रक्खा गया | Rakkha Gaya
रक्खा गया
( Rakkha Gaya )
इश्क़ का इक सिलसिला रक्खा गया
ज़ख़्म दे उसको हरा रक्खा गया
साज़िशों से वास्ता रक्खा गया
अपना केवल फ़ायदा रक्खा गया
कौन पहचानेगा तुमको फिर यहाँ
जब न तुमसे राब्ता रक्खा गया
फिर किसी घर में न हों दुश्वारियाँ
दूर घर से मयकदा रक्खा गया
वो बहुत मग़रूर हम मजबूर थे
दर्मियाँ इक फ़ासला रक्खा गया
झूठे के हक़ में हुए सब फ़ैसले
अब न कोई क़ायदा रक्खा गया
हिज्र की मुझको मिली सौगात यह
नाम मेरा दिल जला रक्खा गया
दाद मीना ख़ूब महफ़िल में मिली
जब नया इक क़ाफ़िया रक्खा गया
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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