मैंने अपने होंठ बंद कर लिए | Ramakant poetry
मैंने अपने होंठ बंद कर लिए
( Maine apne honth band kar liye )
वक्त ने करवट बदली रिश्तो में दिखावा भर दिया
इतनी दरारें आई घर में घट घट छलावा कर दिया
हम हितेषी हो उनके दुख दर्द बांटने चल दिए
लड़ने को तैयार वो बैठे मैंने होंठ बंद कर लिए
अपना उल्लू सीधा करके सीधा-सीधा घी आये
घोटालों गबन की भाषा सत्य सरासर पी जाए
नियति और संस्कारों में जहर मिला है अब कैसा
मां-बाप से ज्यादा कीमती दुनिया में लगता पैसा
भाई भाई टांग खींचते बहना तो बात बड़ी करती
सुलह मशवरा कहां है जिद्द समस्या खड़ी करती
सौभाग्य से निज झोली में संस्कार चंद धर लिए
सब बैठे बंटवारे में मैंने अपने होठ बंद कर लिए
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )