुंह तुम खोलो ।
पुराने जमाने की
पुराने जमाने की ,
अलग थी बात ।
जब मनोरंजन था ,
रेडियो का साथ ।
पिताजी सुना करते ,
रेङियो पर समाचार ।
माताजी सुनती थीं ,
इस पर संगीत ।
रेडियो होता था ,
हम सब का मीत ।
जब हुआ करती थी ,
खतों की बहार ।
फोन का नहीं,
हुआ था आविष्कार ।
खतों में जब हम,
उड़ेलते थे प्यार ही प्यार ।
सच ! वो भी क्या ,
दिन थे यार ।
पुराने जमाने की
पुराने जमाने की ,
अलग थी बात ।
जब मनोरंजन था ,
रेडियो का साथ ।
पिताजी सुना करते ,
रेङियो पर समाचार ।
माताजी सुनती थीं ,
इस पर संगीत ।
रेडियो होता था ,
हम सब का मीत ।
जब हुआ करती थी ,
खतों की बहार ।
फोन का नहीं,
हुआ था आविष्कार ।
खतों में जब हम,
उड़ेलते थे प्यार ही प्यार ।
सच ! वो भी क्या ,
दिन थे यार ।
जितना ज़रूरी उतना बोलो
जितना ज़रूरी, उतना बोलो ।
सोच समझ कर, मुंह को खोलो ।
जिन शब्दों से ,दिल ना टूटे ।
कहीं कोई अपना ना रूठे ।
बस तुम ऐसी, वाणी बोलो ।
शब्दों से ही ,बात बनेगी ।
सुखमय ज़िन्दगी, तभी चलेगी ।
भाषा पर रखो ,तुम नियंत्रण ।
क्रोध को ना दो ,तुम आमंत्रण ।
शब्दों पर यदि , दोगे ध्यान ।
जीवन होगा ,बड़ा आसान ।
जितना ज़रूरी, उतना बोलो ।
सोच समझकर, मुंह तुम खोलो ।
ख़ुद पर विश्वास
ख़ुद पर विश्वास क्यों नहीं करते ।
जो करना है, आज क्यों नहीं करते ?
छूना चाहते हो आकाश यदि,
तो फिर तुम,प्रयास क्यों नहीं करते ?
कुछ भी नहीं , इस जग में असंभव।
इस बात पर, विश्वास क्यों नहीं करते ?
प्राप्त होगा निश्चय ही, जो तुमको पाना।
फिर पाने की, आस क्यों नहीं करते ?
माना ऊंचा है, बहुत सफलता का शिखर ।
तुम चढ़ने का, प्रयास क्यों नहीं करते ?
होगा वही ,जो तुम करना चाहो ।
फिर करने का विचार, क्यों नहीं करते ?
मिल जाता है सब, जो मांगो प्रभु से ।
उस प्रभु से अरदास , क्यों नहीं करते ?
ख़ुद पर विश्वास, क्यों नहीं करते ?
अपना-अपना सफ़र
सबका अपना-अपना सफ़र है ।
अलग अलग , सबकी डगर है ।
कोई धनी है, कोई है निर्धन ।
सबके पास नहीं ,है स्वच्छ मन ।
किसी को मिली , है सुंदर काया ।
तो किसी ने पायी , ढेरों माया ।
कुछ जन कम ,पाकर भी खुश हैं ।
तो कुछ सबकुछ ,पाकर नाखुश हैं ।
जिसको जो भी, नहीं मिला है ।
उसको केवल ,वही गिला है ।
ना तो धन ,और ना ही मकान ।
सबसे पहले , है सम्मान ।
भुलाकर सारी ,चिंताओं को ।
पार करें ,सब बाधाओं को ।
छांटें ना ,जीवन के दोष ।
लाएं ,जीवन में संतोष ।
सबका अपना , अपना सफ़र है ।
अलग अलग, सबकी डगर है ।
घर
घर के एक कोने में ,
छुपा होता है ,सच्चा सुख ।
जो खोज , लेता है इसको ।
बदल सकता है ,जीवन का रुख ।
चलो फ़िर, खोजें वो कोना ।
छोड़ें अब ,व्यथित होना ।
हम हंसते तो ,हंसता वो कोना ।
हम रोते तो, रोता वो कोना ।
क्यूँ ना फिर, अपने घर को हंसायें ।
हर कोने में, सिर्फ खुशियाँ फैलायें ।
प्यार निभाना पड़ता है
प्यार निभाना, पड़ता है ।
चाहे जितनी, कठिन डगर हो ।
उस पर ,जाना पड़ता है ।
ह्रदय यदि, होता है विचलित ।
उसको, समझाना पड़ता है ।
जो कुछ, पीछे छूट गया है ।
उसे ,भुलाना पड़ता है ।
जिससे भी ,किया हो वादा ।
उसे ,निभाना पड़ता है ।
प्रेम स्वत ही प्राप्त ना होता ।
ढूंढ़ कर ,लाना पड़ता है ।
चाहो यदि, प्रकाशित जीवन ।
दिया ,जलाना पड़ता है ।
यूं ही नाम, नहीं मिल जाता ।
इसे ,कमाना पड़ता है ।
दुनिया में ,आए हैं तो फिर ।
जीकर, जाना पड़ता है ।
हाथ यदि ,थामा हो किसी का ।
साथ ,निभाना पड़ता है ।
प्यार ,निभाना पड़ता है ।
ज़िन्दगी ने कहा
ज़िन्दगी ने कहा ,
भूल जा , जो सहा ।
मैं सबको ,
एक बार ही मिलती ।
मान तू , मेरा कहा ।
ये पल फ़िर ,
ना मिल पाएंगे ।
इनका अभी , आनंद उठा ।
चल मुझको , गले लगा ।
और खुलकर , जिये जा ।
हां बस यही ,
ज़िन्दगी ने कहा ।
नववर्ष २०२५
लो आ गया,
पुनः नव वर्ष ।
लेकर पुनः
नव -नव ,हर्ष ।
खट्टी मीठी,
यादें देकर ।
व्यतीत हुआ,
एक और वर्ष ।
यह नया वर्ष,
मंगलमय हो !
