
समझ मे क्यों नही आया
( Samajh mein kyon nahi aaya )
जितना भी मांगा था रब से,
उससे ही ज्यादा ही पाया।
मन पागल ना शुक्ररा निकला,
जब देखा रोता ही पाया।
प्रेमिका माँगी पत्नी दे दी,
एक नही दो दो से मिला दी।
जो मांगा वो सबकुछ दे दी,
पर मन को संतुष्टि नही दी।
मांगा था इक बेटा दे दो,
एक नही दो दो को दे दी।
पर बेटी की ख्वाहिश तोडी,
बेटी काहे मुझको ना दी।
एक दुकान था दो दो कर दी,
घर भी सुन्दर भाग्य मे लिख दी।
पर मन संतुष्ट नही है मेरा,
ईश्वर तूने क्या क्या ना दी।
मन मे ऐसी गागर रख दी,
जो थोडी सी खाली रख दी।
कब छलके गागर से पानी,
काहे वो संतुष्टि नही दी।
राम रमैया जग है माया,
जानता हूँ पर समझ न पाया।
मन की क्षुदा पूर्ति ना होती,
शेर समझ मे क्यों नही आया।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )