Kavita Bina Soche Samjhe
Kavita Bina Soche Samjhe

बिना सोचे समझे

( Bina soche samjhe ) 

 

कहां जा रहे हो

किधर को चलें हो

बिन सोंचे समझे

बढ़े जा रहे हो।

 

कहीं लक्ष्य से ना

भटक तो गये हो !

फिर शान्त के क्यों

यहां हम खड़े हो!

 

न पथ का पता है

न मंजिल है मालुम

दिक् भर्मित होके

चले बढ़ चले हो!

 

उद्देश्य क्या है?

जिए जा रहे हो

खा पीकर मोटे

हुए जा रहे हो !

 

बहुतों ने आया

जीवन बिताया

दिया क्या किसी को

जो सबने है पाया!

 

गये छोड़ धन और

दौलत भी सारा

कौन याद करता

फिर तुमको दुबारा।

 

देना गर है तो

कुछ दे जाओ ऐसा

सभी का हो जीवन

अनमोल जैसा।

 

( अम्बेडकरनगर )

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