केवल यही,
प्रार्थना है ईश्वर !
भर देना सुख से ,
सबके घर !
सबकी पीड़ा,
इस वर्ष तू हर !
छूटे ना,
सच्चाई की डगर ।
बस इतनी हिम्मत,
देना ईश्वर !
नई आस विश्वास लिए ,
आया हो प्रभु !
यह नया वर्ष ।
प्रेम का नाता
फ़िर भी बचा, रह जाता है ।
यह कैसा, प्रेम का नाता है ?
कितनी भी , अनबन हो चाहे ।
यह पुनः , लौट कर आता है ।
जितना बचना , चाहें इससे ।
यह उतना, बढ़ता जाता है ।
हटाकर घृणा, को यह पुनः।
अपना स्थान, बनाता है ।
सबकी चालों, को सहकर भी ।
यह हर क्षण , बढ़ता जाता है ।
सारे द्वेषों के ऊपर यह ,
विजय सदैव ही पाता है ।
यह कैसा, प्रेम का नाता है ?
मेरे लेखन की वज़ह – मेरे लिखने की वजह
मेरे लिखने की वजह ,
मिले लोगों के,
दिलों में जगह ।
जीत लूं मैं ,
सबका ह्रदय ।
दिल मेरा ना,
हो बेचैन ।
लेखन से मिले ,
इसको चैन ।
भूल जाऊं दुःख ,
दर्द मैं सारे ।
लेखन से ही ,
मिलें सहारे ।
वृक्ष की शिक्षा
आदमी,पेड़ से, कुछ सीखे तो ।
बस यही कि ,
सब-कुछ खोकर भी ,
है डटे रहना ।
धैर्य से है ,
सब -कुछ सहना ।
छाया देकर ,
धूप में रहना ।
फल देना,
पर स्वयं ना चखना ।
दूसरों के लिए ,
हमें है जीना ।
बस यही है ,
वृक्ष का कहना ।
सर्द पड़े रिश्ते
सर्द पड़े ,इन रिश्तों को ।
फ़िर गर्माना , ज़रूरी है ।
सोये हुए एहसासों को ,
फ़िर जगाना , ज़रूरी है ।
दिल में उभरे इन भावों को ,
बाहर लाना , ज़रूरी है ।
रिश्तों में घुली जो कड़वाहट ,
उसका भी अन्त ज़रूरी है ।
मन में बैठी पीड़ाओं से ,
मुक्ति पाना भी ज़रूरी है ।
आये हैं अगर इस दुनिया में ,
तो जीकर जाना भी ज़रूरी है ।
पाना हो अगर बस प्यार तुम्हें ,
तो प्यार लुटाना भी ज़रूरी है ।
सर्द पड़े इन रिश्तों को ,
फ़िर गर्माना ज़रूरी है ।
गुल्लक
ये गुल्लक जो थी ,
बचपन की साथी ।
कितना कुछ ,
हमको सिखलाती ।
सारे सिक्के ,
हो जाते एक समान ।
ज्यों ही इसके ,
अंदर जाते ।
छोटा बड़ा ,
कोई ना होता ।
हां यही गुल्लक ,
सबक सिखाती ।
काम आयें वक्त पर,
यही बस गुल्लक ,
पाठ पढ़ाती ।
टूटते ही,
बिखरना तय है ।
यह शिक्षा भी ,
दे ही जाती ।
जुड़कर ही हमें ,
रहना होगा ।
एकता का ये,
पाठ पढ़ाती ।
गुल्लक अपने ,
बचपन की साथी ।
मेरे लेखन की वज़ह
मेरे लिखने की वजह ,
मिले लोगों के,
दिलों में जगह ।
जीत लूं मैं ,
सबका ह्रदय ।
दिल मेरा ना,
हो बेचैन ।
लेखन से मिले ,
इसको चैन ।
भूल जाऊं दुःख ,
दर्द मैं सारे ।
लेखन से ही ,
मिलें सहारे ।
अनोखा प्रेम
रात के रास्ते में ,
चांद कर , देता उजाला ।
रात हो , कितनी भी गहरी ।
हो अंधेरा , कितना भी काला ।
चांद ने , ख़ुद आकर हमेशा ।
रात में , भर दिया उजाला ।
इनका रिश्ता , अटूट गहरा ।
प्रेम इनका , सबसे न्यारा ।
पुराना ज़माना
पुराना ज़माना
पुराने जमाने की ,
अलग थी बात ।
जब मनोरंजन था ,
रेडियो का साथ ।
पिताजी सुना करते ,
रेङियो पर समाचार ।
माताजी सुनती थीं ,
इस पर संगीत ।
रेडियो होता था ,
हम सब का मीत ।
जब हुआ करती थी ,
खतों की बहार ।
फोन का नहीं,
हुआ था आविष्कार ।
खतों में जब हम,
उड़ेलते थे प्यार ही प्यार ।
सच ! वो भी क्या ,
दिन थे यार ।
आस का दामन
आस का दामन,मत छोड़ो ।
वक्त की तरह, तुम भी दौड़ो ।
जो टूट गया, फिर से जोड़ो ।
यदि आस ,तुम्हारी टूट गई ।
समझो कि, ज़िन्दगी रूठ गई ।
ख़ुद पर तुम, पूरी आस रखो ।
सब पाओगे , विश्वास रखो ।
होगा पूरा, हर एक सपना ।
बस अपने ,पर यकीं रखना ।
पार करनी , होंगी खाईयां ।
फिर ,छू लोगे ऊंचाईयां ।
मुश्किल में, ज़रा ना घबराना ।
बस बिना ,रुके बढ़ते जाना ।
मन में ना ,रखना कोई शंका ।
