सर्द पड़े रिश्ते | Sard Pade Rishte
सर्द पड़े रिश्ते
( Sard Pade Rishte )
सर्द पड़े इन रिश्तों को,
फ़िर गर्माना , ज़रूरी है ।
सोये हुए एहसासों को ,
फ़िर जगाना , ज़रूरी है ।
दिल में उभरे इन भावों को ,
बाहर लाना , ज़रूरी है ।
रिश्तों में घुली जो कड़वाहट ,
उसका भी अन्त ज़रूरी है ।
मन में बैठी पीड़ाओं से ,
मुक्ति पाना भी ज़रूरी है ।
आये हैं अगर इस दुनिया में ,
तो जीकर जाना भी ज़रूरी है ।
पाना हो अगर बस प्यार तुम्हें ,
तो प्यार लुटाना भी ज़रूरी है ।
सर्द पड़े इन रिश्तों को ,
फ़िर गर्माना ज़रूरी है ।
प्रगति दत्त
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