तौबा | Tauba
तौबा
( Tauba )
बगावत से करो तौबा, अदावत से करो तौबा
मगर हर्गिज़ नहीं यारो मुहब्बत से करो तौबा
सही जाती नहीं ये दूरियाँ अब इश्क़ में हमसे
कहा मानो सनम अब तुम शरारत से करो तौबा
बिना मतलब ही मारें लोग पत्थर फेंक कर हमको
ये रोने और रुलाने की जहालत से करो तौबा
हसीं तुमसा नहीं मिलता ज़माने भर में देखा है
बुढ़ापे में जवानी की भी आदत से करो तौबा
सभी को एक सा हक़ दो, सभी को एक सा मानो
अमीरी और ग़रीबी की सियासत से करो तौबा
समझ के फ़ैसला करना हमारी चाहतों पर तुम
वफ़ा करना मगर खुद से बगावत से करो तौबा
चलो मिल बैठ कर सुलझा लो सारे मस्अले मीना
लडाई और झगड़े से, अदालत से करो तौबा
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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