बज जाएगा, एक दिन डंका ।
निश्चय ही, ऐसा पाओगे ।
दुनिया में ,नाम कमांओगे ।
आस का ,दामन मत छोड़ो ।
जो पाना है ,पाकर छोड़ो ।
मुश्किल
सामने मुश्किल ,खड़ी है ।
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
आओ इसका ,हल तो सोचें ।
आंसूओं को, तुरन्त पौछें ।
दूर होगी ,हर कठिनाई ।
दिखानी होगी , बस चतुराई ।
मुश्किल का ,हम करें सामना ।
इससे डरकर , नहीं भागना ।
मिलेगा इसका समाधान ।
हो जायेगा ,सब आसान ।
सपने एक दिन ,होंगे पूरे ।
रह ना ,पाएंगे ये अधूरे ।
बदलेगी एक, दिन ये दुनिया ।
इसमें होंगी, केवल खुशियां ।
प्रभु का ,करें गुणगान ।
हर मुश्किल, होगी आसान ।
सामने ,मुश्किल खड़ी है
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
ज़िन्दगी उपहार है
बशर्ते कि, इसमें प्यार है।
जो पाया, वो स्वीकार है ।
मानी नहीं, कभी हार है ।
ऐसा अपना, किरदार है ।
ईश्वर का, भी आभार है ।
यही जीवन का आधार है ।
मैं एक आत्मा हूं
मैं एक ,आत्मा हूं ।
परन्तु , कैसी आत्मा ?
एक अच्छी आत्मा ?
या फ़िर , एक बुरी आत्मा ?
यदि कर्म हैं , मेरे अच्छे ।
तो मैं एक , अच्छी आत्मा हूं ।
यदि कर्म हैं , बुरे मेरे ।
तो मैं एक , बुरी आत्मा हूं ।
हां मैं एक ,आत्मा हूं ।
मेरे कर्म ही हैं ,
मेरी असली पहचान ।
आत्मा है, मेरी सच्ची ।
तो मैं हूं एक , सच्चा इंसान ।
हां मैं एक, आत्मा हूं ।
एक अच्छी आत्मा ,
एक श्रेष्ठ आत्मा ।
एक सच्ची आत्मा ।
मैं एक , आत्मा हूं ।
सुनहरी धूप
सुनहरी धूप,आई है ।
जीवन में, प्रकाश लाई है ।
जीवन में , चमक लाई है ।
जीवन में , गर्माहट लाई है ।
यह सचमुच , चैन लाई है ।
हां यह सुख की ,
सुबह लाई है ।
आशा की किरण, लाई है ।
सुनहरी धूप,आई है ।
निशान
ओ इंसान,
हर जगह छोड़,
अपनी अच्छाई के निशान ।
और अपनी, सच्चाई के निशान ।
बस इसी में लगा , तू अपनी जान ।
पहले बन , अच्छा इंसान ।
फ़िर गुणवान, और चरित्रवान ।
लोग करें , तेरा गुणगान ।
कर तू कुछ , ऐसा मेरी जान ।
बना अलग ,अपनी पहचान ।
करें सब तुझपर, जां कुर्बान ।
तब ही तू ,कहलायेगा महान ।
याद रखेगा, तुझे जहान ।
क़ायम रख, अपना ईमान ।
त्याग ना मत ,कभी स्वाभिमान ।
बढ़ा अपने, किरदार की शान ।
समझा मेरे, प्यारे इंसान ।
सपनों की उड़ान
सपनों की उड़ान ,
छू लेती ,आसमान ।
करती पूरे ,अरमान ।
लाती है ,ये मुस्कान ।
भर देती , दिल में जान ।
अलग है , इसकी शान ।
अद्भुत है ,ये उड़ान ।
वाह ,सपनों की उड़ान ।
एकांत
यह एकांत जो हमें ,
हमसे मिलाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
जीना सिखाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
शक्तिशाली बनाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
गुणों को बाहर लाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
ह्रदय में चैन लाता है ।
और धीरे धीरे यह ,
हमारे जीवन का ,
महत्वपूर्ण भाग बन जाता है ।
होता यह नितांत अपना ,
दिखाता प्रतिदिन नया सपना ।
सारी चिंता यह मिटाता ,
ह्रदय में भाव सुंदर जगाता ।
हां यह एकांत —-
अपना निजी एकांत ।
आ भी कर सकते हैं
आप भी, कर सकते हैं ।
जो आप करना चाहें ,
बशर्ते कि चाहें ।
होगी अगर चाह,
मिलेगी ज़रूर राह ।
कर लें अगर इरादा ,
मिलेगा सब है वादा ।
सब ख्वाब होंगे पूरे ,
रह ना पाएंगे अधूरे ।
एक दिन कमाल होगा ,
दुनिया में नाम होगा ।
वो ज़िन्दगी भी होगी ,
कोई ना कमी होगी ।
पर कर्म आप करेंगे ,
फल भी तभी मिलेंगे ।
पाएंगे जो हो पाना ,
बस ख्वाहिशें जगाना ।
मिलेंगी हजारों राहें ,
बशर्ते कि आप चाहें ।
सफ़र
सबका अपना-अपना, सफ़र है ।
अलग अलग , सबकी डगर है ।
कोई धनी है, कोई है निर्धन ।
सबके पास नहीं ,है स्वच्छ मन ।
किसी को मिली , है सुंदर काया ।
तो किसी ने पायी , ढेरों माया ।
कुछ जन कम ,पाकर भी खुश हैं ।
तो कुछ सबकुछ ,पाकर नाखुश हैं ।
जिसको जो भी, नहीं मिला है ।
उसको केवल ,वही गिला है ।
ना तो धन ,और ना ही मकान ।
सबसे पहले , है सम्मान ।
भुलाकर सारी ,चिंताओं को ।
पार करें ,सब बाधाओं को ।
छांटें ना ,जीवन के दोष ।
लाएं ,जीवन में संतोष ।
सबका अपना , अपना सफ़र है ।
अलग अलग, सबकी डगर है ।
ख़ुद को मत बेकार समझना
ख़ुद को मत, बेकार समझना ।
तुम हो ,रचनाकार की रचना ।
कष्टों में ,ना हार समझना ।
आशाएं, उम्मीदें रखना ।
पीड़ाओं का, सार समझना ।
जीवन को ना, भार समझना ।
आज नहीं तो, कल जीतोगे ।
खुद को तुम, हर बार परखना ।
टूटा है जो, जुड़ जायेगा ।
खुद को तुम, शिल्पकार समझना ।
जितना भी ,तुमने है पाया ।
ईश्वर का , उपकार समझना ।
मिट जायेंगे, सभी अंधेरे ।
रौशन अपना, संसार समझना।
खुद को मत, बेकार समझना ।
मंज़िल अपनी-अपनी
मंज़िल अपनी-अपनी है, राहें अपनी-अपनी।
कभी तेज़ हवाओं से संघर्ष, तो कभी ठंडी छांवें अपनी।
किसी के कदम दौड़ते हैं, किसी के धीरे-धीरे बढ़ते।
किसी को राह दिखाए, कोई राह में रोड़ा अटकाए ।
कोई निकलते हैं आकाश को छूने, कुछ ढूंढ़ते हैं किसी का सहारा।
किसी की मंज़िल में होती है रुकावट
तो किसी की मंज़िल में थकावट।
राह ए मंज़िल का यह फ़लसफ़ा, हर किसी को शिक्षा देता है।
मंज़िल भले हो अलग, पर किसी का सफर कुछ नसीहत देता है।
मंज़िल है एक सपना, जो हर किसी के दिल में होता है।
कभी राहें आसान होती हैं, कभी संघर्ष का दरिया बहता है।
कदम-कदम पर रुकावटें मिलतीं, कभी उम्मीद भी डगमगाती है।
जो हिम्मत से हार नहीं मानते, मंज़िल भी उन्हीं को राह दिखाती है।
मंज़िल सिखाती है, नहीं रुको, चलते रहो, करो चुनौती स्वीकार।
क्योंकि मंज़िल उन्हीं की होती है जो करते हैं खुद पर एतबार।
लोगों, कदम बढ़ाते जाओ, अपने स्वप्न की मंज़िल को पहचानो,
क्योंकि मंज़िल अपनी अपनी है पर राह ए सफर में सीख को जानों।
शैतान
क्या सच में,
होते हैं शैतान ?
या ये है केवल,
हमारा अनुमान ।
हां वाकई,
होते हैं शैतान ।
जब हम करते हैं,
कोई बुरा काम ।
या फ़िर करते हैं,
बड़ों का अपमान ।
तब हमारे भीतर ही,
प्रविष्ट हो जाते हैं ;
ये दुष्ट शैतान ।
जब हम, भूल जाते हैं ,
सही ग़लत की पहचान ।
तभी हमें उकसाते हैं ,
ये हमारे भीतर के शैतान ।
जब भी हमें होता है,
अपनी सफलता का अभिमान ।
ये ही भर देते हैं,
हमारे अंतस में गुमान ।
जब कभी, हम परिवार में ।
लेते दिमाग से काम ।
बस उसी क्षण ,
दिखाई देते ;
हमें हमारे अंदर के शैतान !
हां हमारे भीतर ही,
निवास करते ये शैतान !
घर का एक कोना
घर के एक कोने में ही,
छुपा होता है ,सच्चा सुख ।
जो खोज , लेता है इसको ।
बदल सकता है ,जीवन का रुख ।
चलो फ़िर, खोजें वो कोना ।
छोड़ें अब ,व्यथित होना ।
हम हंसते तो ,हंसता वो कोना ।
हम रोते तो, रोता वो कोना ।
क्यूँ ना फिर, अपने घर को हंसायें ।
हर कोने में, सिर्फ खुशियाँ फैलायें ।
प्रेम क्या, क्यों और कैसे !
फ़िर भी बचा रह जाता है ।
यह कैसा, प्रेम का नाता है?
कितनी भी ,अनबन हो चाहे ।
यह पुनः ,लौट कर आता है।
जितना बचना ,चाहें इससे ।
यह उतना, बढ़ता जाता है।
हटाकर घृणा, को यह पुनः।
अपना स्थान, बनाता है ।
सबकी चालों, को सहकर भी।
यह हर क्षण , बढ़ता जाता है।
सारे द्वेषों के ऊपर यह ,
विजय सदैव ही पाता है।
यह कैसा,प्रेम का नाता है?
