प्रगति दत्त की कविताएं | Pragati Dutta Hindi Poetry
पुराना ज़माना
पुराना ज़माना
पुराने जमाने की ,
अलग थी बात ।
जब मनोरंजन था ,
रेडियो का साथ ।
पिताजी सुना करते ,
रेङियो पर समाचार ।
माताजी सुनती थीं ,
इस पर संगीत ।
रेडियो होता था ,
हम सब का मीत ।
जब हुआ करती थी ,
खतों की बहार ।
फोन का नहीं,
हुआ था आविष्कार ।
खतों में जब हम,
उड़ेलते थे प्यार ही प्यार ।
सच ! वो भी क्या ,
दिन थे यार ।
आस का दामन
आस का दामन,मत छोड़ो ।
वक्त की तरह, तुम भी दौड़ो ।
जो टूट गया, फिर से जोड़ो ।
यदि आस ,तुम्हारी टूट गई ।
समझो कि, ज़िन्दगी रूठ गई ।
ख़ुद पर तुम, पूरी आस रखो ।
सब पाओगे , विश्वास रखो ।
होगा पूरा, हर एक सपना ।
बस अपने ,पर यकीं रखना ।
पार करनी , होंगी खाईयां ।
फिर ,छू लोगे ऊंचाईयां ।
मुश्किल में, ज़रा ना घबराना ।
बस बिना ,रुके बढ़ते जाना ।
मन में ना ,रखना कोई शंका ।
बज जाएगा, एक दिन डंका ।
निश्चय ही, ऐसा पाओगे ।
दुनिया में ,नाम कमांओगे ।
आस का ,दामन मत छोड़ो ।
जो पाना है ,पाकर छोड़ो ।
मुश्किल
सामने मुश्किल ,खड़ी है ।
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
आओ इसका ,हल तो सोचें ।
आंसूओं को, तुरन्त पौछें ।
दूर होगी ,हर कठिनाई ।
दिखानी होगी , बस चतुराई ।
मुश्किल का ,हम करें सामना ।
इससे डरकर , नहीं भागना ।
मिलेगा इसका समाधान ।
हो जायेगा ,सब आसान ।
सपने एक दिन ,होंगे पूरे ।
रह ना ,पाएंगे ये अधूरे ।
बदलेगी एक, दिन ये दुनिया ।
इसमें होंगी, केवल खुशियां ।
प्रभु का ,करें गुणगान ।
हर मुश्किल, होगी आसान ।
सामने ,मुश्किल खड़ी है
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
ज़िन्दगी उपहार है
बशर्ते कि, इसमें प्यार है।
जो पाया, वो स्वीकार है ।
मानी नहीं, कभी हार है ।
ऐसा अपना, किरदार है ।
ईश्वर का, भी आभार है ।
यही जीवन का आधार है ।
मैं एक आत्मा हूं
मैं एक ,आत्मा हूं ।
परन्तु , कैसी आत्मा ?
एक अच्छी आत्मा ?
या फ़िर , एक बुरी आत्मा ?
यदि कर्म हैं , मेरे अच्छे ।
तो मैं एक , अच्छी आत्मा हूं ।
यदि कर्म हैं , बुरे मेरे ।
तो मैं एक , बुरी आत्मा हूं ।
हां मैं एक ,आत्मा हूं ।
मेरे कर्म ही हैं ,
मेरी असली पहचान ।
आत्मा है, मेरी सच्ची ।
तो मैं हूं एक , सच्चा इंसान ।
हां मैं एक, आत्मा हूं ।
एक अच्छी आत्मा ,
एक श्रेष्ठ आत्मा ।
एक सच्ची आत्मा ।
मैं एक , आत्मा हूं ।
सुनहरी धूप
सुनहरी धूप,आई है ।
जीवन में, प्रकाश लाई है ।
जीवन में , चमक लाई है ।
जीवन में , गर्माहट लाई है ।
यह सचमुच , चैन लाई है ।
हां यह सुख की ,
सुबह लाई है ।
आशा की किरण, लाई है ।
सुनहरी धूप,आई है ।
निशान
ओ इंसान,
हर जगह छोड़,
अपनी अच्छाई के निशान ।
और अपनी, सच्चाई के निशान ।
बस इसी में लगा , तू अपनी जान ।
पहले बन , अच्छा इंसान ।
फ़िर गुणवान, और चरित्रवान ।
लोग करें , तेरा गुणगान ।
कर तू कुछ , ऐसा मेरी जान ।
बना अलग ,अपनी पहचान ।
करें सब तुझपर, जां कुर्बान ।
तब ही तू ,कहलायेगा महान ।
याद रखेगा, तुझे जहान ।
क़ायम रख, अपना ईमान ।
त्याग ना मत ,कभी स्वाभिमान ।
बढ़ा अपने, किरदार की शान ।
समझा मेरे, प्यारे इंसान ।
सपनों की उड़ान
सपनों की उड़ान ,
छू लेती ,आसमान ।
करती पूरे ,अरमान ।
लाती है ,ये मुस्कान ।
भर देती , दिल में जान ।
अलग है , इसकी शान ।
अद्भुत है ,ये उड़ान ।
वाह ,सपनों की उड़ान ।
एकांत
यह एकांत जो हमें ,
हमसे मिलाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
जीना सिखाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
शक्तिशाली बनाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
गुणों को बाहर लाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
ह्रदय में चैन लाता है ।
और धीरे धीरे यह ,
हमारे जीवन का ,
महत्वपूर्ण भाग बन जाता है ।
होता यह नितांत अपना ,
दिखाता प्रतिदिन नया सपना ।
सारी चिंता यह मिटाता ,
ह्रदय में भाव सुंदर जगाता ।
हां यह एकांत —-
अपना निजी एकांत ।
आ भी कर सकते हैं
आप भी, कर सकते हैं ।
जो आप करना चाहें ,
बशर्ते कि चाहें ।
होगी अगर चाह,
मिलेगी ज़रूर राह ।
कर लें अगर इरादा ,
मिलेगा सब है वादा ।
सब ख्वाब होंगे पूरे ,
रह ना पाएंगे अधूरे ।
एक दिन कमाल होगा ,
दुनिया में नाम होगा ।
वो ज़िन्दगी भी होगी ,
कोई ना कमी होगी ।
पर कर्म आप करेंगे ,
फल भी तभी मिलेंगे ।
पाएंगे जो हो पाना ,
बस ख्वाहिशें जगाना ।
मिलेंगी हजारों राहें ,
बशर्ते कि आप चाहें ।
सफ़र
सबका अपना-अपना, सफ़र है ।
अलग अलग , सबकी डगर है ।
कोई धनी है, कोई है निर्धन ।
सबके पास नहीं ,है स्वच्छ मन ।
किसी को मिली , है सुंदर काया ।
तो किसी ने पायी , ढेरों माया ।
कुछ जन कम ,पाकर भी खुश हैं ।
तो कुछ सबकुछ ,पाकर नाखुश हैं ।
जिसको जो भी, नहीं मिला है ।
उसको केवल ,वही गिला है ।
ना तो धन ,और ना ही मकान ।
सबसे पहले , है सम्मान ।
भुलाकर सारी ,चिंताओं को ।
पार करें ,सब बाधाओं को ।
छांटें ना ,जीवन के दोष ।
लाएं ,जीवन में संतोष ।
सबका अपना , अपना सफ़र है ।
अलग अलग, सबकी डगर है ।
ख़ुद को मत बेकार समझना
ख़ुद को मत, बेकार समझना ।
तुम हो ,रचनाकार की रचना ।
कष्टों में ,ना हार समझना ।
आशाएं, उम्मीदें रखना ।
पीड़ाओं का, सार समझना ।
जीवन को ना, भार समझना ।
आज नहीं तो, कल जीतोगे ।
खुद को तुम, हर बार परखना ।
टूटा है जो, जुड़ जायेगा ।
खुद को तुम, शिल्पकार समझना ।
जितना भी ,तुमने है पाया ।
ईश्वर का , उपकार समझना ।
मिट जायेंगे, सभी अंधेरे ।
रौशन अपना, संसार समझना।
खुद को मत, बेकार समझना ।
मंज़िल अपनी-अपनी
मंज़िल अपनी-अपनी है, राहें अपनी-अपनी।
कभी तेज़ हवाओं से संघर्ष, तो कभी ठंडी छांवें अपनी।
किसी के कदम दौड़ते हैं, किसी के धीरे-धीरे बढ़ते।
किसी को राह दिखाए, कोई राह में रोड़ा अटकाए ।
कोई निकलते हैं आकाश को छूने, कुछ ढूंढ़ते हैं किसी का सहारा।
किसी की मंज़िल में होती है रुकावट
तो किसी की मंज़िल में थकावट।
राह ए मंज़िल का यह फ़लसफ़ा, हर किसी को शिक्षा देता है।
मंज़िल भले हो अलग, पर किसी का सफर कुछ नसीहत देता है।
मंज़िल है एक सपना, जो हर किसी के दिल में होता है।
कभी राहें आसान होती हैं, कभी संघर्ष का दरिया बहता है।
कदम-कदम पर रुकावटें मिलतीं, कभी उम्मीद भी डगमगाती है।
जो हिम्मत से हार नहीं मानते, मंज़िल भी उन्हीं को राह दिखाती है।
मंज़िल सिखाती है, नहीं रुको, चलते रहो, करो चुनौती स्वीकार।
क्योंकि मंज़िल उन्हीं की होती है जो करते हैं खुद पर एतबार।
लोगों, कदम बढ़ाते जाओ, अपने स्वप्न की मंज़िल को पहचानो,
क्योंकि मंज़िल अपनी अपनी है पर राह ए सफर में सीख को जानों।
शैतान
क्या सच में,
होते हैं शैतान ?
या ये है केवल,
हमारा अनुमान ।
हां वाकई,
होते हैं शैतान ।
जब हम करते हैं,
कोई बुरा काम ।
या फ़िर करते हैं,
बड़ों का अपमान ।
तब हमारे भीतर ही,
प्रविष्ट हो जाते हैं ;
ये दुष्ट शैतान ।
जब हम, भूल जाते हैं ,
सही ग़लत की पहचान ।
तभी हमें उकसाते हैं ,
ये हमारे भीतर के शैतान ।
जब भी हमें होता है,
अपनी सफलता का अभिमान ।
ये ही भर देते हैं,
हमारे अंतस में गुमान ।
जब कभी, हम परिवार में ।
लेते दिमाग से काम ।
बस उसी क्षण ,
दिखाई देते ;
हमें हमारे अंदर के शैतान !
हां हमारे भीतर ही,
निवास करते ये शैतान !
घर का एक कोना
घर के एक कोने में ही,
छुपा होता है ,सच्चा सुख ।
जो खोज , लेता है इसको ।
बदल सकता है ,जीवन का रुख ।
चलो फ़िर, खोजें वो कोना ।
छोड़ें अब ,व्यथित होना ।
हम हंसते तो ,हंसता वो कोना ।
हम रोते तो, रोता वो कोना ।
क्यूँ ना फिर, अपने घर को हंसायें ।
हर कोने में, सिर्फ खुशियाँ फैलायें ।
प्रेम क्या, क्यों और कैसे !
फ़िर भी बचा रह जाता है ।
यह कैसा, प्रेम का नाता है?
कितनी भी ,अनबन हो चाहे ।
यह पुनः ,लौट कर आता है।
जितना बचना ,चाहें इससे ।
यह उतना, बढ़ता जाता है।
हटाकर घृणा, को यह पुनः।
अपना स्थान, बनाता है ।
सबकी चालों, को सहकर भी।
यह हर क्षण , बढ़ता जाता है।
सारे द्वेषों के ऊपर यह ,
विजय सदैव ही पाता है।
यह कैसा,प्रेम का नाता है?
सर्द पड़ चुके , रिश्तों को
सर्द पड़ चुके ,रिश्तों को ।
फ़िर गर्माना , ज़रूरी है ।
सोये हुए एहसासों को ,
फ़िर जगाना , ज़रूरी है ।
दिल में उभरे इन भावों को ,
बाहर लाना , ज़रूरी है ।
रिश्तों में घुली जो कड़वाहट ,
उसका भी अन्त ज़रूरी है ।
मन में बैठी पीड़ाओं से ,
मुक्ति पाना भी ज़रूरी है ।
आये हैं अगर इस दुनिया में ,
तो जीकर जाना भी ज़रूरी है ।
पाना हो अगर बस प्यार तुम्हें ,
तो प्यार लुटाना भी ज़रूरी है ।
सर्द पड़े इन रिश्तों को ,
फ़िर गर्माना ज़रूरी है ।
चुप रहना भी ठीक नहीं
चुप रहना भी, ठीक नहीं ।
दिल को भरना, भी ठीक नहीं ।
इतना सहना, भी ठीक नहीं ।
चुभने वाली , इन बातों को ।
दिल में रखना, भी ठीक नहीं ।
कुछ ना कहना, भी ठीक नहीं ।
हर दुःख सहना ,भी ठीक नहीं ।
जीवन में मिले, इन दर्दों को ।
छुप छुप सहना , भी ठीक नहीं ।
चुप रहना, भी ठीक नहीं ।
मुश्किल
सामने मुश्किल,खड़ी है ।
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
आओ इसका ,हल तो सोचें ।
आंसूओं को, तुरन्त पौछें ।
दूर होगी ,हर कठिनाई ।
दिखानी होगी , बस चतुराई ।
मुश्किल का ,हम करें सामना ।
इससे डरकर , नहीं भागना ।
मिलेगा इसका समाधान ।
हो जायेगा ,सब आसान ।
सपने एक दिन ,होंगे पूरे ।
रह ना ,पाएंगे ये अधूरे ।
बदलेगी एक, दिन ये दुनिया ।
इसमें होंगी, केवल खुशियां ।
प्रभु का ,करें गुणगान ।
हर मुश्किल, होगी आसान ।
सामने ,मुश्किल खड़ी है
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
वक्त बदलता रहता है
वक्त बदलता रहता है
वक्त बदलता, रहता है ।
हर दिन कुछ , नया कहता है ।
हर दिन एक , नया सबक देता है ।
वक्त अच्छा हो, तो अहंकार नहीं ।
यदि हो ये बुरा ,तो अफसोस नहीं ।
हर स्थिति में , हम शांत रहें ।
निष्काम भाव से, कर्म करें ।
खुशियों से ये, संसार भरें ।
छल कपट से ,कोसों दूर हो हम ।
और स्वच्छ हों, सबसे पहले मन ।
मैं उसकी कहानी में नहीं
मैं उसकी, कहानी में नहीं ।
जिसमें, सच नहीं ।
जिसमें, प्यार नहीं ।
जिसमें ,अपनापन नहीं ।
जिसमें, लगाव नहीं ।
जिसमें है ,बेवफाई ।
जिसमें ,वफा नहीं ।
जिसमें हैं ,सभी नकली ।
असली ,कोई नहीं ।
जिसमें ,ना ही सुकून है।
और चैन , भी नहीं ।
एक दूसरे की परवाह ,
करता कोई नहीं ।
मतलब के, जहाँ रिश्ते ।
दिल का ,कोई नहीं ।
हाँ मैं ,उसकी कहानी में नहीं ।
ख़ुद पर विश्वास
ख़ुद पर विश्वास, क्यों नहीं करते ?
जो करना है, आज क्यों नहीं करते ?
छूना चाहते हो आकाश यदि,
तो फिर तुम,प्रयास क्यों नहीं करते ?
कुछ भी नहीं , इस जग में असंभव।
इस बात पर, विश्वास क्यों नहीं करते ?
प्राप्त होगा निश्चय ही, जो तुमको पाना।
फिर पाने की, आस क्यों नहीं करते ?
माना ऊंचा है, बहुत सफलता का शिखर ।
तुम चढ़ने का, प्रयास क्यों नहीं करते ?
होगा वही ,जो तुम करना चाहो ।
फिर करने का विचार, क्यों नहीं करते ?
मिल जाता है सब, जो मांगो प्रभु से ।
उस प्रभु से अरदास , क्यों नहीं करते ?
ख़ुद पर विश्वास, क्यों नहीं करते ?
बिल्कुल नहीं
सिद्धान्तों से समझौता , बिल्कुल नहीं ।
रिश्तों में अकड़ , बिल्कुल नहीं ।
परिवारों में षडयंत्र , बिल्कुल नहीं ।
अपनों से दग़ाबाज़ी , बिल्कुल नहीं ।
धोखेबाज़ों पर भरोसा , बिल्कुल नहीं ।
जीवन से खिलवाड़ , बिल्कुल नहीं ।
चेहरों पर नकाब , बिल्कुल नहीं ।
घरों में तानाशाही , बिल्कुल नहीं ।
दोहरे चरित्र , बिल्कुल नहीं ।
रिश्तों में औपचारिकता , बिल्कुल नहीं ।
संबंधों में पारदर्शिता , ये बिल्कुल सही ।
दिलों में सच्चाई , ये बिल्कुल सही ।
जो ऊपर वही अंदर , ये बिल्कुल सही ।
अपनों से वफ़ादारी , ये बिल्कुल सही ।
क़दम क़दम पर रात मिलेगी
क़दम क़दम पर, रात मिलेगी ।
सुबह हमें ख़ुद , करनी होगी ।
जब- जब, छायेगा अंधियारा ।
ख़ुद ही रौशनी , भरनी होगी ।
क़दम -कदम पर , दीप जलाकर ।
खोई राह , पकड़नी होगी ।
भुला कर घातों व , प्रतिघातों को ।
ज़िन्दगी बसर ये , करनी होगी ।
क़दम – क़दम पर , रात मिलेगी ।
सुबह हमें ख़ुद , करनी होगी ।
लम्हें
चलो लम्हे, चुरा क,र लाते हैं ।
उन्हें खुशियों से , सजाते हैं ।
चलो दिल को , बहलाते हैं ।
तनावों को , भगाते हैं ।
दुखों को , भूल जाते हैं ।
चलो फ़िर , मुस्कुराते हैं ।
गीत नये , गुनगुनाते हैं ।
उलझनें भूल , जाते हैं ।
चलो सुकून , पाते हैं ।
प्यार फ़िर , ढूंढ लाते हैं ।
आओ ! लम्हे,
चुरा कर लाते हैं ।
ज़िन्दगी की बाज़ी
ज़िन्दगी की बाज़ी में ,
जीत भी है ,
हार भी है ।
अगर मिली है नफ़रत ,
तो मिला प्यार भी है ।
जैसे कि खेल में ,
खेलना ज़रूरी है ।
वैसे ही ज़िन्दगी ,
जीना भी ज़रुरी है ।
कोई यहां बादशाह ,
तो कोई ग़ुलाम है ।
किसी का है रूतबा ,
और कोई गुमनाम है ।
मिल जाएं शोहरतें ,
सबका यही ख़्वाब है ।
लेकिन कर्मों का भी ,
तो होता हिसाब है ।
छूनी हो बुलंदी तो ,
आओ एक काम करें ।
छोड़कर बदी को ,
नेकी की राह चलें ।
क्या हुआ अगर
क्या हुआ अगर,
खो गई डगर ।
पा लेंगे फ़िर ,
लम्बा है सफ़र ।
क्या हुआ अगर ,
आज छाया अंधेरा ।
कल निश्चय ही ,
लौटेगा सवेरा ।
भयभीत ना होना ,
जीवन तो बस पाना खोना ।
क्या हुआ अगर ,
छाई है निराशा ।
जल्दी ही लौटेगी आशा ।
ईश्वर तुझ पर अटल भरोसा ,
हमने तो सब तुझको सौंपा ।
हमारा यह विश्वास ,
जगाये रखना ।
बस दुःखों से हमें ,
बचाए रखना ।
प्रभु सुख की आस ,
जगाये रखना ।
एकांत
यह एकांत जो हमें ,
हमसे मिलाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
जीना सिखाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
शक्तिशाली बनाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
गुणों को बाहर लाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
ह्रदय में चैन लाता है ।
और धीरे धीरे यह ,
हमारे जीवन का ,
महत्वपूर्ण भाग बन जाता है ।
होता यह नितांत अपना ,
दिखाता प्रतिदिन नया सपना ।
सारी चिंता यह मिटाता ,
ह्रदय में भाव सुंदर जगाता ।
हां यह एकांत —-
अपना निजी एकांत ।
आस का दामन
आस का दामन , मत छोड़ो ।
वक्त की तरह, तुम भी दौड़ो ।
जो टूट गया, फिर से जोड़ो ।
यदि आस ,तुम्हारी टूट गई ।
समझो कि, ज़िन्दगी रूठ गई ।
ख़ुद पर तुम, पूरी आस रखो ।
सब पाओगे , विश्वास रखो ।
होगा पूरा, हर एक सपना ।
बस अपने ,पर यकीं रखना ।
पार करनी , होंगी खाईयां ।
फिर ,छू लोगे ऊंचाईयां ।
मुश्किल में, ज़रा ना घबराना ।
बस बिना ,रुके बढ़ते जाना ।
मन में ना ,रखना कोई शंका ।
बज जाएगा, एक दिन डंका ।
निश्चय ही, ऐसा पाओगे ।
दुनिया में ,नाम कमांओगे ।
आस का ,दामन मत छोड़ो ।
जो पाना है ,पाकर छोड़ो ।
मुश्किल
सामने मुश्किल, खड़ी है ।
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
आओ इसका ,हल तो सोचें ।
आंसूओं को, तुरन्त पौंछें।
दूर होगी ,हर कठिनाई ।
दिखानी होगी , बस चतुराई ।
मुश्किल का ,हम करें सामना ।
इससे डरकर , नहीं भागना ।
मिलेगा इसका समाधान ।
हो जायेगा ,सब आसान ।
सपने एक दिन ,होंगे पूरे ।
रह ना ,पाएंगे ये अधूरे ।
बदलेगी एक, दिन ये दुनिया ।
इसमें होंगी, केवल खुशियां ।
प्रभु का ,करें गुणगान ।
हर मुश्किल, होगी आसान ।
सामने ,मुश्किल खड़ी है
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
हमेशा तो नहीं होगा
हमेशा तो , नहीं होगा ।
जो कल था, वो आज नहीं होगा ।
जो आज है, वो कल नहीं होगा ।
