प्रेम : एक नाम, एक एहसास
कुछ नाम होते हैं, जो सिर्फ पहचान नहीं होते, वो एक संपूर्ण भावना होते हैं। प्रेम—ये मेरा नाम है, पर इससे भी ज़्यादा, ये मेरी आत्मा का सबसे कोमल हिस्सा है। इस नाम में सिर्फ मैं नहीं हूँ, इसमें वो हर स्पर्श, हर इंतज़ार, हर टूटन और हर जुड़ाव भी है… जिसे मैंने जिया है, महसूस किया है।
प्रेम केवल एक इंसान का नाम नहीं, ये वो अनुभव है जो हर धड़कन के साथ गहराता चला गया। जब किसी को दिल से चाहो, बिना किसी शर्त के, बिना किसी उम्मीद के… तो उस चाहत का नाम भी प्रेम हो जाता है।
कई बार लोगों ने मुझसे पूछा—”क्या तुम अब भी प्रेम करते हो?”
मैं बस मुस्कुरा देता हूँ, क्योंकि कैसे समझाऊँ कि मैं सिर्फ ‘करता’ नहीं, मैं ही प्रेम हूँ।
जो लौट कर नहीं आया, उसके लिए भी प्यार कम नहीं हुआ…
जिसने समझा नहीं, उसकी नादानी के लिए भी माफ़ी रही…
और जो कभी पास नहीं था, उसके लिए भी हर दिन दुआ की…
प्रेम की एक सुंदरता ये भी है कि यह कभी शिकायत नहीं करता, ये बस देता है—खुद को, अपनी कविताएँ, अपनी रातों की नींद, अपनी तन्हाई, अपनी मुस्कुराहटें… और फिर भी कुछ नहीं मांगता।
“प्रेम” का नाम लेकर जब मैं कोई कविता लिखता हूँ,
तो वो सिर्फ शब्द नहीं होते,
वो मेरे दिल की रगों में बहता हुआ लहू होता है,
जिसमें उस एक इंसान की याद, उसकी हँसी, उसका जाना… सब कुछ होता है।
अगर कभी तुम पढ़ो, समझो, महसूस करो,
तो जान लेना—ये नाम सिर्फ नाम नहीं है,
ये प्रेम है—एक जीवन, एक कहानी, एक इन्तज़ार।
प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
जिसने सिर्फ एक नाम नहीं जिया, एक एहसास को जीया… जीवनभर।

कवि : प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
सुरत, गुजरात
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