सर्द पड़ चुके , रिश्तों को
सर्द पड़ चुके ,रिश्तों को ।
फ़िर गर्माना , ज़रूरी है ।
सोये हुए एहसासों को ,
फ़िर जगाना , ज़रूरी है ।
दिल में उभरे इन भावों को ,
बाहर लाना , ज़रूरी है ।
रिश्तों में घुली जो कड़वाहट ,
उसका भी अन्त ज़रूरी है ।
मन में बैठी पीड़ाओं से ,
मुक्ति पाना भी ज़रूरी है ।
आये हैं अगर इस दुनिया में ,
तो जीकर जाना भी ज़रूरी है ।
पाना हो अगर बस प्यार तुम्हें ,
तो प्यार लुटाना भी ज़रूरी है ।
सर्द पड़े इन रिश्तों को ,
फ़िर गर्माना ज़रूरी है ।
चुप रहना भी ठीक नहीं
चुप रहना भी, ठीक नहीं ।
दिल को भरना, भी ठीक नहीं ।
इतना सहना, भी ठीक नहीं ।
चुभने वाली , इन बातों को ।
दिल में रखना, भी ठीक नहीं ।
कुछ ना कहना, भी ठीक नहीं ।
हर दुःख सहना ,भी ठीक नहीं ।
जीवन में मिले, इन दर्दों को ।
छुप छुप सहना , भी ठीक नहीं ।
चुप रहना, भी ठीक नहीं ।
मुश्किल
सामने मुश्किल,खड़ी है ।
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
आओ इसका ,हल तो सोचें ।
आंसूओं को, तुरन्त पौछें ।
दूर होगी ,हर कठिनाई ।
दिखानी होगी , बस चतुराई ।
मुश्किल का ,हम करें सामना ।
इससे डरकर , नहीं भागना ।
मिलेगा इसका समाधान ।
हो जायेगा ,सब आसान ।
सपने एक दिन ,होंगे पूरे ।
रह ना ,पाएंगे ये अधूरे ।
बदलेगी एक, दिन ये दुनिया ।
इसमें होंगी, केवल खुशियां ।
प्रभु का ,करें गुणगान ।
हर मुश्किल, होगी आसान ।
सामने ,मुश्किल खड़ी है
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
वक्त बदलता रहता है
वक्त बदलता रहता है
वक्त बदलता, रहता है ।
हर दिन कुछ , नया कहता है ।
हर दिन एक , नया सबक देता है ।
वक्त अच्छा हो, तो अहंकार नहीं ।
यदि हो ये बुरा ,तो अफसोस नहीं ।
हर स्थिति में , हम शांत रहें ।
निष्काम भाव से, कर्म करें ।
खुशियों से ये, संसार भरें ।
छल कपट से ,कोसों दूर हो हम ।
और स्वच्छ हों, सबसे पहले मन ।
मैं उसकी कहानी में नहीं
मैं उसकी, कहानी में नहीं ।
जिसमें, सच नहीं ।
जिसमें, प्यार नहीं ।
जिसमें ,अपनापन नहीं ।
जिसमें, लगाव नहीं ।
जिसमें है ,बेवफाई ।
जिसमें ,वफा नहीं ।
जिसमें हैं ,सभी नकली ।
असली ,कोई नहीं ।
जिसमें ,ना ही सुकून है।
और चैन , भी नहीं ।
एक दूसरे की परवाह ,
करता कोई नहीं ।
मतलब के, जहाँ रिश्ते ।
दिल का ,कोई नहीं ।
हाँ मैं ,उसकी कहानी में नहीं ।
ख़ुद पर विश्वास
ख़ुद पर विश्वास, क्यों नहीं करते ?
जो करना है, आज क्यों नहीं करते ?
छूना चाहते हो आकाश यदि,
तो फिर तुम,प्रयास क्यों नहीं करते ?
कुछ भी नहीं , इस जग में असंभव।
इस बात पर, विश्वास क्यों नहीं करते ?
प्राप्त होगा निश्चय ही, जो तुमको पाना।
फिर पाने की, आस क्यों नहीं करते ?
माना ऊंचा है, बहुत सफलता का शिखर ।
तुम चढ़ने का, प्रयास क्यों नहीं करते ?
होगा वही ,जो तुम करना चाहो ।
फिर करने का विचार, क्यों नहीं करते ?
मिल जाता है सब, जो मांगो प्रभु से ।
उस प्रभु से अरदास , क्यों नहीं करते ?
ख़ुद पर विश्वास, क्यों नहीं करते ?
बिल्कुल नहीं
सिद्धान्तों से समझौता , बिल्कुल नहीं ।
रिश्तों में अकड़ , बिल्कुल नहीं ।
परिवारों में षडयंत्र , बिल्कुल नहीं ।
अपनों से दग़ाबाज़ी , बिल्कुल नहीं ।
धोखेबाज़ों पर भरोसा , बिल्कुल नहीं ।
जीवन से खिलवाड़ , बिल्कुल नहीं ।
चेहरों पर नकाब , बिल्कुल नहीं ।
घरों में तानाशाही , बिल्कुल नहीं ।
दोहरे चरित्र , बिल्कुल नहीं ।
रिश्तों में औपचारिकता , बिल्कुल नहीं ।
संबंधों में पारदर्शिता , ये बिल्कुल सही ।
दिलों में सच्चाई , ये बिल्कुल सही ।
जो ऊपर वही अंदर , ये बिल्कुल सही ।
अपनों से वफ़ादारी , ये बिल्कुल सही ।
क़दम क़दम पर रात मिलेगी
क़दम क़दम पर, रात मिलेगी ।
सुबह हमें ख़ुद , करनी होगी ।
जब- जब, छायेगा अंधियारा ।
ख़ुद ही रौशनी , भरनी होगी ।
क़दम -कदम पर , दीप जलाकर ।
खोई राह , पकड़नी होगी ।
भुला कर घातों व , प्रतिघातों को ।
ज़िन्दगी बसर ये , करनी होगी ।
क़दम – क़दम पर , रात मिलेगी ।
सुबह हमें ख़ुद , करनी होगी ।
लम्हें
चलो लम्हे, चुरा क,र लाते हैं ।
उन्हें खुशियों से , सजाते हैं ।
चलो दिल को , बहलाते हैं ।
तनावों को , भगाते हैं ।
दुखों को , भूल जाते हैं ।
चलो फ़िर , मुस्कुराते हैं ।
गीत नये , गुनगुनाते हैं ।
उलझनें भूल , जाते हैं ।
चलो सुकून , पाते हैं ।
प्यार फ़िर , ढूंढ लाते हैं ।
आओ ! लम्हे,
चुरा कर लाते हैं ।
ज़िन्दगी की बाज़ी
ज़िन्दगी की बाज़ी में ,
जीत भी है ,
हार भी है ।
अगर मिली है नफ़रत ,
तो मिला प्यार भी है ।
जैसे कि खेल में ,
खेलना ज़रूरी है ।
वैसे ही ज़िन्दगी ,
जीना भी ज़रुरी है ।
कोई यहां बादशाह ,
तो कोई ग़ुलाम है ।
किसी का है रूतबा ,
और कोई गुमनाम है ।
मिल जाएं शोहरतें ,
सबका यही ख़्वाब है ।
लेकिन कर्मों का भी ,
तो होता हिसाब है ।
छूनी हो बुलंदी तो ,
आओ एक काम करें ।
छोड़कर बदी को ,
नेकी की राह चलें ।
क्या हुआ अगर
क्या हुआ अगर,
खो गई डगर ।
पा लेंगे फ़िर ,
लम्बा है सफ़र ।
क्या हुआ अगर ,
आज छाया अंधेरा ।
कल निश्चय ही ,
लौटेगा सवेरा ।
भयभीत ना होना ,
जीवन तो बस पाना खोना ।
क्या हुआ अगर ,
छाई है निराशा ।
जल्दी ही लौटेगी आशा ।
ईश्वर तुझ पर अटल भरोसा ,
हमने तो सब तुझको सौंपा ।
हमारा यह विश्वास ,
जगाये रखना ।
बस दुःखों से हमें ,
बचाए रखना ।
प्रभु सुख की आस ,
जगाये रखना ।
एकांत
यह एकांत जो हमें ,
हमसे मिलाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
जीना सिखाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
शक्तिशाली बनाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
गुणों को बाहर लाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
ह्रदय में चैन लाता है ।
और धीरे धीरे यह ,
हमारे जीवन का ,
महत्वपूर्ण भाग बन जाता है ।
होता यह नितांत अपना ,
दिखाता प्रतिदिन नया सपना ।
सारी चिंता यह मिटाता ,
ह्रदय में भाव सुंदर जगाता ।
हां यह एकांत —-
अपना निजी एकांत ।
आस का दामन
आस का दामन , मत छोड़ो ।
वक्त की तरह, तुम भी दौड़ो ।
जो टूट गया, फिर से जोड़ो ।
यदि आस ,तुम्हारी टूट गई ।
समझो कि, ज़िन्दगी रूठ गई ।
ख़ुद पर तुम, पूरी आस रखो ।
सब पाओगे , विश्वास रखो ।
होगा पूरा, हर एक सपना ।
बस अपने ,पर यकीं रखना ।
पार करनी , होंगी खाईयां ।
फिर ,छू लोगे ऊंचाईयां ।
मुश्किल में, ज़रा ना घबराना ।
बस बिना ,रुके बढ़ते जाना ।
मन में ना ,रखना कोई शंका ।
बज जाएगा, एक दिन डंका ।
निश्चय ही, ऐसा पाओगे ।
दुनिया में ,नाम कमांओगे ।
आस का ,दामन मत छोड़ो ।
जो पाना है ,पाकर छोड़ो ।
मुश्किल
सामने मुश्किल, खड़ी है ।
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
आओ इसका ,हल तो सोचें ।
आंसूओं को, तुरन्त पौंछें।
दूर होगी ,हर कठिनाई ।
दिखानी होगी , बस चतुराई ।
मुश्किल का ,हम करें सामना ।
इससे डरकर , नहीं भागना ।
मिलेगा इसका समाधान ।
हो जायेगा ,सब आसान ।
सपने एक दिन ,होंगे पूरे ।
रह ना ,पाएंगे ये अधूरे ।
बदलेगी एक, दिन ये दुनिया ।
इसमें होंगी, केवल खुशियां ।
प्रभु का ,करें गुणगान ।
हर मुश्किल, होगी आसान ।
सामने ,मुश्किल खड़ी है
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
हमेशा तो नहीं होगा
हमेशा तो , नहीं होगा ।
जो कल था, वो आज नहीं होगा ।
जो आज है, वो कल नहीं होगा ।
जहां है आज दुख , कल वहीं सुख होगा ।
हुआ है यदि वियोग, तो मिलन भी होगा ।
आज है यदि तनाव , तो कल चैन होगा ।
छाई है काली रात, तो सवेरा भी होगा ।
हुआ है सूर्य अस्त ,तो फिर उदय भी होगा ।
रख स्वयं पर विश्वास , तू सफल ही होगा।
हारा है तू आज, तो कल विजयी भी होगा।
प्रभु ने रचा संसार , तो कुछ सोचकर ही होगा।
समय है अभी विपरीत, हमेशा तो नहीं होगा।
पुराना ज़माना
पुराने जमाने की ,
अलग थी बात ।
जब मनोरंजन था ,
रेडियो का साथ ।
पिताजी सुना करते ,
रेङियो पर समाचार ।
माताजी सुनती थीं ,
इस पर संगीत ।
रेडियो होता था ,
हम सब का मीत ।
जब हुआ करती थी ,
खतों की बहार ।
फोन का नहीं,
हुआ था आविष्कार ।
खतों में जब हम,
उड़ेलते थे प्यार ही प्यार ।
सच ! वो भी क्या ,
दिन थे यार ।
एकांत
यह एकांत जो हमें ,
