Pratibha Pandey Poetry

प्रतिभा पाण्डेय “प्रति” की कविताएं | Pratibha Pandey Poetry

प्रतिभा हो अनाड़ी दिखना नहीं है

हे नारी!तुम्हें कभी टूटना नहीं है,
सशक्त बनो तुम्हें बिखरना नहीं है ।।1।

सावन कहाँ सदैव रहता भला,
पीड़ित बन गेसू झरना नहीं है ।।2।

बसंत जानकर चलो खुद को,
पर कभी पतझड़ बनना नहीं है ।।3।

फूल की उपमा से सुशोभित हो,
फिर कण्टक बन चुभना नहीं है ।।4।

शिव शक्ति बने तभी उपजी भक्ति,
झांसे में सूपर्णखा होना नहीं है ।।5।

स्नेह दया ममता मूरत माता हो ,
जलती ज्वाला धधकना नहीं है ।।6।

धर्म कर्म पोषक, विधि रचित श्रेष्ठ,
प्रतिभा हो अनाड़ी दिखना नहीं है ।।7।

कहानी

ये कहानी हमारी, ससबर हो जाएगी ,
दुनियाँ किरदारों की,पूरक हो जाएगी ।।1।

उपल पिघल जाएगा, कोशिश करते रहिए,
बंजर जमीन हमारी , ससफर हो जाएगी ।।2।

अंधेरी रात है, जुगनू के साथ चलिए,
रवि के इंतजार में, दुपहर हो जाएगी ।।3।

जो नहीं डरते कभी, परीक्षा परीक्षण से,
वही सभी मंजिल भी, ठठहर हो जाएगी ।।4।

बढ़ाकर हाथ अपना,अब खींचने लगे सनम,
मौजे-जिन्दगी हरी, बे-सर हो जाएगी ।।5।

प्रेम के ये समुन्दर, काश खारे न होते,
तो मौत भी जिन्दादिल, ललहर हो जाएगी ।।6।

मीठे में थोड़ा तो, तंगी रखिए प्रतिभा,
स्वाभिमान रिश्तों में, कमकर हो जाएगी ।।7।

     जीवंत लगा  

 प्रेम-परिपूर्णा फरवरी आई,

     और धीर-धीरे खत्म हो रही,

       बात की रफ्तार,

     मेरी दुनिया के जिक्र पर रूक गई…,

        तेरे ख्वाब के ख्याल में,

        मैं फिर से अटक गई….।

       रोशनी मुस्कान को रही बिखेर,

       कब हुई रात कब हो गया सबेर,

           गमगीन हुए ख्याबों को,

           मीठी याद आज रही तरेर ।

       बिखराई थी जो बिखराहट आज भी है,

         कल के प्यार में तड़प आज भी है,

    वक्त गुजर गया कभी भी बेवक्त आने के लिए,

      खेल मुकद्दर मुझसे खेलता आज भी है ।

       हसीन पल जीवंत लगा मुझे,

      शक्कर में खटास कुछ कम लगा मुझे,

        गुदगुदाती रोती तन्हाईयाँ, मुस्कुराएं,

        आह!!!! हँसकर,

      फिर से एक पृष्ठ और पलट दिया मैंने ।

Pratibha Pandey

प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई

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