जहां है आज दुख , कल वहीं सुख होगा ।
हुआ है यदि वियोग, तो मिलन भी होगा ।
आज है यदि तनाव , तो कल चैन होगा ।
छाई है काली रात, तो सवेरा भी होगा ।
हुआ है सूर्य अस्त ,तो फिर उदय भी होगा ।
रख स्वयं पर विश्वास , तू सफल ही होगा।
हारा है तू आज, तो कल विजयी भी होगा।
प्रभु ने रचा संसार , तो कुछ सोचकर ही होगा।
समय है अभी विपरीत, हमेशा तो नहीं होगा।
पुराना ज़माना
पुराने जमाने की ,
अलग थी बात ।
जब मनोरंजन था ,
रेडियो का साथ ।
पिताजी सुना करते ,
रेङियो पर समाचार ।
माताजी सुनती थीं ,
इस पर संगीत ।
रेडियो होता था ,
हम सब का मीत ।
जब हुआ करती थी ,
खतों की बहार ।
फोन का नहीं,
हुआ था आविष्कार ।
खतों में जब हम,
उड़ेलते थे प्यार ही प्यार ।
सच ! वो भी क्या ,
दिन थे यार ।
एकांत
यह एकांत जो हमें ,
हमसे मिलाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
जीना सिखाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
शक्तिशाली बनाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
गुणों को बाहर लाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
ह्रदय में चैन लाता है ।
और धीरे धीरे यह ,
हमारे जीवन का ,
महत्वपूर्ण भाग बन जाता है ।
होता यह नितांत अपना ,
दिखाता प्रतिदिन नया सपना ।
सारी चिंता यह मिटाता ,
ह्रदय में भाव सुंदर जगाता ।
हां यह एकांत —-
अपना निजी एकांत ।
शुक्रिया मेरे ईश्वर
शुक्रिया मेरे ईश्वर,
की तूने , मुझपर महर ।
साथ है , तू हर पहर ।
दिखाई ,सच की डगर ।
कर दिया , आसाँ सफ़र ।
दुखों को , लिया तूने हर ।
भर दिया , सुख से फ़िर घर ।
झुका तेरे , सजदे में सर ।
शुक्रिया , मेरे ईश्वर ।
ध्यान से
कहीं जीवन ,बिखर ना जाए ।
कहीं सब , बिगड़ ना जाए ।
भरोसा , टूट ना जाए ।
साथ कहीं, छूट ना जाए ।
ह्रदय कहीं ,टूट ना जाए ।
प्रेम कहीं , खो ना जाए ।
हंसी कहीं , खो ना जाए ।
चैन कहीं , चला ना जाए ।
वक्त कहीं , गुज़र ना जाए ।
लौटकर , फ़िर ना आए ।
ज़िन्दगी , बीत ना जाए ।
ये है, बड़ी छोटी भाई ।
कर्म कर, ध्यान से भाई ।
वक्त
वक्त अच्छा ,बुरा नहीं होता ।
हम ख़ुद ही, इसे बनाते हैं ।
हम ही करते हैं, चुनाव वक्त का ।
हम ही करते इसे , अच्छा और बुरा ।
कर्म यदि, हमारे अच्छे हैं ।
वक्त भी ,हो जाता है अच्छा ।
कर्म यदि, भूल से बिगड़े अपने ।
कुछ भी होता नहीं , फिर वक्त से बुरा ।
वक्त के साथ, सब बदल जाता ।
ये होता नहीं, किसी का सगा ।
चाहते सब कि , पकड़ लें इसको ।
पर ये पकड़ में ,कभी भी आ ना सका ।
महत्व जिसने भी, वक्त का समझा ।
हां उसने ही , सफलता को छूआ ।
वक्त जो एक बार, गुज़र है गया ।
लौटकर फिर वो, कभी ना मिला ।
आओ क़ीमत , वक्त की पहचानें ।
हर पल में , भर दें मुस्कानें ।
मुस्कान की ज़रूरत
हर हाल में, मुस्कुराया करें ।
दुखों को, भूल जाया करें।
व्यर्थ के, तनावों में ।
