विश्व स्तरीय रामलीला नरईपुर की

विश्व स्तरीय रामलीला नरईपुर की

आजमगढ़, तहसील और ब्लाक मार्टिनगंज के अंतर्गत अपनी ग्राम पंचायत नरई-सुल्तानपुर की रामलीला जो नरईपुर में आज भी मंचित होती है इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई,ठीक-ठीक से कहना मुश्किल है।

इस सिलसिले में जब मैंने मुंबई से आदरणीय श्री मदन मोहन चौबे जी तथा आदरणीय कैलाश मिश्र जी से ऑनलाइन बात की तो उन्होंने मुझे बताया कि यह रामलीला 1945 ईसवी के आस पास से आरम्भ हुई।

उनके मुताबिक इस रामलीला के संस्थापक आदरणीय स्व. विक्रमा मिश्र जी,आदरणीय स्व. रामकिशुन
चौबे जी तथा अन्य थे। आगे उन्होंने मुझे बताया कि शुरुआती दौर में राम की भूमिका में गाँव के ही आदरणीय श्रीधर चौबे जी और कालांतर में आदरणीय मदन मोहन चौबे जी,लक्ष्मण जी की भूमिका मे आदरणीय जनार्दन मिश्रा जी और कालांतर में आदरणीय स्व. चिंतामणि मिश्रा जी और बाद में चलकर आदरणीय सुरेन्द्र चौबे जी,आदरणीय वीरेंद्र चौबे जी,आदरणीय राधेश्याम चौबे जी, आदरणीय मदसूदन चौबे जी, आदरणीय यशवंत यादव जी कभी लक्ष्मण तो कभी अन्य भूमिकाओं में नजर आते हैं।

दशरथ तथा रावण की भूमिका में आरम्भ में आदरणीय स्व. रामकिशुन जी तथा आदरणीय रामकृष्ण चतुर्वेदी जी,जनक, सुषेण वैद्य,परशुराम, वशिष्ठ और केवट, निषादराज की भूमिका आदरणीय स्व. जगदीश मिश्र जी, जामवंत,सुरसा, ताड़का, कुंभकरण आदि की भूमिका में आदरणीय स्व. सुखनन्दन चौहान जी, मेघनाथ की भूमिका में आदरणीय स्व. सुरुवल विश्वकर्मा जी, जामवंत की भूमिका में आदरणीय जनार्दन मिश्र जी, मेघनाथ की भूमिका में आदरणीय रामसेवक चौहान जी,अहिल्या. मंदोदरी,मंथरा की भूमिका में आदरणीय फूलचंद जी, शूर्पणखा की भूमिका में आदरणीय संतलाल जी, शबरी की भूमिका में आदरणीय जयवंत यादव जी,खर-दूषण,जटायु, हँसने-हँसाने आदि की भूमिका में कल्पनाथ चतुर्वेदी तथा अन्य सह कलाकार अपना-अपना अभिनय करते रहे।

विभीषण की भूमिका में आदरणीय रामधारी मिश्र,व्यास यानी सूत्र संचालन की भूमिका में आदरणीय स्व.कन्हैया जी और साथ में ढोलक बजाने का भी काम करते रहे। अगले चरण में राम की भूमिका में आदरणीय दिनेश मिश्र जी, लक्ष्मण की भूमिका में आदरणीय यशवंत विश्वकर्मा जी,सीता जी की भूमिका में आदरणीय सुभाष यादव जी तथा अन्य भूमिकाओं में आदरणीय महादेव यादव जी, आदरणीय सतीश प्रजापति जी, राजेन्द्र प्रसाद चौबे जी, आदरणीय सुनील मिश्र जी, आदरणीय संजय मिश्र जी, आदरणीय मंगला प्रसाद यादव जी,आदरणीय सुनील यादव जी,आदरणीय कमलेश चौहान जी,आदरणीय इंद्रदेव यादव जी,आदरणीय चंद्रेश चौहान जी,आदरणीय कालिका चौहान जी।

यहाँ समझनेवाली बात यह है कि कुछ पात्र प्रतिवर्ष बदलते रहते हैं और उनके स्थान पर नये पात्रों का चयन होता रहता है। इस वर्ष (2021) के दरम्यान पात्रों का चयन इस तरह किया गया- राम की भूमिका में हैं, आदरणीय राजेन्द्र प्रसाद चौबे जी, आदरणीय सुभाष यादव जी,आदरणीय कालिका चौहान जी,आदरणीय मुलायम यादव जी, लक्ष्मण की भूमिका में हैं आदरणीय मंगला प्रसाद यादव जी, आदरणीय सुनील चौहान जी, आदरणीय मोनू मिश्रा जी, सीता जी की भूमिका में हैं आदरणीय विजय यादव जी, आदरणीय सतीश प्रजापति जी, आदरणीय प्रदीप यादव जी, भरत की भूमिका में हैं आदरणीय रमेश उपाध्याय जी तो भरत की भूमिका में हैं आदरणीय उमेश उपाध्याय जी, दशरथ और केवट की भूमिका में हैं आदरणीय मदन मोहन चौबे जी, गुरु वशिष्ठ और सुमंत्र की भूमिका में हैं आदरणीय कैलाश मिश्र जी,अहिल्या, कैकेयी, सुलोचना की भूमिका में हैं आदरणीय शिवचरण चौहान जी,जनक की भूमिका में हैं आदरणीय चंद्रेश चौहान जी,परशुराम की भूमिका में हैं आदरणीय राजेश चौहान जी, विश्वामित्र और व्यास (सूत्र-संचालन ) की भूमिका में हैं आदरणीय संजय मिश्रा जी,रावण की भूमिका में हैं आदरणीय सुभाष यादव जी,वाणासुर की भूमिका में हैं आदरणीय रामबदन यादव जी,हनुमान की भूमिका में हैं आदरणीय महादेव यादव जी,बालि की भूमिका में हैं आदरणीय संजय मिश्रा जी,सुग्रीव की भूमिका में हैं आदरणीय शिवचरण चौहान जी, शबरी की भूमिका में हैं आदरणीय यशवंत यादव जी,मेघनाथ की भूमिका में हैं आदरणीय कृष्णनाथ यादव जी,अंगद की भूमिका में हैं आदरणीय रमेश उपाध्याय जी,विभीषण की भूमिका में हैं आदरणीय इंद्रदेव यादव जी, मंथरा की भूमिका में हैं आदरणीय शीतलाप्रसाद यादव जी और कुछ ऐसे सदाबहार कलाकार हैं जो किसी भी भूमिका में बिलकुल फिट बैठते हैं जैसे-आदरणीय मदन मोहन चौबे जी,आदरणीय कैलाश मिश्र जी, आदरणीय संजय मिश्रा जी,आदरणीय राजेश चौहान जी,आदरणीय रामबदन यादव जी, आदरणीय राजेन्द्र प्रसाद चौबे जी, आदरणीय दीपक चौबे जी, आदरणीय घनश्याम चौबे जी, आदरणीय मकसूदन चौबे जी, आदरणीय उमेश उपाध्याय जी,आदरणीय विश्वजीत चौहान जी,आदरणीय यशवंत यादव जी, आदरणीय डॉ.केदार यादव जी।

इस तरह सभी ग्रामवासियों के मजबूत इरादों से यह रामलीला प्रतिवर्ष संपन्न होती है। मंच का जो विस्तार रूप हमें देखने को इस वक्त मिल रहा है उसका सारा श्रेय नरईपुर रामलीला के वर्तमान अध्यक्ष आदरणीय रमेश उपाध्याय जी को जाता है।

वहीं दूसरी तरफ रामलीला का मंचीय कार्य आदरणीय स्व. लक्ष्मीनारायण मिश्र जी के कमलवत हाथो आरंभ हुआ था जो आज आदरणीय मदन मोहन चौबे जी की अध्यक्षता में वह फल-फूल रहा है जिसकी सुगंध दुनिया के कोने-कोने में फैल रही है और अपनी कलाकारिता का लोहा भी मनवा रही है।

विश्व-प्रसिद्ध यह रामलीला जितनी बार भी इसे कोई देखे,मन नहीं आघाता,मेरे ख्याल से यही इसका जादू है। आज जहाँ देश की नई पीढ़ी पाश्चात्य सभ्यता की अंधाधुंध नकल कर रही हैं,वहीं इस गाँव की नई और पुरानी पीढ़ी भारतीय संस्कृति के संस्कारों का परचम लहरा रही है।

