भारतीय समाज में पाखंड और अंधविश्वास इतना फैला है कि कौन सच्चा कौन झूठा इसका निराकरण करना बड़ा मुश्किल है। ऐसे लोग समाज में अंधविश्वास एवं पाखंड फैलाकर और गर्त में डाल देते हैं। यही कारण है कि भारत में वैज्ञानिक प्रतिभा का विकास नहीं हो पाता है।

सुदेश नामक एक बालक समाज से ऐसे पाखंड हेमंत विश्वास को दूर करने के लिए उसकी तह तक जाया करता था। उसका मन इस प्रकार के अंधविश्वासों से बड़ा विचलित रहा करता था।

उसने समाज में देखा कि किस प्रकार से भोली भाली जनता को लोग धर्म के नाम पर तक रहे हैं तो उसका हृदय कराह उठा। उसने सोचा कि यदि समाज में इस प्रकार के पाखंड एवं विश्वासों को दूर करना है तो उसकी तह में जाना पड़ेगा।

इसलिए जब उसने सुना कि मथुरा के किसी गांव में एक तांत्रिक रहते हैं । तो वह उनसे मिलने के लिए चल पड़ा। उसे पता चला कि उन्होंने देवी को सिद्ध कर लिया है देवी मैया उन पर प्रसन्न है और उन्हें त्रिकाल दर्शी होने का वरदान दिया हुआ है।

सुदेश ने यह जानने का प्रयास किया के इसके पास कोई सिद्धि है कि नहीं कि यह मात्र लोगों को बेवकूफ बना रहा है। इसलिए उसने उस त्रिकालदर्शी बाबा के आश्रम के लोगों से मेल मिलाप करना शुरू कर दिया।

अगले दिनों उसे उस त्रिकालदर्शी बाबा से मुलाकात करनी थी। इसलिए वह स्नान ध्यान करके बाबा से मिलने निकल पड़ा। बाबा से मिलने व दो 300 लोग पहले से बैठे हुए थे। वह भी उनके साथ जाकर बैठ गया।

उसने देखा कि बाबा माथे पर त्रिपुंड, लाल रेशमी धोती , बढ़े हुए बाल, चढ़ी हुई आंखें, देखने में आकर्षक लग रहा था। अब उस बाबा ने एक व्यक्ति का नाम पुकारा और उसके बारे में बहुत सी बातें बताने लगा।

यह सब उसी प्रकार हो रहा है जिस प्रकार से आजकल एक बाबा लोगों का भविष्य लिखकर बताया करता है। जिसके पास लाखों के भीड़ टूट पड़ती है। ऐसा लगता है कि क्या अनपढ़ क्या पढ़ा लिखा धर्म के नाम पर सब अंधे हैं। इस देश में अंधे अंधों को मार्ग दिखा रहे हैं।

इस अंधेपन में लोग भेड़ियों की तरह ऐसे टूटते हैं कि पूछो मत। कहां जाता है के जब किसी भेड़ को नदी पार करना होता है तो भेड़ का मालिक एक भेदी उठाकर जल में फेंक देता है ।

उस भेड़ को देखकर उसके पीछे-पीछे अन्य भेड़िया भी पानी में कूद जाते हैं। इसी प्रकार से पीछे-पीछे सभी भेड़िया जल में उतर जाती हैं और नदी को पार कर लेते हैं यही स्थिति आज मनुष्यों की हो गई है।

सुदेश ने देखा कि जिस व्यक्ति को बाबा ने बुलाया था ।वह हाथ बांधकर खड़ा हो गया ।अब उस खड़े हुए व्यक्ति का सारा इतिहास वह बाबा बताने लगा। ऊपर पेड़ की ओर उसकी दृष्टि थी। भाव भंगिमा ऐसी बनाता था मानो पेड़ के ऊपर कोई देवता बैठा हो और वह उनसे कुछ कह रहा हो ।

जो बातें वह देवता से सुनता हो वही बातें वह कह रहा हो । कभी-कभी अपनी भूल का बहाना करके देवता से फिर दोबारा उस बात को पूछता और अपनी गलती को दुरुस्त करता।

