समझा रहा समझदारी से | Ghazal
समझा रहा समझदारी से
( Samjha rahe samajhdari se )
समझा रहा समझदारी से, साकी यह मयखाने में !
गांधीजी का ध्यान रखो सब,पीने और पिलाने में !!१
सही और असली ‘गांधी’ हो, तब पा सकते हर सुविधा
कड़ी सजाऍं होंगी नकली- गांधी के मिल जाने में !!२
सुनकर स्वर विरोध के उठ कर,गूॅंज रहे मयखाने में
पक्षपात करता है साकी, पीने और पिलाने में !!३
नाली की कीचड़ में डूबे, पड़े हुए हैं गरदन तक
असली रिन्द हो चुके बाहृर,राजनीति दिखलाने में !!४
कहते गांधी भारत का है, जो यों कहीं नहीं दिखता
पर हर क्रय विक्रय हो जाता,’गांधी’ के मिलजाने में !!५
पा लेता वह हर सुविधा जो, खाता ‘गांधी’ को देकर
उसे सजाभी सुविधाओं से,मिलतींजेल के खाने में !!६
सुखदायक है गांधी चोरी, जब तक पता नहीं लगता
कुछ ही अपराधी बच जाते,और देश को जाने में !!७
बतलाता इतिहास कि गांधी,सिर्फ मुसलमानों का है
पढ़वाओ कुरान मन्दिर में, कहता रहा जमाने में !!८
कुछ गांधी भक्तों के घर में,गांधी रामकथा भी है पर
सिर्फ कव्हर है ऊपर,अन्दर,की कुरआन सजाने में !!९
पत्थर घर में, हाथों में हैं, पत्थर सी बातें मुंह में
मिले तसल्ली, जीतें दुनिया, पत्थर मयी बनाने में !!१०
तब आजादी रही गुलामी, आज गुलामी आजादी
‘गांधी’ जंगल राज चल रहा, देश खड़ा वीराने में !!११
लिया कर्ज सरकार चुकाए,बिजली पानी मुफ्त मिले
टैक्स चुका कर हिन्दू धन दें,सुविधाऍं दिलवाने में !!१२
पुजारियों को भीख कटोरे, मौलवियों को तनख्वाहें
अबका ‘गांधी’ व्यस्त बहुत है,पाकिस्तान बनाने में !!१३
राज मुल्कके,चैन मुल्कका,अमन मुल्कका बेच चुके
जमा करोड़ों गैर मुल्क में,’गांधी’ जमा खजाने में !!१४
रक्त बिन्दु हर गिर कर भीषण,रक्तबीज बन जायेगा
शायद गांधी सफल रहा था,युगसे यह वर पाने में !!१५
मर कर वह हर ओर न जाने,कितने रूप बना लाया
हर मुॅंह गांधी ही भजता है, मजबूरी बतलाने में !!१६
डरवाते अब हर दीवाली, दंगे , बम , आतंक नये
होली में माँ बहन बेटियाॅं, डरती हैं लुट जाने में !!१७
गोंड,भील,मेहतर,चमार,या दलित नामक्योंहों उनके
पाए जिनने ‘गांधी’ मुस्लिम, ईसाई बन जाने में !!१८
मौन खड़ा”आकाश”सोचता,उस गांधीसे बढ़कर कौन
हरमुश्किल सुधार पायेगा,’गांधी’ की हर खाने में !!१९
कवि : मनोहर चौबे “आकाश”
19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001
( मध्य प्रदेश )