यह देख-सुनकर किसी भी भारतीय का सीना गर्व से ऊँचा हो जाता है। जहाँ कहीं भी इतने पवित्र आत्मा के लोग जाते हैं,उस जमींन का उतना हिस्सा स्वतः पवित्र हो जाता है। आओ,लौट चलें हम फिर से अपनी भारतीय संस्कृति की तरफ जिसमें सीधे-सीधे इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

ये कोई घाटे का सौदा नहीं। इस रामलीला के लगभग सभी पुराने पात्र इस धरती को अब अलविदा कह चुके हैं। मैं रामकेश माताभीख यादव उन सभी दिवंगत पुण्य आत्माओं को अपना श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ और ईश्वर से ये प्रार्थना करता हूँ कि उन सभी परम आदरणीय श्रद्धेय आत्माओं को भगवान शांति प्रदान करे!

आस-पास के गाँव तेजपुर, देवापुर ,टेउखर,चक- टेउखर,रंगडीह, क़स्बा, पुरन्दरपुर, रामशाला, फतेहपुर, कमालपुर आदि गाँवों की जनता-जनार्दन भी उन सभी आत्माओं की शान्ति के लिए परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करती है और उनके कामों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करती है।

इस तरह मेरे गाँव के लोग भी बताते हैं कि नरईपुर जैसी रामलीला कहीं और नहीं होती। जब मैं 1965 में खुद रामलीला देखने गया, तो मुझे सबकी बात बिलकुल सही लगी। सीधे त्रेता युग की अनुभूति होती थी।

जैसे दो धारावाहिक सीरियल रामानंद सागर जी का रामायण और दूसरा बी.आर.चोपड़ा जी द्वारा अभिनीत महाभारत को कौन भूल सकता है। इसी तर्ज पर वो हमारे सभी पुराने पात्र त्रेता युगीन रामलीला का साक्षात् दर्शन कराते थे जिसे देख-सुनकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता था।

कुछ इसी तरह की मिठास आज की भी रामलीला में देखने को मिलती है। इस तरह नरईपुर की रामलीला बड़ी ही अद्भुत और अनोखी लगती है। मेरे ख्याल से यह विश्व प्रसिद्ध रामलीला है क्योंकि ऐसी रामलीला कहीं और देखने को मिलती ही नहीं।

इन पात्रों में अपने काम के प्रति सच्ची लगन,सहजता,शालीनता,अभिनय शीलता, कर्मठता,शब्दों का उच्चारण,भाव-भंगिमा,उच्च कोटि की पोशाक, रंगशाला की सजावट, पात्र-चयन प्रक्रिया तथा अदाकारी मानों जन्म से ही इनमें कूट-कूटकर भरी हो। इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं है।

बिलकुल आँखों देखा वर्णन कर रहा हूँ। मुझे वो सारे पात्र आज भी मेरी नजरों से मानों गुजरते नजर आते हैं जब कभी भी और कहीं की भी रामलीला की चर्चा होती है,मैं अपनी इस रामलीला की चर्चा करना नहीं भूलता। सारे के सारे ये पात्र मानों मेरी आँखों में तैरने लगते हैं।

बालपन में जो संस्कार किसी के मन-मस्तिष्क पर असर डालते हैं वो फिर पूरे जीवनभर कभी नहीं साथ छोड़ते। मुझे आज जो भी प्रसिद्धि मिल रही है इसी रामलीला की देन है। इन्हीं अच्छे संस्कारों की देन है।

कहा भी गया है कि एक अच्छा इंसान बनने के लिए अच्छी संगत की जरुरत पड़ती है। इसका मुझे भरपूर लाभ मिला और मेरी रचनाएँ आज दुनिया के 165 देशों में पढ़ी जा रही हैं। मेरे ख्याल से ये सबकी दुवाओं का फल है। एक अच्छा इंसान बनानेवाली इस रामलीला को मेरा ह्रदयतल से वंदन,अभिनन्दन और सल्यूट है और मैं समग्र समाज का हमेशा ऋणी रहूँगा।


