साथ क़िस्मत मेरा नहीं दें रही | Kismat par Ghazal
साथ क़िस्मत मेरा नहीं दें रही
( Sath kismat mera nahi de rahi )
साथ क़िस्मत मेरा नहीं दें रही
जीस्त को खुशियां रस्ता नहीं दें रही
देखता हूं राहें मैं जिसके प्यार की
वो निगाहें इशारा नहीं दें रही
कर रही है वो इंकार आंखें मुझे
मिलनें को कोई वादा नहीं दें रही
आरजू है जिसकी उम्रभर के लिए
की वो बाहें सहारा नहीं दें रही
वो हवा भी खफ़ा है मगर आजकल
की पता भी उसका नहीं दें रही
दोस्त कैसे खरीदूं क़िताब पढ़ने को
एक भी दादी पैसा नहीं दें रही
प्यार के आज़म डूबा दरिया में ऐसा
प्यार लहरें किनारा नहीं दें रही