सौंदर्य | Saundarya Kavita
सौंदर्य
( Saundarya )
सौन्दर्य समाहित ना होता, तेरा मेरे अब छंदों में।
छलके गागर के जल जैसा, ये रूप तेरा छंदों से।
कितना भी बांध लूं गजलों मे,कुछ अंश छूट जाता है,
मैं लिखू कहानी यौवन पे, तू पूर्ण नही छंदों में।
रस रंग मालती पुष्प लता,जिसका सुगंध मनमोहिनी सा।
कचनार कली की डाल तेरी, कमर चाल गजगामिनी सा।
यौवन का भार सम्हालें ना, सम्हले ड़ोरी से गाँठों खुले,
तेरी एक नजर बाँधे सबकों,तेरे नयन लगे मृगनयनी सा।
घट केशु खोंल दे घटा घिरे, बाँधे तो साँसे थम जाए।
लट जब गालों पे उड़तें है, मानों पंछी कलरव गाए।
पुष्पों के सुर्ख पंखुड़ी सा, अधरों का कंम्पन हाय प्रिये,
क्रमबद्ध पंक्ति में मुक्तक ये, दंतों पे दामिनी छा जाए।
तुम कालीदास की शकुंतला,है काम कमान भवे जिसकी।
उर्वशी मेनका तिलोत्तमा, तेरे आगे श्रीहीन लगी।
मैं क्या लिखूं तुम पर बोलों, हुंकार कल्पना निष्फल है,
सौन्दर्य समाहित ना होता, तेरा मेरे अब छंदों में।
तेरा मेरे अब ग़जलों मे…
तेरा मेरे अब शब्दों में..।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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