इस रामलीला के वर्तमान पात्र भी बहुत ही सुन्दर और अपने काम के प्रति कर्मठ हैं। वही सादगी, वही सरलता,वही शालीनता,सजगता,भाव-भंगिमा, शुद्ध वर्तनी,आकर्षक राजसी पोशाक, अभिनयशीलता देखते ही बनती है। ये सभी के सभी पात्र अपने अभिनय से सबका मन मोह लेते हैं।

अब के सभी म्यूजिशियन और नर्तकी बनारस से आते हैं और ये सभी के सभी मुसलमान भाई हैं। गंगा-जमुनी तहजीब अगर किसी को देखनी है,तो वो हमारे यहाँ के गाँव में आज भी देख सकता है।

हिन्दू-मुस्लिम तो सिर्फ राजनेताओं का विषय बन कर रह गया है। आम जनता का इससे कुछ लेना-देना नहीं। दशवें दिन उसी रामलीला मैदान में मेला का आयोजन किया जाता है। दूर-दूर के कारोबारी, व्यापारी इस मेले का भरपूर लाभ उठाते हैं।

इस मेले की जलेबी का स्वाद मुझे आज तक नहीं भूला और न ही भूलेगा। जिन महानुभावों ने दशरथ,राम,लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी, सीता, वशिष्ठ, परशुराम, विश्वामित्र, सुमंत्र हनुमान, जनक बालि, सुग्रीव, तारा, रुमा, अंगद, कुंभकरण, विश्रवा, विभीषण, अहिरावण, खर दूषण, शूर्पणखा, मंदोदरी, मेघनाथ, ताड़का,मारिची, सुबाहू, सुरसा, त्रिजटा, प्रहस्त, शंभासुरलंकिनी, कंबद, जामवंत, नल-नील, शबरी, अत्रि मुनि, मतंग ऋषि, संपाती, जटायु, गुह, सुषेण वैद्य, केवट, निषादराज ,शुक्र सारण, गौतम, अहिल्या, मंथरा,परशुराम, मारीच, माल्यवान आदि का अभिनय किए और आज भी कर रहे हैं।

उन सभी के श्री चरणों में झुकर मैं नमन-वंदन करता हूँ। ऐसे ही विश्व पटल पर यह रामलीला अपनी सुकीर्ति की सुगंध बिखेरती रहे! इस तरह भारतीय कला और संस्कृति का संवर्धन करने वाला यह गाँव अपने आप में एक बेजोड़ ऐतिहासिक गाँव है और सभी को इस पर गर्व होना चाहिए।

त्रेतायुग के उस राम के आदर्शों को आज के बिगड़े जमाने में भी आम जनता तक पहुँचाना अपने आप में काबिलेतारिफ है क्योंकि आज लोग अपनी भारतीय संस्कृति को ठुकरा कर पाश्चात्य संस्कृति के गुलाम होते जा रहे हैं, अर्द्ध नग्नता की तरफ बढ़ रहे हैं, लाइफ स्टाइल बदल रहे हैं,ऐसे में आपसी भाईचारा,सामाजिक ताने-बाने,
छोटे-बड़े का अदब,क्षीण होते संस्कारों की फिर नींव रखना यक़ीनन कठिन काम है लेकिन धन्य हैं इस गाँव के लोग जो रामलीला का दर्शन कराकर सीधे मोक्ष की तरफ हरेक का रास्ता साफ कर रहे हैं।

कितना अद्भुत गाँव है ये और मुझे इस पर गर्व है। गर्व इस बात का भी है कि ऐसी अद्भुत रामलीला कहीं और देखने को नहीं मिलती। मेरी मुंबई में भी रामलीला होती है लेकिन नरईपुर से नीचे।

हालाँकि हमारे देश में रामलीला अयोध्या, जनकपुर, वाराणसी, प्रयागराज, चित्रकूट, मुंबई सहित तमाम गाँवों, कस्बों, शहरों और राज्यों में आज से नहीं सदियों से मंचित होती आ रही है।

भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भी बड़े ही उत्साह के साथ रामलीला का मंचन किया जाता है। दक्षिण-पूर्व एशिया के लगभग सभी देशों में किसी न किसी रूप में रामलीला होती है।

थाईलैंड, जापान,श्रीलंका,वर्मा,ऑस्ट्रेलिया,मलेशिया, कम्बोडिया,वालीद्वीप,फिलिपाइंस,चीन,प्राचीन अमेरिका,पेरू आदि देशों में आज भी रामलीला का आयोजन किया जाता है।

मलेशिया में तो आज भी मुस्लिम अपने नाम के साथ अक्सर राम- लक्ष्मण और सीता का नाम जोड़ लेते हैं क्योंकि सनातन धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है और आगे चलकर फिर कई धर्मों का उदय भी हुआ।

तो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का आदर्श सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही नहीं है,बल्कि समग्र सृष्टि के लिए है। राम एक जीवन है,राम में पूरा लोकतंत्र छिपा है। त्याग भरे जीवन को आप किसी एक मजहब से जोड़ नहीं सकते।

राम सभी के हैं और सभी राम के हैं। राम का जीवन एक खुली किताब जैसा है। मजहबी चश्में से राम को देखना सही नहीं होगा। राम का अर्थ ही है प्रकाश और दूसरा अर्थ ब्रह्मा,विष्णु और रूद्र यानी जो रोम-रोम में व्याप्त हो। राम जीवन का मंत्र है, मृत्यु का नहीं।

राम गति का नाम है ठहराव का नहीं ठहराव-बिखराव, भ्रम- भटकाव, मद और मोह के समापन का नाम ही, राम है।
वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास जी के रामचरित मानस से इंसान बहुत कुछ सीखकर अपना इहलोक और परलोक दोनों सुधार सकता है।

समाज का सिस्टम सुधार कर त्रेता युग की तरह अपना जीवन-यापन कर सकता है। झूठ का सहारा न लेकर सत्य के सहारे समग्र समाज में समरसता पैदाकर बिना किसी लड़ाई-झगड़े के वो रह सकता है।

आमतौर पर लोग बात-बात में रावण को बुरा बोल देते हैं जब कि सच्चाई यह है कि रावण इतना बुरा नहीं था जितना आम लोग समझते हैं।

वह अपने कुल की भलाई के लिए माता सीता का हरण किया था क्योंकि बिना माता सीता के हरण के वो और उसके राक्षस कुल के लोग तरते नहीं अर्थात मुक्ति नहीं पाते इसलिए वह माता सीता को हरकर अपने सोने की लंका के अशोक वाटिका में महिलाओं के संरक्षण में रखा और किसी तरह की जोर जबरदस्ती नहीं की।


आज गाँव हो या शहर, महिलायें कहीं नहीं सुरक्षित हैं। दरिंदों की बुरी नजर लगी ही रहती है। आए दिन अनाचार,दुराचार,व्यभिचार हो ही रहा है। फाँसी पर लटकने के बावजूद भी लोग नहीं सुधरे।

छोटी-छोटी बच्चियों से रेप कर रहे हैं और इसके बावजूद भी हम प्रतिवर्ष रावण पर रावण जलाते जा रहे हैं। मेरे ख्याल से लोगों को अपने अंदर के रावण को जला देना चाहिए फिर रावण के पुतले को हाथ लगाना चाहिए। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर मैंने ये रचना लिखी, पढ़िए सभी आदरणीय मेरी इस रचना को :-

तीर क्या चलाओगे ?

खुद पे तुम तीर क्या चलाओगे
अपने रावण को क्या जलाओगे।

पाप के जाल में फंसा मानव
अपनी करनी से वो बना दानव।
ऐसा विषदंश क्या हिलाओगे
अपने रावण को क्या जलाओगे।
खुद पे तुम तीर क्या चलाओगे।

कितनी अबलाएँ रोज बिकती हैं
कितनी बाजार उनसे सजती हैं।
ऐसे मर्दों को क्या समझाओगे
अपने रावण को क्या जलाओगे।
खुद पे तुम तीर क्या चलाओगे।

अब तो रावण का ही जमाना है
अब तो रामों का न ठिकाना है।
चीख -चीत्कार किसे सुनाओगे
अपने रावण को क्या जलाओगे
खुद पे तुम तीर क्या चलाओगे।

लोग अपने गिरेबान में झाँकें तो मालूम पड़ेगा कि वो कितने गलत हैं और रोज के हिसाब से झूठ बोल रहे हैं। पैसे का जो मद है। भगवान राम आपने-सामने की लड़ाई में भी रावण का सीना नहीं बेधे क्योंकि रावण,माँ सीता का पुजारी था। राम अगर बाण सीने पर चलाते तो माँ सीता को भी वो बाण लगता इसलिए राम ने रावण की नाभि में बाण चलाकर रावण को सदगति प्रदान की। इस तरह भगवान श्रीराम लंका को जीतकर धर्मपरायणता का एक सन्देश दिए।

धर्म का अर्थ ही है धारण करना अर्थात सत्य को धारण करना,पाखंड को नहीं। तो कौन बताएगा कि सही क्या है और गलत क्या है? हमारे मनीषी,हमारे वेद,हमारे शास्त्र इसका निराकरण करते हैं। जैसे किसी विधि पर पार्लियामेंट क़ानून पास कर देती है पर व्यवहार के आईंने में वो क़ानून खरा नहीं उतरता तो सर्वोच्च न्यायालय उसकी विवेचना करता है और अपना फैसला सुनाता है,ठीक उसी तरह धर्म के मामले में वेद-शास्त्र हमारा मार्गदर्शन करते हैं।

सत्य-असत्य के बीच का अंतर स्पष्ट करते हैं। देखा जाए,तो धर्म पर ही दुनिया की धुरी टिकी है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का समग्र जीवन हम सबके लिए प्रेरणास्रोत है जो हमें हर परिस्थिति में अपने कर्तव्यों के पालन की सीख देता है और बुराई से लड़ने की प्रेरणा देता है।


हम मनुष्य की यात्रा पशु से आरम्भ हुई थी जो लाखों-करोड़ों वर्षों के बाद इस देवत्व रूप में तब्दील हुई और जिसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष बताया गया।

मोक्ष का अर्थ होता है आवागमन के बंधन से मुक्ति तो इन लाखों-लाखों वर्षो में ईश्वर इस धरती पर अलग-अलग स्वरूप में अवतार लिए चाहे हिन्दू के यहाँ या पैग़म्बर के रूप में या जीससक्राइस्ट के रूप में।

हरेक अवतार में धरती पर अमन कायम करना ही ईश्वर का मकसद रहा। हम साधारण मनुष्य मजहब को लेकर आपस में झगड़ते रहते हैं जो सही नहीं है क्योंकि ईश्वर एक है।

कहा भी गया है कि नदिया एक घाट बहुतेरा अर्थात ईश्वर तक पहुँचने के अलग-अलग मार्ग हैं पर सबका लक्ष्य एक है। इसे और आसान भाषा में समझाने का प्रयास करते हैं कि जैसे-आकाश से गिरा हुआ पानी नालों, नदियों व झरनों के टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होते हुए अंत में सागर में वो जा मिलता है, ठीक उसी तरह किसी की पूजा-अर्चना, ध्यान, तपस्या व्रत, अरदास ईश्वर तक स्वतः पहुँच जाती है, इसमें संशय नहीं।

महावीर स्वामी,गौतम बुद्ध अपने अवतार में हमें अहिंसा का पाठ पढ़ाये। हम मनुष्य अपने पैसे,जवानी,प्रभुत्व को लेकर एक दूसरे को सताते रहते हैं। यह कहाँ का न्याय है?

जिस दिन से हम औरों के दिल में भी ईश्वर देखना आरंभ कर देंगे, सारी धरती की समस्याएँ स्वतः खत्म हो जायेंगी। इस तरह राम को केवल हिन्दू से जोड़कर देखना बेईमानी होगी। राम सभी के हैं।

अखिल विश्व उन्हें अपना आदर्श मानता है। कमियाँ खोजने वाले किसी में भी खोज लेते हैं। सतीत्व की प्रतीक माता सीता में भी लोगों ने कमियाँ खोजी थीं।

अग्नि परीक्षा के बाद भी राज भवन से निकाल कर उन्हें जंगल में छोड़ा गया जहाँ लव-कुश पैदा हुए। कालांतर में सीता मैया उंगली उठाने वालों को आईना दिखाती हुई सदा के लिए माँ धरती की गोंद में समा गईं। समाज को आज भी सुधारने की जरुरत है। संस्कार देने की जरुरत है। देखा जाए,

तो न तब ही दुष्टों की कमी थी और न तो आज ही है। अच्छे-बुरों से समाज भरा पड़ा है। बस जरुरत है बच्चों को सुसंस्कारित किया जाए। सही क्या है और गलत क्या है, में अंतर बताया जाए,तब जाकर हमारा सशक्त और सुदृढ़ समाज बनेगा। नारी सशक्ति का भी रास्ता साफ होगा। कहा भी गया है कि- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।।

और वही पर ये भी कहा गया है कि –
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया :।।
इस तरह नारी का सम्मान करते हुए ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं और दूसरा विकल्प नहीं। नयी पीढ़ी राम के आदर्शो पर चले,इसके लिए जगह-जगह प्रति वर्ष रामलीला का मंचन किया जाता है।

इस तरह की रंगशालाएँ अपने अभिनय द्वारा दर्शकों को अंदर से प्रभावित करती हैं और सीधे हृदय तल में अपनी जगह बनाती हैं। जब एक बार किसी भी मनुष्य में अच्छे आचरण उतर आते हैं,तो वो अंतिम साँस तक साथ नहीं छोड़ते।

गांधी जी जब बाल उम्र में राजा हरिश्चंद्र का नाटक देखे थे कि सपने में राजपाठ दान में देने के बावजूद भी राजा हरिश्चन्द्र अपने संकल्प से नहीं डिगे,गांधी जी के दिल में ये बात सीधे उतर गई और फिर पूरे जीवन में गांधी जी कभी झूठ नहीं बोले,तो ये है हमारा संस्कार और हमारे समाज की मजबूत पृष्ठिभूमि।

इस तरह हमारी रामलीला आध्यत्मिक,सामाजिक तथा व्यवहारिक जीवन का मार्गदर्शन करती है। माना कि दुनिया को ये पता है कि अयोध्या में जन्मे राम,लक्ष्मण,भरत और शत्रुघ्न चार भाई थे और उनकी माता कौशल्या,सुमित्रा और कैकेयी थीं। पिता चक्रवर्ती सम्राट, राजा दशरथ थे।

भरत को राजगद्दी देने के लिए कैकेयी ने अपने दोनों वरदानों का इस्तेमाल किया जब अगली सुबह रामजी का राजतिलक होने वाला था।पिता के आदेश से वलकल वस्त्र धारणकर 14 वर्ष के लिए राम वन गमन किए और साथ में सीता तथा लक्ष्मण भी वन गए।

वनवास के दौरान लंका का राजा रावण,माँ सीता का हरण किया। भालू-बंदर की मदद से राम ने रावण का वध किया। बस इसी बात का सन्देश देने का काम नरईपुर की रामलीला आज भी कर रही है।


यह सभी को पता है कि मरणोपरांत एक तृण तक कोई भी इंसान इस धरती से अपने साथ नहीं ले जा सकता फिर भी लोग अपनी शक्ति और पैसे का बेजा इस्तेमाल करते हैं जो गलत है।

इस तरह किसी की संपत्ति पर बुरी नजर डालने से बचें और त्याग भरा जीवन अपनी बदौलत जियें। किसी से ईर्ष्या करने के बजाय उससे मोहब्बत करें।

अगर उल्टा-पलटा करेंगे,तो फिर उस सजा को भुगतने के लिए पहले से ही तैयार बैठे क्योंकि ईश्वर की नजर से या उसके रडार से हम बच नहीं सकते। दशों दिशाएँ,नक्षत्र,वनस्पतियाँ,दिन-रात,सूरज,चंद्र, ये सभी साक्षी हैं। बच कर आप जायेंगे कहाँ?

रामलीला हम सबको पाप से बचाकर जीवन का अंतिम लक्ष्य अर्थात मोक्ष की तरफ ले जाती है। मोक्ष सिर्फ और सिर्फ सादगी,सरलता,निष्कपटता तथा निष्काम से ही प्राप्त हो सकता है,लूटपाट, हत्या,खून से नहीं। इस तरह से मानों तो नरईपुर गाँव किसी तीर्थ से कम नहीं। दस दिनों तक चलनेवाली यह रामलीला मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों का सीधे रसपान कराती है। इससे बड़ा और सुख इस दुनिया के किस कोने में मिलेगा?


मेरे मुताबिक हर इंसान को अपने अतीत में अवश्य झाँकना चाहिए और वर्तमान में रहते हुए भविष्य के गर्भ में अपने सुनहले सपने बोना चाहिए। नयी पीढ़ी के लिए हमारी जवाबदारी बनती है कि हम समाज,देश तथा अखिल विश्व के लिए कुछ करें।
आज हम जिन्दे हैं,आज ही कुछ कर सकते हैं। कल किसने देखा है। न अापने देखा है और न मैंने!


तो आओ हम इस बलिदानी मिट्टी से तिलक करें।यही वो मिट्टी है जिससे हमारी धड़कनें धड़कती हैं । इसी से हर किसी की भावनाएँ जुड़ी हैं। इसी मिट्टी से हम सभी के हौसले बुलंद हैं तो यह मिट्टी बलिदानों तथा बलिदानियों से भरी पड़ी है। आज देश आजाद नहीं कराना है बल्कि हमें अपनी दूषित होती संस्कृति को बचाना है।

जितने भी आक्रामक यहाँ आए,सर्व प्रथम उन्होंनें हमारी संस्कृति का तहस-नहस किया। इसे लूटा-पाटा और जोर जबरदस्ती की। हमारी हर स्वतंत्रता से खेला। उन्हीं आक्रामकों की डर से बाल-विवाह का जन्म हुआ, नहीं तो उसकी जरुरत ही क्या थी? नदियों खून बहा तब जाकर देश आजाद हुआ।

अब आप अपनी आँखें खोलें और ईमानदारी की तरह ख़त्म हो रहे अपने संस्कार और संस्कृति को बचाएँ,इसी में हम सबकी भलाई है। संकल्प के साथ आइए हम एक नये सुदृढ़,आत्मनिर्भर व निर्भय समाज का निर्माण करें,अपने पूर्वजों के प्रति हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
तो, रामलीला एक ऐसा मनोहारी दृश्य है जो


हजारों सालों से लोग सुनते-देखते आ रहे हैं पर उससे किसी का मन अघाता नहीं! अर्थात दिल नहीं भरता। आज जब कोई कहीं भी राम का किस्सा सुनाता है,तो हम बच्चों के जैसे सुनते रह जाते हैं। यक़ीनन हम उस वक़्त ये भूल जाते हैं कि इसे हमने कहीं पहले भी कई बार सुना है।

धन्य हैं राम और धन्य हैं राम के सुननेवाले भक्त गण! अंततोगत्वा मैं एक बार फिर पंडित मदन मोहन चौबे जी,पंडित कैलाश मिश्रा जी,यशवंत यादव जी तथा रमेश उपाध्याय जी का ह्रदय तल से हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ कि आप लोगों ने समय-समय पर मेरा मार्गदर्शन किया और पुरानी से पुरानी यादों को साझाकर तरोताज़ा किया। नरईपुर की रामलीला अपने गाँव-गिराँव के साथ-साथ समूचे विश्व में अपनी सुगंध बिखेरे…..
हरि भजन, हरि कथा अनंता……
मैं अपनी एक और रचना के साथ अब विदा लेता हूँ।


दिखता यहाँ कोई मायावी रावण,
वध उसका करने आते हैं राम।
नफरत की दीवार खड़ा न करो,
मोहब्बत का पाठ पढ़ाते हैं राम।

हिन्दू-मुस्लिम वो क्या जाने,
मेरी हर साँस में बसते हैं राम।
राजधानी छोड़ चले उसूल पे,
त्याग की मूरत बन जाते हैं राम।

शबरी के हाथ कभी खाए थे बेर,
प्यार के भूखे देखो हैं राम।
जीत करके लंका लिए भी नहीं,
पाप का बोझ मिटाते हैं राम।

मजहब की भट्ठी में जो देश जलाते,
सियासत उन्हें सिखाते हैं राम।
मधुमक्खी फूलों से लेती है रस,
टैक्स वैसे लेना सिखाते हैं राम।

इन्हीं शुभकामनाओं के साथ…… जय हिन्द!
जय महाराष्ट्र, जय उत्तरप्रदेश!!

Ramakesh

रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),

मुंबई

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