रोज़ भीगी है आंखें | Sad shayari
रोज़ भीगी है आंखें नमी में बहुत
( Roz bheegi hai aankhen nami mein bahut )
रोज़ भीगी है आँखें नमी में बहुत
खा गया हूँ दग़ा दोस्ती में बहुत
कब न जाने मिलेगा मुझे वो आकर
मैं डूबा हूँ जिसकी बेकली में बहुत
दुश्मनी छोड़ कर दोस्ती तू मगर
ख़त्म हो जाता सब दुश्मनी में बहुत
जिंदगी कर दें मेरी अमीरी ख़ुदा
कट रही जिंदगी मुफ़लिसी में बहुत
वो भी मेरी तरह तड़फे रब प्यार में
जिसकी तड़फा हूँ मैं आशिक़ी में बहुत
जीस्त की मुश्किल आसान कर दें ख़ुदा
जिंदगी कट रही बेकसी में बहुत
दूर होगे तेरे ग़म चल मस्जिद में तू
चैन मिलता रब की बंदगी में बहुत
डूबकी मत लगा पार होगा नहीं
गहराई है प्यार की इस नदी में बहुत
दूर कर रब गमों के सभी दिन मेरे
कट रही जिंदगी अनमनी में बहुत
कुछ कहा भी नहीं है उसी से ऐसा
दिल भरा क्यों फ़िर नाराज़गी में बहुत
चाहता हूँ सकूं के रहना होश में
रह लिए प्यार की बेख़ुदी में बहुत
कब मिला है ख़ुशी से मुझे वो आज़म
थी नजाक़त भरी ही उसी में बहुत
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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