सच्चाई की ताकत | Sachai ki taqat poem
सच्चाई की ताकत
( Sachai ki taqat )
किन्तु परन्तु में न अमूल्य समय गंवाए,
जो बात सही हो, खरी खरी कह जाएं।
होती अद्भुत है सच्चाई की ताकत,
छिपाए नहीं छिपती,है करती लज्जित होकर प्रकट।
लज्जा अपमान जनक पीड़ादायक भी होती है,
आजीवन पीछा नहीं छोड़ती है।
लोग भूल भी जाएं-
पर अपने हृदय में घर कर जाती है,
जो रह रहकर बहुत सताती है।
छीन लेती है सुख चैन,
बेचैनी में कटती है रैन।
इस दुविधा इस तकलीफ से गर बचना हो-
तो छोड़ो किन्तु परन्तु,
सदा सच का ही साथ देना तू।
माना इन दिनों झूठ का है बोलबाला,
चार दिन की चांदनी है यह-
फिर होगा घना कोहरा काला;
कहां पीछे हट रहा है दृढ़ निश्चय वाला?
लाख दुश्मन हो जमाना!
उनका ऊपरवाला है रखवाला।
जो सदा सर्वदा सत्य ही चाहता है,
पीछे उनके मजबूती से खड़ा रहता है।
दुष्टों को कुछ दिन उधम मचाने देता है,
एकबार सुधरने का भी मौका देता है;
फिर मजबूती से पटक देता है।
धरी रह जाती है उनकी अवैध कमाई,
जाने ऐसी दास्तां इतिहासों में कितनी समाई;
असत्य का जीवन अल्पकालिक है भाई।