जीवन को ना बिताया करें ।
जीवन मिलता है, बस एक बार ।
इसको ऐसे ना गंवाया करें ।
खुशीयों का, लें आनन्द ।
रंजों को , भूल जाया करें ।
ईश्वर से, जो मिला है ।
उस सुख को ही चलो भोगें ।
अपनी इच्छाओं को,
अनन्त ना बनाया करें ।
ईश्वर का भी ,आभार
जिसने रचा संसार ।
भूल से ,भी उन पर ।
हम क्रोध ना दिखाया करें ।
हर हाल में ,मुसकुराया करें ।
सब अंधकार मिट जाएगा
सब अंधकार , मिट जाएगा ।
यदि तू मिटाना चाहेगा ।
संसार मुस्कुराएगा ,
यदि तू मुस्कुराएगा ।
खुशी ही खुशी पायेगा ,
यदि तू पाना चाहेगा ।
हर मोड़ बदल जाएगा ,
यदि तू बदलना चाहेगा ।
अच्छा ही सब हो जाएगा ,
गर तू अच्छा हो जाएगा ।
बस प्रेम ही तू पाएगा ,
यदि प्रेम तू लुटाएगा ।
जीवन ये चमक जाएगा ,
यदि तू इसे चमकाएगा ।
तू साथ सबका पाएगा ,
यदि साथ तू निभायेगा ।
सब अंधकार मिट जाएगा ,
यदि तू मिटाना चाहेगा ।
ये कहानी नहीं कोई
ये कहानी , नहीं कोई ।
ये ज़िन्दगी ,एक हकीकत है ।
इसको केवल, पढ़ना ही नहीं ।
ना ही बस, इसको है लिखना ।
जी भर के , इसको है जीना ।
खुल कर के ,इसको है जीना ।
एक बार अगर, ये गुज़र गयी ।
तो लौट के ,फिर ना आयेगी ।
तुम चाहोगे ,जीना फिर से ।
पर ये ना, तुम्हें मिल पायेगी ।
इसलिए सब, शिकवे दूर करो।
बेकार के ,झगड़ों में ना पड़ो ।
अब बस तुम ,खुशियां ही बांटो ।
बुराई ना सबमें छांटो ।
नफ़रत का , ना व्यापार रहे ।
हर दिल में ,केवल प्यार रहे ।
आस का दामन
आस का दामन, मत छोड़ो ।
वक्त की तरह, तुम भी दौड़ो ।
जो टूट गया, फिर से जोड़ो ।
यदि आस ,तुम्हारी टूट गई ।
समझो कि, ज़िन्दगी रूठ गई ।
ख़ुद पर तुम, पूरी आस रखो ।
सब पाओगे , विश्वास रखो ।
होगा पूरा, हर एक सपना ।
बस अपने ,पर यकीं रखना ।
पार करनी , होंगी खाईयां ।
फिर ,छू लोगे ऊंचाईयां ।
मुश्किल में, ज़रा ना घबराना ।
बस बिना ,रुके बढ़ते जाना ।
मन में ना ,रखना कोई शंका ।
बज जाएगा, एक दिन डंका ।
निश्चय ही, ऐसा पाओगे ।
दुनिया में ,नाम कमांओगे ।
आस का ,दामन मत छोड़ो ।
जो पाना है ,पाकर छोड़ो ।
ओ इंसान
ओ इंसान !
हर जगह छोड़,
अपनी अच्छाई के निशान ।
और अपनी, सच्चाई के निशान ।
बस इसी में लगा , तू अपनी जान ।
पहले बन , अच्छा इंसान ।
फ़िर गुणवान, और चरित्रवान ।
लोग करें , तेरा गुणगान ।
कर तू कुछ , ऐसा मेरी जान ।
बना अलग ,अपनी पहचान ।
करें सब तुझपर, जां कुर्बान ।
तब ही तू ,कहलायेगा महान ।
याद रखेगा, तुझे जहान ।
क़ायम रख, अपना ईमान ।
त्याग ना मत ,कभी स्वाभिमान ।
बढ़ा अपने, किरदार की शान ।
समझा मेरे, प्यारे इंसान ।
शरद पूर्णिमा
आज चंद्र की, छटा निराली ।
रात ना रही अब, उसकी काली ।
चमक उठा ,सारा आकाश ।
बिखरा जो अब , पूर्ण प्रकाश ।
दूर हुई ,आकाश की कालिमा ।
लो आ गई ,शरद पूर्णिमा ।
पूर्ण हुई चंद्र की ,सोलह कलाएं ।
बहने लगीं अब, सर्द हवाएं ।
धरती आकाश का , हुआ मिलन ।
कितना अनोखा ,यह संगम !
रात्रि के पथ पर आज,
चंद्र ने कर दिया उजाला ।
इनका रिश्ता ,अटूट रिश्ता ।
प्रेम इनका , सबसे न्यारा ।
बनेगी प्रसाद में,
खीर पंचमेवा युक्त ।
इसे ग्रहण कर,
भक्त होंगे पाप मुक्त ।
आज प्रसन्न होंगी,
लक्ष्मी माता ।
पूर्ण करेंगी, भक्तों की आशा ।
प्रेम का नाता
फ़िर भी बचा, रह जाता है ।
यह कैसा, प्रेम का नाता है?
कितनी भी ,अनबन हो चाहे ।
यह पुनः ,लौट कर आता है।
जितना बचना ,चाहें इससे ।
यह उतना, बढ़ता जाता है।
हटाकर घृणा, को यह पुनः।
अपना स्थान, बनाता है ।
सबकी चालों, को सहकर भी।
यह हर क्षण , बढ़ता जाता है।
सारे द्वेषों के ऊपर यह ,
विजय सदैव ही पाता है।
यह कैसा,प्रेम का नाता है?
गुज़रा हुआ वो कल
गुज़रा हुआ ,
वो कल ।
काश ! मिल जाये ,
इसी पल ।
बचपन वाली वो ,
सुबह काश !
फ़िर जाए निकल ।
जहां ना थी ,
कोई चिन्ता ।
कि क्या होगा कल ।
जहां था चैन ,
और सुकून हर पल ।
पर आखिर कौन ,
लौटायेगा वो ,
सुखद पल ?
वो अपनों का साथ ,
वो ठहाकों भरी रात ।
क्या वापस आयेगी ,
फ़िर कल ?
बचपन के मित्रों ,
के साथ ,बिताए वो पल
क्या फ़िर ,
लौट आयेंगे कल ?
भला कौन ,वापस लायेगा ।
वो गुज़रा ,हुआ कल ?
अम्बे रानी
ये जो हैं अपनी ,अम्बे रानी ।
इनकी तो है, छटा निराली ।
कभी ये अम्बा , कभी हैं काली ।
मां हैं एक ,पर इनके रूप अनेक
नवरात्रि में ,नव रूपों में आती ।
भक्तों पर कृपा ,अपनी बरसातीं ।
जो भी मां के, दर पर आता ।
मुंह मांगा वो , फ़ल है पाता ।
अम्बे मां से जो भी,
लगाता अरदास ।
पूर्ण करती मां, उसकी हर आस।
भक्त यदि ,जीवन से हारा ।
मां दयामयी, उसे देतीं सहारा ।
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा,
कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी,
कालरात्रि, महागौरी, सिद्धीदात्री ।
ये हैं ,
मातारानी के नौ रूप ।
नौ दिन तक,
इनका पूजन होता खूब ।
फ़ल भी, मां ! देतीं भरपूर ।
जो मांगोगे , मिल जायेगा ।
यदि विश्वास अटल,
मां पर हो जायेगा ।
मां अम्बा !
तेरी जय- जयकार ।
मां शक्ति !
तेरी जय-जयकार ।
बनाती सबके,
बिगड़े काम ।
मां अम्बे तुम्हें , बारम्बार प्रणाम !
लेकिन ये दिल ना माना
लेकिन ये दिल, ना माना ।
सारा सच , इसने जाना ।
फ़िर भी ये, दिल ना माना ।
जिन्होंने दिया, इसे धोखा ।
उनको ना, किया बेगाना ।
समझा उनको , भी अपना ।
खोला हर ,राज़ पुराना ।
स्वार्थी हैं , अधिकतर रिश्ते ।
यह भी ये, दिल माना ।
कितना भी, इसे सिखलाया ।
पर ना , सीखा ठुकराना ।
चाहा तो, बहुत मनवाना ।
लेकिन ये, दिल ना माना ।
जिनके थे, दोहरे चेहरे ।
उनको भी, पड़ा अपनाना ।
क्यूंकि दिल तो, फ़िर दिल था ।
ये मेरी, एक ना माना ।
श्रीमती प्रगति दत्त
अलीगढ़ उत्तर प्रदेश
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