हमसे मिलाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
जीना सिखाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
शक्तिशाली बनाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
गुणों को बाहर लाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
ह्रदय में चैन लाता है ।
और धीरे धीरे यह ,
हमारे जीवन का ,
महत्वपूर्ण भाग बन जाता है ।
होता यह नितांत अपना ,
दिखाता प्रतिदिन नया सपना ।
सारी चिंता यह मिटाता ,
ह्रदय में भाव सुंदर जगाता ।
हां यह एकांत —-
अपना निजी एकांत ।
शुक्रिया मेरे ईश्वर
शुक्रिया मेरे ईश्वर,
की तूने , मुझपर महर ।
साथ है , तू हर पहर ।
दिखाई ,सच की डगर ।
कर दिया , आसाँ सफ़र ।
दुखों को , लिया तूने हर ।
भर दिया , सुख से फ़िर घर ।
झुका तेरे , सजदे में सर ।
शुक्रिया , मेरे ईश्वर ।
ध्यान से
कहीं जीवन ,बिखर ना जाए ।
कहीं सब , बिगड़ ना जाए ।
भरोसा , टूट ना जाए ।
साथ कहीं, छूट ना जाए ।
ह्रदय कहीं ,टूट ना जाए ।
प्रेम कहीं , खो ना जाए ।
हंसी कहीं , खो ना जाए ।
चैन कहीं , चला ना जाए ।
वक्त कहीं , गुज़र ना जाए ।
लौटकर , फ़िर ना आए ।
ज़िन्दगी , बीत ना जाए ।
ये है, बड़ी छोटी भाई ।
कर्म कर, ध्यान से भाई ।
वक्त
वक्त अच्छा ,बुरा नहीं होता ।
हम ख़ुद ही, इसे बनाते हैं ।
हम ही करते हैं, चुनाव वक्त का ।
हम ही करते इसे , अच्छा और बुरा ।
कर्म यदि, हमारे अच्छे हैं ।
वक्त भी ,हो जाता है अच्छा ।
कर्म यदि, भूल से बिगड़े अपने ।
कुछ भी होता नहीं , फिर वक्त से बुरा ।
वक्त के साथ, सब बदल जाता ।
ये होता नहीं, किसी का सगा ।
चाहते सब कि , पकड़ लें इसको ।
पर ये पकड़ में ,कभी भी आ ना सका ।
महत्व जिसने भी, वक्त का समझा ।
हां उसने ही , सफलता को छूआ ।
वक्त जो एक बार, गुज़र है गया ।
लौटकर फिर वो, कभी ना मिला ।
आओ क़ीमत , वक्त की पहचानें ।
हर पल में , भर दें मुस्कानें ।
मुस्कान की ज़रूरत
हर हाल में, मुस्कुराया करें ।
दुखों को, भूल जाया करें।
व्यर्थ के, तनावों में ।
जीवन को ना बिताया करें ।
जीवन मिलता है, बस एक बार ।
इसको ऐसे ना गंवाया करें ।
खुशीयों का, लें आनन्द ।
रंजों को , भूल जाया करें ।
ईश्वर से, जो मिला है ।
उस सुख को ही चलो भोगें ।
अपनी इच्छाओं को,
अनन्त ना बनाया करें ।
ईश्वर का भी ,आभार
जिसने रचा संसार ।
भूल से ,भी उन पर ।
हम क्रोध ना दिखाया करें ।
हर हाल में ,मुसकुराया करें ।
सब अंधकार मिट जाएगा
सब अंधकार , मिट जाएगा ।
यदि तू मिटाना चाहेगा ।
संसार मुस्कुराएगा ,
यदि तू मुस्कुराएगा ।
खुशी ही खुशी पायेगा ,
यदि तू पाना चाहेगा ।
हर मोड़ बदल जाएगा ,
यदि तू बदलना चाहेगा ।
अच्छा ही सब हो जाएगा ,
गर तू अच्छा हो जाएगा ।
बस प्रेम ही तू पाएगा ,
यदि प्रेम तू लुटाएगा ।
जीवन ये चमक जाएगा ,
यदि तू इसे चमकाएगा ।
तू साथ सबका पाएगा ,
यदि साथ तू निभायेगा ।
सब अंधकार मिट जाएगा ,
यदि तू मिटाना चाहेगा ।
ये कहानी नहीं कोई
ये कहानी , नहीं कोई ।
ये ज़िन्दगी ,एक हकीकत है ।
इसको केवल, पढ़ना ही नहीं ।
ना ही बस, इसको है लिखना ।
जी भर के , इसको है जीना ।
खुल कर के ,इसको है जीना ।
एक बार अगर, ये गुज़र गयी ।
तो लौट के ,फिर ना आयेगी ।
तुम चाहोगे ,जीना फिर से ।
पर ये ना, तुम्हें मिल पायेगी ।
इसलिए सब, शिकवे दूर करो।
बेकार के ,झगड़ों में ना पड़ो ।
अब बस तुम ,खुशियां ही बांटो ।
बुराई ना सबमें छांटो ।
नफ़रत का , ना व्यापार रहे ।
हर दिल में ,केवल प्यार रहे ।
आस का दामन
आस का दामन, मत छोड़ो ।
वक्त की तरह, तुम भी दौड़ो ।
जो टूट गया, फिर से जोड़ो ।
यदि आस ,तुम्हारी टूट गई ।
समझो कि, ज़िन्दगी रूठ गई ।
ख़ुद पर तुम, पूरी आस रखो ।
सब पाओगे , विश्वास रखो ।
होगा पूरा, हर एक सपना ।
बस अपने ,पर यकीं रखना ।
पार करनी , होंगी खाईयां ।
फिर ,छू लोगे ऊंचाईयां ।
मुश्किल में, ज़रा ना घबराना ।
बस बिना ,रुके बढ़ते जाना ।
मन में ना ,रखना कोई शंका ।
बज जाएगा, एक दिन डंका ।
निश्चय ही, ऐसा पाओगे ।
दुनिया में ,नाम कमांओगे ।
आस का ,दामन मत छोड़ो ।
जो पाना है ,पाकर छोड़ो ।
ओ इंसान
ओ इंसान !