इस प्रकार जो व्यक्ति पुकारा गया था। उसका गांव , नाम, घर की बनावट, पारिवारिक परिचय अन्य गुप्त प्रकट बातें, घर से यहां तक आने का वृतांत, यहां आने का प्रयोजन, अनेकों बातें सविस्तार उसने बताएं और किस काम के लिए आया था । उसके संबंध में भविष्यवाणी की जो बातें बताई गई थी सभी सही थी।

ऐसे में बेचारा वह व्यक्ति श्रद्धा से गदगद हो गया । ऐसी स्थिति में वह बाबा उसकी दृष्टि में ईश्वर के बराबर था । जो कुछ भी उसने भेंट पूजा लाया हुआ था उसने बाबा के चरणों में समर्पित कर दिया।

इस प्रकार से एक-एक व्यक्ति को बुलाया जाता और वह त्रिकालदर्शी बाबा उसके बारे में गुप्त बातें बताता था । सुदेश को लग रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ है इस बाबा को एक-एक चीज कैसे पता हो जाती है?

सुदेश का उद्देश्य इस बाबा के द्वारा समाज में अंधविश्वास एवं पाखंड फैलाने से पर्दा उठाना था। इसलिए उसने प्रयास करना नहीं छोड़ा कि इसका रहस्य क्या है? क्या यह बाबा ऐसे ही लोगों को बेवकूफ बना रहा है कि इसमें वास्तव में कोई शक्ति छिपी हुई है?

सुदेश एकदम पीछे बैठा हुआ था। अब बाबा ने उसको पुकारा। सुदेश भी अन्य लोगों की भांति हाथ बांधकर खड़ा हो गया । अब वह देवता से पूछने और उसके संबंध में बताना शुरू कर दिया। परंतु उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा जब देखा कि उसके संबंध में एक भी बात सच नहीं बताई जा रही है।सब की सब गलत है।

जब सब लोगों की बातें सच बताई जा चुकी हैं तो मेरे संबंध में एकदम उल्टा क्यों हो रहा है ?उसने इसकी तह में जाते हुए अनुभव किया कि आश्रम का जो व्यक्ति मेरे बारे में पूछ रहा था जैसा मैंने बताया वही सब कुछ यह बाबा बता रहा है इसमें नया कुछ भी नहीं है।

अब उसकी समझ में आने लगा कि ढोल में कहां पोल है? सुदेश को वास्तविकता समझते देर नहीं लगी। अब बाबा ने उससे पूछा -“बताओ जो मैं बता रहा हूं सही है कि नहीं?”

सुदेश को इसकी वास्तविकता और जाननी थी । इसलिए उसने झूठ बोल दिया कि जी बाबा जी आप सब सही बता रहे हैं। उसने देखा कि उस बाबा ने अपने चार-छह भक्तों को स्टेशन पर लगा रखा था। जिनका काम था जो भी व्यक्ति आता उसके बारे में छोटी-छोटी बातें पूछना और आने का उद्देश्य पूछना और वही बातें वह बाबा से बता दिया करता था। उसका हुलिया वगैरा नाम सब बता दिया करता ।

जैसा वह व्यक्ति बताता वैसा ही बाबा भी वह दोहरा दिया करता। इस प्रकार से उसने देखा कि यह बाबा किस प्रकार से लोगों को मूर्ख बनाकर अपना धंधा चला रहा है। वास्तव में देखा जाए तो इस प्रकार के हैं अंधविश्वास एवं पाखंडों में कुछ भी सार नहीं है।

ऐसे लोग जनता को किस प्रकार से मूड़ बनाकर उनको लूटना है। बस यही कला जानते हैं और इस कला के द्वारा जनता को लूट कर ऐसो आराम से अपनी जिंदगी गुजारते हैं।

इन लोगों को जनता से कोई मतलब नहीं होता है। इनका बस इतना मतलब होता है जनता को बेवकूफ बना और ठाठ-बाट से जिंदगी गुजारो। जनता गर्त में जाए चली जाए इससे कोई मतलब नहीं होता है।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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