पुरवा बयार बहे | Purwa bayar bahe
पुरवा बयार बहे
( Purwa bayar bahe )
केतकी गुलाब जूही चम्पा चमेली,
मालती लता की बेली बडी अलबेली।
कली कचनार लागे नार तू नवेली,
मन अनुराग जगे प्रीत सी पहेली।
पुरवा बयार बहे तेज कभी धीमीं,
बगियाँ में पपीहे की पीप रंगीली।
बारिशों की बूँदे बनी काम की सहेली,
रागवृत रति संग करे है ठिठोली।
मन में मयूर नाचें घटा है घनेरी,
अंग अंग टूटे जैसे भांग की नशेडी।
ऐसे में बलम आजा छोड दे विदेशी,
गल रहा यौवन मेरा आजा परदेशी।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )