Rut Maut ki
Rut Maut ki

रुत मौत की!

( Rut maut ki )

 

रुत मौत की सजी है, आके मुझे बचा लो,
वीरान हो चुके हैं, मेरे शहर को सजा दो।

करने लगे हैं पत्थर आईनों की हिफाजत,
चुभने लगी है उनको दिनरात की बगावत।
हुआ दिल मेरा ये पत्थर, दरिया कोई बना दो,
रुत मौत की सजी है, आके मुझे बचा लो,
वीरान हो चुके हैं, मेरे शहर को सजा दो।

घायल हुआ जमाना, घायल हुई हवा वो,
जो मौत दे रहे हैं, क्या देंगें हमें दवा वो ?
मेरी साँस जो बची है, आके उसे बढ़ा दो,
रुत मौत की सजी है, आके मुझे बचा लो,
वीरान हो चुके हैं, मेरे शहर को सजा दो।

सूरत बदल गई है, तासीर बदल गई है,
नीले गगन की देखो तस्वीर बदल गई है।
जो छल कर रहे हैं, उन्हें आईना देखा दो,
रुत मौत की सजी है, आके मुझे बचा लो,
वीरान हो चुके हैं, मेरे शहर को सजा दो।

 

लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )

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