Gairon ki Sangat
Gairon ki Sangat

गैरों की संगत

( Gairon ki sangat ) 

 

ऐ दोस्त,

संभल कर चल

परख कर चल

समझ कर चल

क्योंकि

गैरों की संगत

अपनों को दुश्मन

बना देती है।

 

ऐ दोस्त!

समझना बड़ा मुश्किल है

किसी के रुप को,

पढ़ना बड़ा मुश्किल है

बनावटी चेहरों को

क्योंकि

गुमराह सभी को

अंधा बना देती है।

 

ऐ दोस्त!

संगत से सब सम्भव है

भला बनना या बुरा

खुद को समझना जरुरी है

क्योंकि

खुदी ही मार कर

खुद हमको

गंदा बना देती है।

 

ऐ दोस्त!

याद कर अपनों को

जो गैर का शिकार हुआ

मर गया याद करते तुम्हें

क्योंकि

कष्ट होता है जब

कोई अपना अपने को

ही भोजन बना लेता है।

 

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

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