रश्मिरथी | Rashmirathi
रश्मिरथी
( Rashmirathi )
देख सखी दिनकर नहीं आए
आहट सुन रश्मि रथियों ने खोली द्वारा
निशाचर डींग हांक रहे थे जो
वह दुम दबाकर गये भाग
कल की रात्रि अति काली
जो अब ना दे दिखाई
सोच सखी उनके आने पर
क्या क्या देगा दिखाई
तेज स्वरूप- सिंहासन
संपूर्ण क्षितिज सुनहरी छाई
निशाचर देखो कापँ रहे हैं
उनको ना दें कुछ दिखलाई
सिमट गये एक बंद कोठरी में
पर वहाँ भी ठौर ना मिल पायी
तो उठो सखी करो स्वागत
मीठी मुस्कान से
नहीं रहेंगे वह हट गंभीर
चले जाएंगे अपने काम से
व्यर्थ निद्रा ना समय गवाओ
उठो अब कर्मठ हो जाओ
नवीन मद्धेशिया
गोरखपुर, ( उत्तर प्रदेश )