Hanuman ji kavita
Hanuman ji kavita

जिस प्रकार से हनुमान जी महाराज को राम काज अर्थात अपने मालिक द्वारा निर्देशित कार्यों की आतुरता थी , वह धीरे-धीरे खत्म सी होने लगी है। वर्तमान समय में अक्सर देखा जा रहा है कि लोग अपने मालिकों से धोखेबाजी करने लगे हैं ।

उनमें वह कार्य करने के प्रति उत्साह नहीं दिखलाई देता है जैसा कि हनुमान जी महाराज जी के पास था । सेवक के लिए तो ना कोई काम छोटा होता है ना बड़ा बस उनका कार्य है – जैसा मलिक आज्ञा दे उस कार्य को तत्परता के साथ पूर्ण करना।

आजकल इसका उल्टा ही हो रहा है। देखा जाता हैं कि जो कार्य किसी मालिक द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को सौंपा जाता है उसमें वह जाहिलपना ज्यादा दिखाते हैं। हो सकता है मालिक में भी कमियां हो ।

लेकिन यदि आपको उसका मूल्य मिल रहा है तो उसे चाहिए कि उस कार्य को पूरी लगन, निष्ठा एवं तत्परता पूर्वक करें। मन में कोई कपट न रखें । कहते हैं कि चोर व्यक्ति भी ईमानदार साथी चाहता है। ईमानदारी चोरी डकैती में भी जरूरी है नहीं तो कोई चोरी डकैती नहीं डाल सकता है।

अक्सर यह भी देखा गया है की दुष्ट लोग तो और भी अपने मालिक की बात को मानने के लिए तत्पर होते हैं जबकि सज्जनों में उतनी तत्परता दिखलाई नहीं देती है । यही कारण है कि समाज में दुष्प्रवृत्ति और बढ़ती जा रही हैं । जबकि समाज में सज्जनता का लोप होता जा रहा है।

यदि हमें राम राज्य अर्थात श्रेष्ठ राज्य की स्थापना करना है तो श्रेष्ठ कार्यों , प्रभु कार्यों में तत्परता लानी होगी । हमें इस प्रकार से अटल रहना होगा जैसे हनुमान जी महाराज रहा करते थे। ऐसा नहीं कि ‘ राम राम जपना- पराया माल अपना’ उक्ति को चरितार्थ करते रहें ।

प्रभु कार्यों मलिक के कार्य में जो कपट रखता है उसकी ज्यादा वृद्धि नहीं हुआ करती है। ऐसा भी नहीं हो कि ‘मन में राम- बगल में छुरी ‘ यह सब नकारात्मक भाव है जिससे हमें बचाना होगा ।

पूर्व काल में ऐसी धोखेबाजी लोगों द्वारा किए गए होगी । जिसके कारण यह युक्ति प्रसिद्ध हो गई । अक्सर समाज में गलती एक व्यक्ति करता है लेकिन उसका खामियाजा पूरा समाज भोगता है।

इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह सभी प्रकार के प्रलोभन से दूर रहते हुए राम कार्य के लिए सदैव तत्पर रहे।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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