हर जगह छोड़,
अपनी अच्छाई के निशान ।
और अपनी, सच्चाई के निशान ।
बस इसी में लगा , तू अपनी जान ।
पहले बन , अच्छा इंसान ।
फ़िर गुणवान, और चरित्रवान ।
लोग करें , तेरा गुणगान ।
कर तू कुछ , ऐसा मेरी जान ।
बना अलग ,अपनी पहचान ।
करें सब तुझपर, जां कुर्बान ।
तब ही तू ,कहलायेगा महान ।
याद रखेगा, तुझे जहान ।
क़ायम रख, अपना ईमान ।
त्याग ना मत ,कभी स्वाभिमान ।
बढ़ा अपने, किरदार की शान ।
समझा मेरे, प्यारे इंसान ।
शरद पूर्णिमा
आज चंद्र की, छटा निराली ।
रात ना रही अब, उसकी काली ।
चमक उठा ,सारा आकाश ।
बिखरा जो अब , पूर्ण प्रकाश ।
दूर हुई ,आकाश की कालिमा ।
लो आ गई ,शरद पूर्णिमा ।
पूर्ण हुई चंद्र की ,सोलह कलाएं ।
बहने लगीं अब, सर्द हवाएं ।
धरती आकाश का , हुआ मिलन ।
कितना अनोखा ,यह संगम !
रात्रि के पथ पर आज,
चंद्र ने कर दिया उजाला ।
इनका रिश्ता ,अटूट रिश्ता ।
प्रेम इनका , सबसे न्यारा ।
बनेगी प्रसाद में,
खीर पंचमेवा युक्त ।
इसे ग्रहण कर,
भक्त होंगे पाप मुक्त ।
आज प्रसन्न होंगी,
लक्ष्मी माता ।
पूर्ण करेंगी, भक्तों की आशा ।
प्रेम का नाता
फ़िर भी बचा, रह जाता है ।
यह कैसा, प्रेम का नाता है?
कितनी भी ,अनबन हो चाहे ।
यह पुनः ,लौट कर आता है।
जितना बचना ,चाहें इससे ।
यह उतना, बढ़ता जाता है।
हटाकर घृणा, को यह पुनः।
अपना स्थान, बनाता है ।
सबकी चालों, को सहकर भी।
यह हर क्षण , बढ़ता जाता है।
सारे द्वेषों के ऊपर यह ,
विजय सदैव ही पाता है।
यह कैसा,प्रेम का नाता है?
गुज़रा हुआ वो कल
गुज़रा हुआ ,
वो कल ।
काश ! मिल जाये ,
इसी पल ।
बचपन वाली वो ,
सुबह काश !
फ़िर जाए निकल ।
जहां ना थी ,
कोई चिन्ता ।
कि क्या होगा कल ।
जहां था चैन ,
और सुकून हर पल ।
पर आखिर कौन ,
लौटायेगा वो ,
सुखद पल ?
वो अपनों का साथ ,
वो ठहाकों भरी रात ।
क्या वापस आयेगी ,
फ़िर कल ?
बचपन के मित्रों ,
के साथ ,बिताए वो पल
क्या फ़िर ,
लौट आयेंगे कल ?
भला कौन ,वापस लायेगा ।
वो गुज़रा ,हुआ कल ?
अम्बे रानी
ये जो हैं अपनी ,अम्बे रानी ।
इनकी तो है, छटा निराली ।
कभी ये अम्बा , कभी हैं काली ।
मां हैं एक ,पर इनके रूप अनेक
नवरात्रि में ,नव रूपों में आती ।
भक्तों पर कृपा ,अपनी बरसातीं ।
जो भी मां के, दर पर आता ।
मुंह मांगा वो , फ़ल है पाता ।
अम्बे मां से जो भी,
लगाता अरदास ।
पूर्ण करती मां, उसकी हर आस।
भक्त यदि ,जीवन से हारा ।
मां दयामयी, उसे देतीं सहारा ।
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा,
कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी,
कालरात्रि, महागौरी, सिद्धीदात्री ।
ये हैं ,
मातारानी के नौ रूप ।
नौ दिन तक,
इनका पूजन होता खूब ।
फ़ल भी, मां ! देतीं भरपूर ।
जो मांगोगे , मिल जायेगा ।
यदि विश्वास अटल,
मां पर हो जायेगा ।
मां अम्बा !
तेरी जय- जयकार ।
मां शक्ति !
तेरी जय-जयकार ।
बनाती सबके,
बिगड़े काम ।
मां अम्बे तुम्हें , बारम्बार प्रणाम !
लेकिन ये दिल ना माना
लेकिन ये दिल, ना माना ।
सारा सच , इसने जाना ।
फ़िर भी ये, दिल ना माना ।
जिन्होंने दिया, इसे धोखा ।
उनको ना, किया बेगाना ।
समझा उनको , भी अपना ।
खोला हर ,राज़ पुराना ।
स्वार्थी हैं , अधिकतर रिश्ते ।
यह भी ये, दिल माना ।
कितना भी, इसे सिखलाया ।
पर ना , सीखा ठुकराना ।
चाहा तो, बहुत मनवाना ।
लेकिन ये, दिल ना माना ।
जिनके थे, दोहरे चेहरे ।
उनको भी, पड़ा अपनाना ।
क्यूंकि दिल तो, फ़िर दिल था ।
ये मेरी, एक ना माना ।

श्रीमती प्रगति दत्त
अलीगढ़ उत्तर प्रदेश
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