एक अनजाना फरिश्ता | Rajendra kumar pandey poetry
एक अनजाना फरिश्ता
( Ek anjan farishta )
जिंदगी के किसी मोड़ में जब खुद को तराशने जी जरूरत हुई
अनजाने राहों में अचानक ही एक अजनबी से मुलाकात हुई
वो अपनापन का पहला एहसास आज फिर महसूस हुई
और वो अजनबी अपना जाना पहचाना जरूरत बन गई
कभी तन्हा का साथ था कभी कल्पना की दुनिया साकार हुई
वो अजनबी वो अनजाना रिश्ता खास अजीज बन गई
वो अजनबी जीवन के राह में अनजाना फरिश्ता बन गया
मेरे हर अनकहे, अनजाने लब्जों को समझने लग गया
हर दुःख हर सुख हर विपत्ति का सशक्त हमदर्द बन गया
जीवन की अस्मिता का रक्षक बिखरते रिश्ते को संवारने लग गया
गम के बहते हुए आंखों के अश्कों को शबनम की बूंदे बना गया
आसमानी फरिश्तों के बारे में मैंने किताबों में पढा था
जिंदगी के किसी मोड़ पे उस जमीनी फरिश्ते से मुलाकात हो गया
मेरा दिल उसके मनमोहक छवि के आईने में कैद हो गया
पता नही चला वो अनजाना फरिश्ता कब अपना बन गया
ये कविता समर्पित है उस हमदर्द हमराज फरिश्ते पंकज को
कवि : राजेन्द्र कुमार पाण्डेय “ राज ”
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