उसके दिल में भर जाने को जी चाहता है
उसके दिल में भर जाने को जी चाहता है

उसके दिल में भर जाने को जी चाहता है

( Uske dil mein bhar jane ko jee chahta hai )

 

 

उसके दिल में भर जाने को जी चाहता है

कभी दरिया से उभर जाने को जी चाहता है

 

जिस दिल पर हम मसरूफ रहा करते थे

उसी दिल में उतर जाने को जी चाहता है

 

दर्दो के साया को अपने बाहों में लिए

कुछ बे-मिसाल कर जाने को जी चाहता है

 

किसी अहमक़ को होशयार कहना

तब ही बात से मुक़र जाने को जी चाहता है

 

हमारे सफर-ए-इश्क़ में कई सफर है

हर एक किस्सा पे मर जाने को जी चाहता है

 

वीरान में तन्हा रास्तों से मिलकर ‘अनंत’

कभी अपने ही घर जाने को जी चाहता है

 

 

शायर: स्वामी ध्यान अनंता

( चितवन, नेपाल )

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