पडोसन

( Padosan ) 

 

लगा ली छत पें मैने बाग, पडोसन के आते ही।
कोई पूछे नही सवाल, लगा ली मैने खूब उपाय॥
मुझे दिन मे दिखता चाँद, पडोसन के आते ही….

सुबह सबेरे योगा करने जब वो छत पर आती है।
ठंडी हवा की खुँशबू बन, अन्तर्मन को महकाती है॥
मेरे दिल को मिला करार, पडोसन के आते ही….

अब घरवाली नही पुछती क्यो जाते हो छत पे।
पूजा के लिए फूल ले आना, कहती है वो तन के॥
हाँ फैला फूलों से संसार , पडोसन के आते ही……

समझ रही थी खूब पडोसन मेरे मन की बात।
हँस कर इक दिन पूछ लिया,अंकल जी क्या है हाल॥
शेर के दिल पे हुआ आघात, पडोसन के आते ही…..

बिखर गयी बागों की कलियाँ, बिखर गये था ख्वाब।
जेठालाल सा सोच रहा, बबीता जी की थी ख्वाब
अब तो दया का ही है साथ, पडोसन के आते ही…..

लगा ली छत पे मैने बाँग, पडोसन के आते ही।
कोई पूछे नही सवाल, लगा ली मैने खूब उपाय ॥
दिन मे दिखता अब तो चाँद, पडोसन के आते ही

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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