Samay ki Jarurat
Samay ki Jarurat

समय की जरूरत

( Samay ki jarurat )

 

जुड़ते हुए आपसी संबंधों मे
कभी कभी पारंपरिक बदलाव भी
जरूरी है….
समय की बदलती धारा मे
चुनाव अच्छाइयों पर होना चाहिए
न कि रूढ़िवादी सिद्धांतों पर…..

आज की स्वच्छंद जीवन शैली मे
उभरती इस नव सोच के साथ
तारतम्य बनाए रखना ही
शेष के लिए श्रेयस्कर है…

आपसी जिद्द या कठोरता
ले जाती है गंभीर परिणाम की ओर
ऐसे मे,योग्यता की परख और
समुचित विचारों की हो….

अब के माहौल मे
ऊंच नीच,अमीर गरीब आदि से
उठकर ही सोचना होगा
क्योंकि
वैसे भी,परिवार टूट ही रहे हैं…

सिद्धांत वहीं तक सफल है
जहां तक मान्यता हो
किंतु,स्वीकृति
योग्यता के आधार पर हो
यही समय की जरूरत भी है…

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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