ऋषि पंचमी

( Rishi Panchami ) 

 

आज का दिन माहेश्वरी का रक्षाबंधन कहलाता है,
ऋषि पंचमी को ही हर माहेश्वरी राखी बंधवाता है,
सजती है हमारी भी सुनी कलाई पर राखी आज
राखी बांधने कभी बहन कभी भाई बंधवाने आता है।

मायके में भी फिर से खुशी का माहौल छा जाता है,
बेटी को अंगना में देख हर कोई फूला ना समाता है,
तिलक लगा मिठाई खिला राखी बांधती है बहन
भाई भी अपनी बहन के लिए प्यारे उपहार लाता है।

बहते आँखों से अश्क जब मायके से बहना जाती है,
विदाई की इस बेला पर सबकी आँखें भर आती है,
शादी के बाद रहती वो भी जैसे मेहमां बनकर
फिर एक बार बेटी माँ बाप से बिछड़ जाती है!

 

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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